– भरत मिश्रा
ऊ कइसे लिखिहे चिट्ठी हमरा के
जमाना का दौड़ में फोन आ गइल.
हम सोचनी जा के मिलब उनसे
शहर बनला से उनुकर घरवे बिला गइल.
कबो उनका सोच से हमार सोच मिलत रहल
दूरी बढ़ला से इयरवे रिसिया गइल,
ऊ….…
उनुकर हमार साझ दोस्त बतवलन हमके
ओकर समय बदलल उतरा गइल.
ऊ कब्बो तहार खेयाल ना रखलसि
समय आइल त अंगूठा देखा गइल.
कबो तहार नाँव ना लिहलसि जुबान पर
ई सोच के हमार दिल तहरे प आ गइल.
भारत के संस्कार बनवले रहऽ
एही संदेश से कविता लिखा गइल.
केतने दिल टूटल, जुटल संस्कार में
जब इज्जत बाबू जी के ताक पर आ गइल.
ऊ.…
हमरा ना चाहीं अइसन दोस्ती आ प्यार,
जेहसे कई परिवार के रिश्ता बुता गइल.
ई दुनियां के चक्कर में पड़ के
केतना नवहिन के तकदीर खा गइल.
आईं बचाईं भोजपुरी संस्कार, काहें कि
सबका नीयत में फूहड़पन आ गइल.
भोजपुरी माटी के इतिहास बा साक्षी
पहिला राष्ट्रपति भोजपुरी दिआ गइल.
ऊ…
नम्रता के साख के कमजोर मत करीं,
भोजपुरी में लिखे अब हमरो आ गइल.
पढ़ीं, पसंद करीं, शेयर करीं,
ताकि अइसन ना लागे कि ऊहे
पुरनका इयरवे भेंटा गइल.
भरत मिश्र, गोपालगंज.
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