बदलाव से सहमति

– इं॰ राजेश्वर सिंह

लाली के दर्जा पांच पास कइले के बाद छह से पढ़ाई खातिर दुइ किलोमीटर दूर बनल इन्टर कालेज में जाये के पड़ल. घर से तैयार होइके नव बजे सवेरे घर से निकले के पड़े. काहे से कि पइदले जाये के रहे. कवनो सवारी क साधन ना रहे. गांव टोला-मुहल्ला क अउरो लइकन क साथ मिल गइले से बोलत बतियावत डगर जल्दी से कट जाय. थकान ना लगे, लइका अउर लइकनी सभे केहू साथ रहे. चार बजे छुटटी भइले प भी तमाम लोग एक साथ निकरें अउर अपने-अपने घर की ओर मुड़त साथ छोड़त चलल करें. एहसे लवटतिओ में अकेल ना रहे के पड़े. केहू न केहू साथ रहबे करे. साथिन में केहू कवनो दर्जा में पढ़त रहे त केहू कवनो दर्जा में. दर्जा में घटल एकाध विनोदी घटना क चर्चा केहू न केहू कइ देवे जवना से हॅसी-खुसी क माहौल बन जाइल करे अउर भूख-पियास भा थकान क एहसास ना होखे. हॅंसत-विहसत सब घरे लवटे. एह तरह क बतकही कइले में रमेश क कवनो सानी ना रहे. रमेश दर्जा नव में पढ़त रहलन. ऊ लाली से तीन दर्जा आगे रहलन. जदि अपने से रमेश कवनो चर्चा ना सुरु करें त अउर लइके उनके कुछ कहि के उकसावें कि रमेस भइया काहें चुप बाड़? आज डॉंट पड़ि गइल कि केहू मास्टर पिटाई कइ दिहल? रमेस क चुप्पी टूटे अउर कुछ न कुछ बोले चालू हों जायॅं. बस ट्रान्जिस्टर चालू कइले क देरी रहे, कुछ न कुछ सुनही के मिले. राह कटत देरी ना लगे. रमेस में एगो गुन ईहो रहे कि जदि अपने कुछ सुनवले के मूड में ना रहें त जमात के कवनों न कवनो लइका के छेड़ि के वोहके कुछ बोले खातिर मजबूर कइ दें. जदि एक क बात ओरा जाय् त दूसरे के छेड़ि दें. एह तरह से स्कूल में गइल-आइल जारी रहे अउर एक एक दर्जा पास करत लइका लोग आगे बढ़त गइलन.

लाली गीत-गवंनई गवले में तेज रहली त रमेस चुटकुला सुनवले अउर एकांकी नाटक में चर्चित रहलन जवना से स्कूल में साल भर में मनावे वाले सगरो उत्सव चाहे पन्द्रह अगस्त रहे भा छब्बीस जनवरी, चाहे कवनो नेता क जनम दिन रहे भा स्कूल क सालगिरह सज्जो कुल्हि में ई दुनहुन जने क पूछ रहे अउर कुछ न कुछ हिस्सा लेबही के पड़े. एह कला से स्कूल के लइकन अउर मास्टर लोगन के बीच इन्हन लोगन क खूब पहचान बनल रहे.

