डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल के डायरी
प्राचार्य डॉ. संजय सिंह ‘सेंगर’
आजु स्टाफ रूम में इंस्पेक्शन के बात एक-एक क के उघरत रहे. हमरा प्राचार्य डॉ. संजय सिंह ‘सेंगर’ जी याद आ गइल रहीं आ हम भावुक हो गइल रहीं. 5 जनवरी के उहाँ से खड़े-खड़े भइल आधा घंटा के बतकही के एक-एक शब्द हमरा याद रहे. हमार कलिग लोग के भी आँखि भरि आइल. भइल ई रहे कि सेंगर जी का विद्यालय के एगो सब-स्टाफ के दूनो किडनी फेल हो गइल. ओकरा तीन गो लइकी रही सन आ एकहूँ के अभी बियाह ना भइल रहे. ओह गरीब परिवार के कमाई के साधन बस ईहे नोकरी रहे. घर-परिवार आ नाता-रिश्ता में केहूँ अइसन ना मिलल जेकर किडनी मैच करो. धीरे-धीरे एह परिवार के आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गइल. सेंगर जी के ब्लड ग्रुप मैच करत रहे. ऊ बिना घरे केहू के बतवले चुपचाप आपन किडनी ओह आदमी के दान क दिहले. अतने ना ओकराके तीन बोतल खूनो दिहले. ई राज घरे तब खुलल जब उनुका सङ के पढ़ल एगो डॉक्टर घरे आइल आ बचपनवाला स्टाइल में मुक्का-मुक्की शुरू कइलस. जसहीं जगह पर छुआइल कि ओकरा मुँह से निकलल- आरे तोर किडनी ? आ फेरु त हंगामा शुरू. पत्नी के मनावे में तीन दिन लागल. आजु ओह आदमी के मए लइकी बियहा के ससुरा चलि गइली सन आ ऊहो सामान्य जीवन जी रहल बा. सेंगर जी त एकदम फिटफाट रहीं. बिना कवनो लोभ के केहूँ चुपचाप अइसे मदद करे त ओकरा के का कहल जाउ ? साधारन आदमी त नाहिंए कहाई ऊ. ओह स्टाफ के एगो दमाद जवन बेंगलुरु में इंजीनियर बाटे, फ्लाइट से कोलकाता खाली उहाँसे मिले खाती आइल रहे.
कालिदास सर अपना एगो मित्र के अनुभव शेयर कइलीं. ऊ जापान गइल रहन. एक दिन ट्रेन में जवन बैग लेके बइठल रहन ओकर एक ओर के थोरे सिलाई टूटल रहे. एगो जापानी नागरिक के ओ पर नजर चलि गइल रहे. ऊ जब देखलसि कि ई ओने नइखन देखत त अपना बैग में से निडिलवाला मशीन निकललसि आ उनुकर आँखि बचावत बेगवा सी दिहलसि. अभी इनकर ध्यान ओह पर जाइत कि ओकरा पहिलहीं ओकर स्टेशन आ गइल आ बिना कुछ बतवले चुपचाप उतरि गइल. जहाँ का बच्चा-बच्चा में एह तरह के नैतिक मूल्य भरल गइल बा ओह देश के तरक्की भला कइसे रुकी ?
सुनील सिन्हा के स्तंभ
शुक के सुनील सिन्हा जी के भेजल “भोजपुरी पंचायत” के कई गो पहिले के अंक मिलल. हम दू महीना पहिले आग्रह कइले रहीं खास करके उहेंवाला स्तंभ पढ़े खातिर. उहाँके स्तंभ “आत्म-विश्वास” हम बहुत चाव से पढ़ींले. ओकर एक-एक बात जइसे हमरा मन का गहराई में उतरत जाला,काहेंकि एह प्रक्रिया में हमार पूरा विश्वास बाटे. एकरा पीछा ईहो एगो कारन हो सकेला कि दू साल पहिले हम गोवा जाके लीडरशिप के ट्रेनिंग लेले रहीं. अबहिंयो याद बा जब हमनीके मए साथी का मुँह से ईहे निकलल रहे कि कम से कम एक हप्ता अउर ट्रेनिंग के अवधि बढ़ि गइल रहित. रोज सात घंटा के पढाई होखे. बीच में खाली एक घंटा के ब्रेक. पढाई हमनी के अतना भावल कि ओह दौरान केहूँ के मोबाइल ऑन ना रहत रहे, ढेर से ढेर साइलेंट मोड में आ टॉयलेट जाए के त केहूँ नाँवे ना लेइ, डर रहे कि कुछ छूटि जाई. हमनी के अतना विश्वास हो गइल रहे कि कवनो विद्यार्थी के आसानी से पटरी पर ले आइल जा सकता, संसार के कवनो रोग से बिना दवा खइले छुटकारा पावल जा सकता, ढंग से काउंसिलिंग क दिहल जाव त केहू आत्महत्या ना करी कबो. हमरा एह बात पर सभ विश्वास ना कर पाई, ई हम जानतानी बाकिर हमरा विश्वास में आजुओ कवनो कमी नइखे आइल.
