आन्हर के आन्हर ना कहल जाला भाईजी

– पाण्डेय हरिराम

चर्चा बा कि कुछ माननीय सांसद खुद के बुरा-भला कहला से नाराज हो गइल बाड़े. सही बात बा, अगर कवनो आन्हर के आन्हर कहब त खराब लागबे करी. ओकरा के सूरदास कहल जाला. लेकिन एहीजा शंका कुछ अउर बा. किरन बेदी, ओम पुरी आ प्रशांत भूषण के खिलाफ त ई नोटिस दे दीहें आ जिद पर अड़ल लोग त तीनों के माफी ना मँगला पर 15 दिन के जेलो के सजाय दे सकेले. लेकिन ऊ जनता जे सड़कन पर बिया आ जे इन्हन के चुनले बिया ऊ एह लोग के का कहत बिया. का इनका मालूम बा ?

दरअसल बाति ई बा कि हमनी के माननीय सांसद लोग में आपन आलोचना सहे के ताकते नइखे रहल. कवनो जबरदस्ती त हो ना सके कि रउरा संसद में एक-दोसरा के माननीय बोलत रहब त हमनियो के रउरा के माननीय बोले के पड़ी, भलही केहू का खिलाफ करोड़ों के घोटाला के आरोप होखे, केहू का खिलाग कत्ल करवावे के आ केहू का खिलाफ भड़कावे के.

हमनी का मुश्किलात आ बवाल के एगो लमहर दौर देखले बानी. हमनी का अडिय़लपन, अभद्रता आ दुनु फरीकन का ओर से अति आक्रामकता जइसन बदरूप आदतो देखनी. फासला मेटावे खातिर ई रवैया ठीक नइखे. एगो आदर्श दुनिया में लोग विवेकसंगत होखीहें आ अपना ताकत भा हालात के दरकिनार कर उचित कदम उठइहें.

लेकिन एकरा बावजूद मौजूदा हालात में उम्मीद के किरण देखल जा सकेला. ऊ शांतिपूर्ण रूप से सामने अइले आ शालीनता का साथ एगो अधिका न्यायपूर्ण समाज मँगले. ई हमनी सभ का ला गौरव के छन रहे. अण्णा के आंदोलन सफल रहल बा, लेकिन यदि हमनी के बौद्धिक कुलीनो लोग उनुका आंदोलन के समर्थन कइले रहीत त उनुकर स्थिति अउरो मजबूत होखीत. एह आंदोलन के विरोध में सबले ताकतवर दलील ई रहल कि संसद के अवहेलना ना कइल जा सके आ ना ही करे के चाहीं. यकीनन, एहमें कवनो संदेह नइखे कि संसद आ संविधान के सम्मान करे के चाहीं. लेकिन एह तरह के संस्था एगो बुनियादी धारणा का आधार पर चलावल जाली सँ आ ऊ हवे जनता के विश्वास. यदि जनता के भरोसा डिग जाव त अइसन कवनो संस्था चलावले ना जा सके. हमनी के अइसन प्रयास करे के चाहीं कि संसद में जनता के भरोसा फेर से लवटि सके.

भारत के राजनेता अउर खासतौर पर भारत के सरकार भरोसा के एही संकट से जूझत बिया. जनता अब सरकार पर भरोसा नइखे करत. सरकार के बयानन से हालात अउरी बदतर हो गइल बा. सरकार लगातार कहतिया कि भ्रष्टाचार के समस्या से निजात पावल जरूरी बा, लेकिन ऊ खुद एकरा खातिर लगभग कुछ नइखे करत. हमनी के राजनेता अपना रवैया के ईहे कीमत चुकावत बाड़े कि अब लोग उनुका पर भरोसा नइखे करत. जनता के विश्वास जीतले बिना नियम के हवाला दिहला से कुछ ना होखी.
(31 अगस्त 2011)



पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.

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