किसोरावस्था के दलान में गोड़ रखत के समय लाली हाईस्कूल अउर रमेस इन्टर में पहुंच गइल रहलन. उमर क तकाजा रहे. चढ़ती उमरिया क आकर्षण क असर एह लोगन प होखे लागल. नतीजा ई भइल कि अब ई लोग एक दूसरे क अगोरा कई के सबेरे-साम स्कूले साथ-साथ गइले-अइले के अलावां स्कूल में भी मिलले अउर कुछ देर बतियावले क कोसिस कइल करें. साथी-संघतियन के एकाध बार टोकले से ई लोग लोक-लज्जा के मारे सबके नजर से बचले क कोसिस भी कइल करें जवना से बदनामी तक बात ना पहुंचल. रमेस इन्टर पास कइ के डिग्री कालेज में चल गइलन जवन इन्टर कालेज से तनी हट के रहे. एहसे मिलले जुलले क क्रम कुछ कम हो गइल. लेकिन अन्दर-अन्दर लगाव क कसक बढ़त गइल. चंचल-चपल भइले से रमेस डिग्री कालेज में लइकन क नेता भी हो गइलन जवना से दू-चार गो लइकन से हमेसा घिरल रहें. केहू क कवनों समस्या त केहू क कवनो समस्या. जदि केहू के समस्या क निदान ना करा पावें तब्बो समस्यबा त सुनहि के पड़े अउर कुछ न कुछ आस्वासन देबही के पड़े. समयाभाव भइले से लाली से मिलल-जुलल कम अपने आप हो गइल. जवना से सक-सुबहा क गुंजाइस कम हो गइल लेकिन अन्दरुनी लगाव कम ना भइल. मोबाइल फोन बात-चीत कराके एह लोगन क लगाव कल्ले-कल्ले बढा़वत रहें.

इन्टर कालेज में सालाना खेल-कूद क कार्यक्रम चलत रहे. रमेस भी इन्टर कालेज आइ के लाली से मिललन. दूनो जानी किनरा के थोड़ी एकान्त खोजि के बइठि के बतियावे लगलन. जदपि कि एहर-वोहर ताकि के देखल करें कि केहू देखत भा निगरानी करत त नइखे. लेकिन लाली के पड़ोस में रहे वाली दर्जा नव क पढ़वइया रानी कब एह लोगन के बतियावत देखि लिहलस ई लोग बतकही के सुर में जानि ना पवलन. रानी अपने घर लवटले प कवनो काम से लाली के घर गइल. ऊँहवा बात-बात में लाली अउर रमेस के एकान्त में बइठि के बात कइले क चर्चा उनके महतारी से कइ दिहलस. लाली के महतारी क माथा ठनकल. ऊ सोचे लगली की लइकनी सयान हो गइल बा. अब सादी-बियाह कइके बिदा कइ देवे के चाही नाहीं त कवनो बदनामीं क बात न हो जाय. कहॉं ले केहू पीछा करी अउर पहरेदारी करी. ऊमर त होइए चलल बा.

लाली के सादी बदे लइका खोजे क चर्चा करे खातिर मौका ताकि के लाली क महतारी उनका पिताजी के लगे गइली. कहे लगली, एजी! सुनत हई. देखीं लाली क उमर अब सादी लायक हो चलल बा. अपना साथी-संघतिया अउर बहनोई जी से लइका खोजे क जिक्र करी न. लइका तुरते त मिल ना जाला. देखत-सुनत तय-तुआ करत-धरत समय लगि जाला. लाली क बाऊ कहलन कि कवन जल्दी बा अबहिन तनी अउर पढ़ाई कइ लेबे द. लाली क महतारी फिरो जोर दे के लइका खोजे के कहली अउर ईहो कहली की पढ़ाई त सादी के बादो हो सकेला. देर कइला क काम नइखे.