फेरु फगुआ बदनाम होई
फगुआ जइसे-जइसे नगिचात जाता, हमार साँस फूलल जाता. फेरु फगुआ बदनाम होई. रंग में हई गड़बड़ी होले त मिठाई हइसे बनतारी सन आजु-काल्हु. अब फूहर गाना बाजे शुरू हो जाई. हमरा आजु तक ना बुझाइल कि हमनी का खाली टिप्पणिए देबे खातिर पैदा भइल बानी जा कि कुछु करबो करबि जा. बाजारू रंग लगवला के बहुत नुकसान बा आ महङा रंग जे कीन सकता, ऊ दू चुटकी अबीरे से काम चला लेला भा छी-मानुख में ओकर होली निकलि जाले. त लोग रंग खेलल छोड़ि देसु ? रंगे से त होली हटे आ किसिम किसिम का रंगे से त जिनिगी बनेले. फेरु प्रिंट से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक के मन-मिजाज एक हप्ता पहिलहीं से सत्यानाशी भाषणबाजी से काहें रङा जाला ? अतने बा त तथाकथित बुद्धिजीवी लोग के दुअरा-दुअरा जाके लोगन के ज्ञान चक्षु खोलेके चाहीं. खाली मुँह के खुजली मिटवला से कुछु ना बदली, थोरे टाइम त निकालहीं के परी आ नवका पीढ़ी के फेसो करेके परी.
लेखको लोग सवाल का घेरा में
ई नीमन ना कहाई कि लेखको लोग अब सवाल का घेरा में आवे लगलन. ई का भइल कि जब देश में सब ठीकठाक बा त केहूँ के अनकस बरे लागता आ तनिक चिंताजनक भइला पर बिल्कुल मौन माने सभ नीमन चल रहल बा. जेकर गतिविधि राष्ट्रीय सुरक्षा का खिलाफ बाइ, ओकरा सङे बानी अपने सभ आ जेकरा के देश थू-थू कर रहल बा ओकरा बाहबाही में राउर कलम कवनो कोर-कसर नइखे छोड़त. अउर त अउर, जेकरा अनुशासनहीनता के दुष्प्रभाव देश भर के छात्रन पर पड़ रहल बा ओकरा के महिमामंडित करे में रउरा तनिको आहस ना लागे. बताईं ईहे लेखक के धर्म हटे ? रउरा एही स्वाभिमान के सम्मान होखेके चाहीं ? ई सभ जानता कि तरह-तरह के तर्क बनाम गलथेथई से कुछ बने ना, बिगड़बे करेला. हमरा खयाल से हमनी सभ लेखकन के राजनीति आ गोलबंदी से अलगे रहेके चाहीं. आजुओ लेखक लोगन पर से लोगन के भरोसा नइखे हटल.
तथाकथित अश्लीलता
एह घरी भोजपुरी के बहुत बिचित्र स्थिति हो गइल बा. जेकरे मन आवता ऊ अश्लील कहि देता भा दागदार बता देता. एह विषय पर ना चाहते हुए भी हमहूँ लिखलीं आ परिचर्चो आयोजित कइलीं. सोचलीं कि सत्य का ग्यान भइला का बाद ई कुल्हि बंद हो जाई बाकिर काहेंके ? कुछ लोग त बाकायदा झंडा उठाके चल देले बाड़न बिना ई जनले कि अश्लीलता के पैमाना का होई ? भोजपुरी बीर आ बहादुर लोगन के भाषा हटे. गारी-गलौज आ शृंगारिक हँसी-मजाक भोजपुरी के सुभाव हटे आ ई सभ भोजपुरिया के ताकत ह. सुनतानी कि कहीं-कहीं सरकारी फरमानो जारी होखे लागल बा आउर कुछ लोग त कानूने बनवावे पर आमादा हो गइल बाड़न. कहीं अइसन मत होखे कि एंटीबायोटिक का प्रयोग से ऊहो बैक्टीरिया मरि जा सन जवन हमनीके शरीर का सहज सुभाव के रक्षा करेलन स.
एही विषय पर बक्सर में एक बेर मनोज चौबे जी से बात होत रहे. उहाँका कहलीं कि आजु-काल्हु एकर झंडा उठाके जेतना लोग चल रहल बा ओहमें ऊहो लोग शामिल बा जे एह समस्या का मूल में बा. ओह तथाकथित साफ-सुथरा गायक लोग से भी पूछल जाएके चाहीं कि भोजपुरी गायकी में “चोली-साया” लेके के आइल. हमार माथा ठनकल. त ईहो अपना के निउज में बनवले राखेके एगो जरिया हो गइल बा ? फुहरकम केहूँ के नीक ना लागे, कवनो जुग में नइखे लागल त हमरा काहें लागी, बाकिर एक बेरि हिंदियो गीतन पर त ध्यान दीहल जाव, जवन घर-घर में लइका-लइकी सुनतारे सन. हम जानतानी कि ओहिजा रउरा अबस बानी, राउर कवनो कंट्रोल नइखे. ढेर से ढेर रउँआ एगो सेफ कमेंट मारबि- “ पता ना आजु-काल्हु के लइका का सुनतारे सन, हमनी का बेर त भिखारी ठाकुर के बिदेशिया आ महेंदर मिसिर के पुरबी के कवनो जोड़े ना रहे(भोजपुरी के बात करबि तब) नाहीं त रफी, मुकेश, लता आदि के नाँव लेबि आ आँखि बचाइबि. हमरा बुझाता कि जिम्मेदार पत्र-पत्रिकन के एकरा पर अभी दू-चार बेरि अउर जमिके काम करेके चाहीं. जरूरी ईहो बा कि जवन काम हो रहल बा ओकरा के कम से कम झंडावाला लोग जरूर पढ़सु. आम नागरिक के भी चाहीं कि उनुका आस-पास शृंगार रस का नाम पर केहूँ ऑडियो-वीडियो के ब्लू फिलिम चलावत होखे, भा ठेंठ भोजपुरी का नाँव पर गारी-गलौज के यथार्थ परोसत होखे, त ओकरा पर सभका सङे मिलिके लगाम लगावेके चाहीं. एह तरह के आचरण संस्कृति के विषय होला आ नैतिकता के परिसीमन आ नियंत्रण परिवारे आ समाज से शुरू होला.
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