– संतोष कुमार पटेल
जब आदमी काठ-पत्थर हो जाला
भाव से
विचार से
हियाव से
त ओकरा मुंह के पानी उतर जाला
जइसे मुरझा जाला फूल
सेरा जाला सूरज
दगिया जाला चान
राहू के कटला पर
डँसला पर
जइसे कटेला
घटेला चान
ओइसहीं आदमी के जिनगी में
गिरावट के असर लउकत बा
निमन लोग रोअता
लुच्चा छउकत बा
मूस जइसे कुतर देला
सज्जी कागज-पत्तर
बस बुझीं
गिरावट खा रहल बा आदमी के
गत्तर-गत्तर
घुन नियर खोखला कर रहल बा
हाव-हाव के भाव
आ आदमी के ई नइखे बुझात
कि ऊ भितरे-भीतर सड़ रहल बा
गल रहल बा
जल रहल बा
मरऽता
ई त होखही के बा
काहे कि
गिरावट के इहे लाभ ह
बाकिर कब के बुझी
ई बुझात नइखे.
(ई कविता ‘भोजपुरी माटी'(कलकत्ता) के जून अंक २००९ में छपल रहे.)
कवि संतोष पटेल भोजपुरी जिनगी त्रैमासिक पत्रिका के संपादक, पू्वांकुर के सहसम्पादक, पूर्वांचल एकता मंच दिल्ली के महासचिव, आ अखिल भारतीय भोजपुरी भाषा सम्मेलन पटना के राष्ट्रीय प्रचार मंत्री हउवें.
“बस बुझीं
गिरावट खा रहल बा आदमी के
गत्तर-गत्तर”
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शत-प्रतिशत सत्यपरक पंक्ति….संतोष जी, राऊर हर रचना दमदार होला लेकिन ई तऽ भीतर से झकझोर देहलस.
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आलेख से इतर एगो बात….राऊर द्वारा भेजल भोजपुरी जिनगी पत्रिका हमरा मिल गईल. एकरा खातिर अपने के बहुत धन्यवाद. बहुत ही उच्चस्तरीय पत्रिका बा ई.
ई त होखही के बा
काहे कि
गिरावट के इहे लाभ ह
बाकिर कब के बुझी
ई बुझात नइखे.
एकदम सटीक कहनीं आप।…बहुत ही मार्मिक रचना। सादर।।
-प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया”
http://pandiji.blogspot.com
कम से कम ई त सब केहूं के बुझिए जाए के चाहीं, एक ना एक दिन नियति के नियत समय प उनका जिनगी के लौ के बुझिए जाए के बा… बहुत बढ़िया भाई…
Bhav se phulail,gandh me Sanail,Kath jaisan
kathuaail ba;
Raur chhoti-muki rachana me,sara jiwan
utarail ba;
Geetkar
O.p.amritanshu