– संतोष कुमार पटेल
अब सीता सावित्री लक्ष्मी पार्वती
जइसन नाम
आउटडेटेड हो रहल बा
काहे की अब लोग
अपना आंख के पानी
अपने धो रहल बा.
लाज ओइसही बिलाइल जाता
जईसे गरम तावा पर पानी के एगो बूंद
रेगिस्तान में घडी भर के वरखा
अब आँखिन में सरम के काजर नइखे लागत
बेसरमी के सुरमा लागत बा
पुन्न भागत बा
पाप जागत बा
अंधरिया के चान नियर
कपडा
घटत जात बा देहीं से
नेह लागत बा जेहि सेही से
पति परमेश्वर के भाव
घटत जाता
बॉय फ्रेंड से नेह
सटल जाता
संस्कार के सुरुज के ग्रहण लागल बा
गुरु सूतल बाड़े
राहू जागल बा
कहाँ जाई मेहरारूअन के
इ स्वतंत्रता केहू के का बुझाता?
का करबे विधाता
पब में गईला के बहार हो गइल
अपना संस्कृति के बंटाधार
हो गइल
रोकवइया कहातारे
पुरातनपंथी
आ एह पर बुद्धिजीवी लोगन के
अजबे बा नारा
केशरिया वालन के करनी बा सारा
नइखे लउकत देवी कहायवाली
के चरितार कहाँ, जा रहल बा
उडीस चाटत बा
घुन खा रहल बा
देह के
नेह के
कहे की कम्निष्ठ लोग
दवरी करेला बिना मेह के
(इ कविता “भोजपुरी माटी” कोलकत्ता के अगस्त,२००९ अंक में छपल रहे.)
कवि संतोष पटेल भोजपुरी जिनगी त्रैमासिक पत्रिका के संपादक, पू्वांकुर के सहसम्पादक, पूर्वांचल एकता मंच दिल्ली के महासचिव, आ अखिल भारतीय भोजपुरी भाषा सम्मेलन पटना के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री हउवें.
संतोष जी, राऊर चिन्ता बहुत जायज बा, लेकिन ईहो बात माने के पड़ी कि जिनगी भर घर के मेहररुअन के साथे जेतना अत्याचार मरद लोग कईले बाड़े, ओकरे ई प्रतिकार ओ लोगन के तरफ से दिखाई दे रहल बा (चाहे ई प्रतिकार नकारात्मकता से भरल काहे ना होखे)। दोसर बात ई कि अभियो स्त्रीवर्ग के नैतिकता के स्तर हमनी मरद समाज से कई सौ गुना ऊपर बा। जेतना भ्रष्टता, कुसंस्कार, व्यभिचार (माफ करीं…मेहरारु लोगन खातिर प्रयोग कईल जाए वाला ए शब्द के मरद लोग खातिर प्रयोग कर रहल बानीं) इत्यादि पुरुस में विद्यमान बा, ओकरा बारे में लिखल आ बतावल जाव त एगो लमहर पुराण लिखा जाई। अगर परिवार आ समाज के आधा हिस्सा के बहुत ही कम प्रतिशत गड़बड़ा गईल बा, त ओकरो कारन ई पुरुस लोगे बा।
DIWARKARJI
DHYANAVAD
RAURA SAT PRATISHA THIK BANI. A GO HAMAR PAKSH HO SAKELA T RAURO DEWAL DUSAR PAKSHA OTNE SASHAKT BA.
RAURA PADANI, AA APAN PARATIKRIYA DENI
DYANBAD.
RAURA ADDRESS PAR A GO “BHOJPURI JINIGI” KE PATRIKA BHEJ DELE BANI.ASHA BA NIK LAGI.
NEH CHOH BANWALI RAHIN.
SANTOSH PATEL