आरा गान

– शिवानन्द मिश्र

रामजी के प्यारा ह, कृष्ण के दुलारा ह,
बाबा विसवामीतर के आंखी के तारा ह।
बोले में खारा ह, तनीकी अवारा ह,
गंगाजी के धारा के नीछछ किनारा ह।

गौतमदुआरा ह, भोज के भंडारा ह,
सोन्ह गमकेला जइसे दही में के बारा ह।
हिन्द के सितारा ह, भारत में न्यारा ह,
कुअर बरीयारा के खोनल अखारा ह।

नदी आ नारा के झीलमील नजारा ह,
बबुर आ सबुर से भरल दियारा ह।
शेरशाह द्वारा, हुमायु बेचारा के,
चौसा में भाखल भखवटी ह, भारा ह।

रन के नगारा ह, कला के ओसारा ह,
शास्त्रन के जोतेवाला इ नवहारा ह।
खान बिस्मिल्ला के जिला, रंगीला इ,
जांत शहनाई से दरल इ दारा ह।

खास शाहाबाद, शंखनाद जगजीवन के,
भइल बँटवारा से आजु चारीफारा ह।
पपनी के बुझेला इशारा इ पुन्यभूमि,
मोछी आ मुरेठा पुराने परम्पारा ह।

जानत जग सारा, इ आगी के अंगारा अस,
लहकेला जब एकर गरम होत पारा ह।
बाबा बरमेसर सहारा, बेसहारा के,
आएरन देवी कींहा होत निपटारा ह।

मिली छुटकारा, जयकारा तिरदण्डीजी के,
बोल ए मन अन्हियारा उजियारा ह।
बेटा आरा अतिथी खाती चले जहवा,
उहे ए शिकारी इ लंगोटा वाला आरा ह।।

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