आइल गरमी

– डॉ राधेश्याम केसरी


सूरज खड़ा कपारे आइल,गर्मी में मनवा अकुलाइल।

दुपहरिया में छाता तनले,बबूर खड़े सीवान।
टहनी,टहनी बया चिरईया,
डल्ले रहे मचान।
उ बबूर के तरवां मनई,
बैईठ ,बैईठ सुस्ताइल।

गइल पताले पानी तरवां,
गड़ही,पोखर सुखल इनरवां।
जल-कल पर सब दउरे लागल,
जिउवा बा बौराइल।

छानी छप्पर के तरकारी,
सुख के खरई भइल मुआरी।
तिनका तिनका चटक गइल बा,
हरियर डार पात मुरझाइल।

खर, खर बाटे छान मड़ैया,
अंगना में चिरई लड़वइया।
छन से गिरल बूंद माटी में,
पड़ते पड़त सुखाईल ।

गली गली में बिच्छी कीरा,
डंक मुअलें मगरू मीरा।
मच्छर काटे ,जीव पिरावे,
बहुत तेज इ गरमी आइल।

ई गरमी में कुकुर पागल,
काट के उ बसवारी भागल।
सात इनारा झाँकत बाड़न,
सातो सुईया पेट कोचाइल।

छांहों खोजे छांह मड़ईया,
बढ़लन गगरी के किनवइया,
पानी खातिर चलल पनसरा,
मुहवां रहल सुखाईल ।

खनी खनी में आग लगेला,
सगरो बाटे इहे झमेला।
सब जरला के बाद बूताला
लोगवां रहे डेराइल।

झन झन बाते रात अँजोरिया,
लोगवा सुते, चढ़े मुड़ेरिया।
पुरवइया में उमस बाटे,
बा लोगवां घबराइल।

छोड़ के पुड़ी, सतुवा चटनी,
रोज खीआवे सतुआ चटनी,
रोज खिवावे हमके रतनी।
पन्ना रोज बनेला घरवां
जिउवा में जिउवा अब आइल।


डॉ राधेश्याम केसरी
ग्राम, पोस्ट-देवरिया,
जिला -ग़ाज़ीपुर उ.प्र.
पिन 232340
मो,9415864534
rskesari1@gmail.com

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