– मनोज भावुक
बोल रे मन बोल
जिन्दगी का ह … जिन्दगी का ह .
आरजू मूअल, लोर बन के गम आँख से चूअल
आस के उपवन बन गइल पतझड़, फूल -पतई सब डाल से टूटल …
साध- सपना के दास्तां इहे , मर के भी हर बार —
मन के अंगना में इंतजारी फिर बा बसंते के , बा बसंते के .
इक नया सूरज खुद उगावे के , खुद उगावे के
तब इ जाने के रोशनी का ह …. जिन्दगी का ह … जिन्दगी का ह .
मन त भटकेला , रोज भटकेला , उम्र भर अइसे
अपने दरिया में प्यास से तडपे इक लहर जइसे
हाय रे उलझन, एगो सुलझे तब , फिर नया उलझन, फिर नया उलझन
फिर भी आँखिन में ख्वाब के मोती, चाँद के चाहत ….
काश मुठ्ठी में चाँद आ जाए , चाँद आ जाए
तब इ जाने के चांदनी का ह …….. जिन्दगी का ह … जिन्दगी का ह .
लोर में देखलीं, चाँद के डूबल , रात मुरझाइल
पास तन्हाई, दूर तन्हाई , आसमां खामोश, फूल कुम्हिलाइल
जिन्दगी जइसे मौत के मूरत , वक्त के सूरत मौत से बदतर
फिर भी धड़कन में आस के संगीत , जिन्दगी के गीत …..
जिन्दगी के राग, गम के मौसम में , मन से गावे के
तब ई जाने के रागिनी का ह ……. जिन्दगी का ह … जिन्दगी का ह .
बोल रे मन बोल,
भावुक जी के गीत में ,
खुल गइल पोल कि
जिन्दगी का ह … जिन्दगी का ह .
अच्छा लागल भावुक जी राउर गीत .
ओ.पी.अमृतांशु
kabita me duruhapan ba
jindgi jaeese