– पाण्डेय हरिराम
देश के राजनीतिक, सामाजिक अउर साम्प्रदायिक रूप में गहिरा ले बाँट देबे वाला मसला, रामजन्मभूमि विवाद, में तब एगि अउर नया मोड़ ओह दिने आ गइल जब सुप्रीम कोर्ट एह विवाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर-2010 के फैसले पर रोक लगा दिहलसि आ साथही साथ ओह फैसला पर आपन अचरजो जतवलसि. सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला में ई ताकीदो कइलसि कि झगड़हवा जगह से जुड़ल 67.730 एकड़ जमीन पर कवनो तरह के धार्मिक कार्यक्रम ना कइल जा सके.
एह फैसला से पहिले इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ पीठ ने ई मान लिहले रहुवे कि साल 1428 ईस्वी में रामलला के मंदिर के छत तूड़ के ओकरा ऊपर मस्जिद के छत ढालल गइल रहुवे आ फेर 1992 में ओह मस्जिद के तूड़ दिहल गइल. एहिजा ई बता दिहल जरूरी बा कि राममंदिर विवाद अपना मौजूदा रूप में धार्मिक कम आ राजनीतिक बेसी बा. एह बेर जवन फैसला सुप्रीम कोर्ट दिहले बा ओकर आधार ई बा कि का अदालती फैसला आस्था का आधार पर कइल जा सकेला आ कि ओकरा खातिर वास्तविकता अउर साक्ष्य का संगे संग कानूनी आधारो जरूरी बा.
अब सवाल उठत बा कि अयोध्या मसला में अब आखिरी फैसला का होखी आ ओह फैसला के हिन्दुस्तान के जनमानस पर का असर पड़ी. एहिजा एगो सावला पर सोचे के जरूरत बा कि एह बारे में उचित का होखे के चाहीं ? हमनी का अपना देश के सामाजिक बुनावट के मजबूत कइल चाहत बानी कि ओकरा के चिंदी चिंदी कइल ? रामजन्मभूमि के मसला देश के हिंदू मानस में राजनीति के सीढी चढ़ के ऊपर चहुँपल बा. राजनीतिक लाभ खातिर जनभावना भड़कावे में एकर इस्तेमाल कइल जात रहल बा. नतीजा ई भइल कि हमनी के देश के “सर्वधर्म समभाव” के सुभावे पर संदेह बने लागल. हर तरह के कोशिश कइल गइल आ जब ई मसला सामाजिक, सांस्कृतिक, आ भा राजनीतिक तौर पर हल ना कइल जा सकल त ई फेर घूम फिर के अदालत के चउखट पर आ गइल बा. हाई कोर्ट कोशिश कइले रहे कि एकर कवनो सर्वमान्य समाधान निकल जाव बाकिर कवनो फरीक एकरा के ना मनले आ अब सुप्रीम कोर्ट का सामने समस्या बा कि यदि ऊ कानून, साक्ष्य आ सबूत का आधार पर फैसला लेत बा त का निहित स्वार्थी राजनीतिक तत्व एकर नाजायज फायदा उठवला से बाज अइहें.
अतना त तय बा कि सन् 1992 वाला हालात आजु नइखे. समाज वैचारिक तौर पर बहुते आगा बढ़ आइल बा. एकर दू गो ज्वलंत सबूत सामने बा. पहिला कि, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसला सन् 2010 में आइल रहे त सभका अनेसा रहे कि देश में एक बार फेर से मजहबी उन्माद के लहर फइल जाई बाकिर वइसनका कुछ ना भइल आ दोसरा बेर जब जब ओह सोमार के सुप्रीम कोर्ट के फैसला आइल त देश में कतहीं कवनो सामाजिक हलचल ना भइल. एहसे मानल जा सकेला कि धार्मिक मुद्दा पर जनमत एने ओने ना जाई. हालांकि हो सकेला कि कुछ तत्व मजहबी फसाद भड़कावे के कोशिश करें बाकिर ई काम समाज के बुद्धिजीवियन के बा कि ऊ लोग अइसनका तत्वन के कोशिशन के नजरअंदाज कर देबे खातिर देश के मानस के तइयार करसु.
‘ये जब्र भी देखा है तवारीख की नजरों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पायी.’
पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.
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