(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से – 23वी प्रस्तुति)

– रिपुसूदन श्रीवास्तव

जिन्दगी हऽ कि रूई के बादर हवे,
एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे.

जवना घर में ना पहुँचे किरिन भोर के
जवना आँखिन से टूटे ना लर लोर के
केकरा असरे जिए ऊ परानी इहाँ
जहवाँ हर साँस बन्हकी बा बल जोर के
सउँसे इन्साफ के गाँव आन्हर हवे.
एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे.

कवनो मंजिल, ना साथी, ना सपना इहाँ
देश बाटे बेगाना, ना अपना इहाँ
राति बाटे अन्हरिया, फुलाइल नदी
नाव बाटे, न बा कवनो दियना इहाँ
गोड़ डगमग करे राह पातर हवे.
एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे.

कबहूँ तलफत भुभुर जेठ बैशाख के
शीतलहरी कबो पूस के माघ के
कबो फगुआ का राग में नहा के हँसे
कबो मातम मनावे घटल साख के
बुन्नी बरखा में पुरूआ के आँचर हवे.
एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे.

केहू चाहित त जिनगी बनित आज अस
केहू चाहित त चादर रहित जस के तस,
लोग दुनियाँ में बहुते पढ़ल आ गुनल
आदमी के कथा पर कइल ना बहस,
केहू बाँचल कबो ना, ई आखर हवे.
एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे.


पिछला कई बेर से भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के पूरा के पूरा अंक अँजोरिया पर् दिहल जात रहल बा. अबकी एह पत्रिका के जनवरी 2012 वाला अंक के सामग्री सीधे अँजोरिया पर दिहल जा रहल बा जेहसे कि अधिका से अधिका पाठक तक ई पहुँच पावे. पीडीएफ फाइल एक त बहुते बड़ हो जाला आ कई पाठक ओकरा के डाउनलोड ना करसु. आशा बा जे ई बदलाव रउरा सभे के नीक लागी.

पाती के संपर्क सूत्र
द्वारा डा॰ अशोक द्विवेदी
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com

1 Comment

  1. NIMAN SINGH

    chadar samet ke rakhi
    kahin
    godtani se khasak najao