– देवेंद्र आर्य

DevendraArya
आइ गइल चइत महिनवा हो रामा
पिंहके परनवा।

चिठिया लिखवलीं , सनेसवा पढवलीं
आधी आधी रतिया ले रहिया रखवलीं
नाहीं अइलें हमरो सजनवां हो रामा
पिंहके परनवा।

बेलिया फुलाले , चमेलिया फुलाले
केतनो जतन करीं बात छितराले
पिया बिन सून मोर दियना हो रामा
चइत महिनवा।

गेहुआं के बलिया से डोले मोरा जियरा
अंखिया पर हमरे पिरितिया के पहरा
कब सच होइहें सपनवा हो रमा
पिंहके परनवा।

जस जस छिटकेले चइत अंजोरिया
मन अकुलाय , बाढ़े बिरह उमिरिया
नाहीं अइलें कउने करनवा हो रामा
हमरो सजनवां।


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