– जयंती पांडेय
दू दिन पहिले पत्रकार अजीत दूबे जी भेंटइले. बड़ा सज्जन आदमी. कहले, जानऽ जा बाबा लस्टमानंद कि पपीता के पतई के रस पियला से डेंगू जइसन बेमारी भाग जाला. बाबा अचरज में पड़ले. तले संगे खड़ा रामचेला कहले, अजीत बाबा ठीके बोलऽतारे. हमहुं सुनले बानी कि बकरी के चार चम्मच दूध में पपीता के रस मिला के पियला से डेंगू जरि सोर से खतम हो जाई.
अब लस्टमानंद का करस. दूनू ओर दू जाना आ दुनू जाना डेंगू के दवा बतावऽता लोग. बाबा कहले, भाई हम त सोचले रहनी कि दिवाली में त पड़ाका के आवाज से डेरा के मच्छड़ भाग गइल होहिहें सन. इहां त अबले बाड़े सन आ लोग दवा ले के घुमऽता.
अब बाबा के इयाद परल कि अखबारनो में निकलल रहे कि बकरी के दूध से डेंगू ठीक हो जा ता. अचानक बकरी के दूध के दाम चढ़ गइल रहे. डाक्टर हरान, कि ऊ का करे डेंगू के दवा पर काम करे कि बकरी के दूध पर. काल्हु ले जवना बकरी के लोग चिकधन कहे, जेकर कवनो अवकात ना रहे ऊ आज फरका खड़ा मुस्किया तिया. आजादी के लड़ाई के समय गांधी बाबा बकरी के शान शौकत बनवले रहले, ओकर दूध पी के अंगरेजन के लतियवले रहले. उनका गइला के बाद त बकरिया के शाने ओरा गइल. आज त लोग बकरी के दूध पीयल छोड़ दिहले बा. बकरी जवान लोग के ना मार सके आ लईकन के ठुनिया देले त लोग ओकरा के चुरइल कहेला. गाय त उठा के पटकियो देले तबो लोग गउ माता कहेला. तबले सामने से पांड़े जी के बकरिया आ गइल. बाबा के बुझाइल ऊ बड़ा दुखी बिया.
एकरा बाद बात खतम हो गइल. रात में बाबा सुतले त ऊ बकरिये उनका मन में घूमत रहे. सुतले त सपना देखऽतारे कि बकरिया डेंगू के मच्छड़ से भेंट कइले बिया. ऊ मच्छड़वा से कहतिया कि ई आदमी लोग हमनी के कदर कबहुओ ना करी. जे करे के होई हमनिये के करे के होई. ई लोग त तहरा के माटी के तेल डाल के जरा दी, दवाई छिरिकवा के भगा दी चाहे ‘आल आउट’ लगा के आउट क दी. हमार हाल त अउरी खराब बा. लोग घास पात आगे बिग के दूह ले ला. हमरा सामने हमरा बच्चा सब के काट के खा जाला. छोट लईकन के दवा के रूप में हमरे दूध पियावेला आ गाय के माता कहि के बोलावेला लोग. अब बतावऽ डेंगू मच्छड़ राजा ई बेइज्जती कबले बर्दाश्त कइल जाउ.
मच्छड़ राजा वचन दिहले कि जा, बकरी बहिन जब जब ई आदमी हमरा हाथे लागी तब तब एकरा के छठी के दूध ना तहार दूध इयाद करवा देब. अभी अतने बात भइल कि बाबा लस्टमानंद के नींद टूट गइल. सबेर हो गइल रहे. राम चरन के रेडियो पर खबर आवत रहे कि देश के कई भाग में डेंगू फइल गइल बा. लोग कहऽता कि बकरी के दूध से एकर इलाज हो रहल बा. बकरी के दूध कई जगह पचास रुपया पउवा बिका रहल बा. लोग बकरी पोसे के सोच रहल बा. बकरी आपन इज्जत लवटत देख के बगल में खड़ा मेमियात रहे.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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