लाली के बाऊ तेज-तर्रार मर्द रहलन गॉंव में उनका दबदबा रहे. मान मर्यादा के खिलाफ न त कउनों काम करें अउर न त केहू क बर्दास्त करें. बेबाकी खातिर उनकर सब केहूं सम्मान करें. कउनों पंचायत रहे त ऊ जरुर बोलावल जायं. बोलले में मसहूर रहें. लाली के शादी खातिर लइका खोजे खातिर अब ऊ अपने साथी-संघतिया में चर्चा सुरु कइलन. दू-चार रिस्तेदारनो में कहलन. अपने-अपने जानकारी के मुताबिक लोग लइकन के बारें में सूचित करे लगलन. जइसे-जइसे जानकारी मिले ऊ घरो में चर्चा चला दें. परिणाम भइल कि लालीओ जान गइली कि शादी खातिर लइका खोजात बाऽ. लाली ई जानकारी रमेस के दिहली. एक दूसरे से दूरी बढ़ले के अंदेशा से रमेस के मन में लाली के प्रति ललक अउर लाली के मन में रमेस के प्रति लगाव तेजी से बढे लगल. एक मुलाकात में दूनो लोग जग हसाई के किनार कइ के सादी रचवले क निर्णय ले लिहलन. बिरादरी अलग भइले से मां-बाप अउर परिवारजन क सहयोंग मिलले क कउनो उम्मीद ना देखात रहल. अब सादी क अन्जाम कइसे दिहल जा एकरे बारे में सोचे लगलन. अबहिन ई लोग कवनों रास्ता ना निकालि पवलन की लाली क बाऊ एक जगही सादी तय कइके जानकारी उनके महतारी के दिहलन. लालीओ जान गइली. लाली विरोध कइली कि अबहिन सादी ना करब. लाली के विरोध के महत्व ना देइ के उनकर पिताजी सादी क तिथि-दिन तय कइके रस्म-रिवाज आगे बढवले क तैयारी सुरु कइ दिहलन. लाली के लगल कि बाऊ मनिहे नाही. त ऊ स्पष्ट रुप से सादी से मना कइ दिहलीं. यहां तक कहि दिहली की सादी से पहिले हम घर छोड़ि के भाग जाब. लाली के बाऊ सोचे लगलन की लइकनी घर से भागि जाहू त हमरे इज्जत क का होई? केतना जग हसाइ होइ? समाज में हम का मुह देखाइब? ई कुल्हि सोचि के ऊ निर्णय लिहलन की अब लाली के घर से बाहर जाये ना देब. अब सादी के बादही ऊ बाहर निकली. ई तय कइ के ऊ मकान के ऊपर बनल एक कोठरी, जवना से सौचालयो जुड़ल रहे, में लाली के बन्द कइ दिहलन अउर घरबालन के हिदायत दिहलन की केहू बोली बात ना करी. उनके केहू अड़ोसी-पड़ोसी भा बाहरी आदमी से ना मिले दिहल जाय. मोबाइलो छिना गइल, लाली क सम्पर्क बाहरी दुनिया से टूट गइल. एक तरह से नजरबन्द हो गइली. बिना जेली क जेल पिजरा में जइसे चिरइ कैद कइ के राखत जाली ऊ हाल हो गइल. बस भोजन-पानी दे दिआव अउर कुछ से मतलब नाहीं. लाली क बात केहू सुनही के तैयार नाहीं. बेचारी लाली करे त का करे. खाना देबे जे आवे, खाना जंगला से अन्दर पकडा़ के चुप-चाप लौटि जाय. दू दिन बीति गइल. तिसरे दिन खाना लेइके संयोग से मौसी क लइका जवन सात-आठ साल क रहे आइल. ओकरा जेब में मोबाइल फोन रहें. बच्चा नादान रहल. लाली बड़े प्यार से कहली की बाबू तनी मोबइलवा देबऽ. देखीं कइसन बा ? पुचकारि के रोक लिहली देखले के बहाने मोबाइल लेइके फोन मिलवली. संयोग से फोन मिल गइल अउर थोड़े में आपन दास्तान सुना के रमेस से कहली कि चाहे जइसे होखे हमके इहवां से ले चलऽ. ई कहिके रोवे लगली.

लाली क बात अउर रोवाई सुनिके रमेस स्तब्ध हो गइलन. थोड़ी देर में संयत होके सोचे लगलन कि का करीं. आव देखलन न ताव झट से उठलन अपने तीन-चार संघतियन के लेइके थाना पर पहुँचि गइलन अउर दरोगा जी से पूरी बात बता के कहलन की चलीं लाली के छोड़ाईं. हम ओहसे सादी करे के तैयार हईं. ऊ तैयार हउए त हमरा से सादी करायी चाहे कोर्ट में, चाहे जइसे. दरोगा के लगल की लाली के साथ अन्याय हो रहल बा. दरोगा अपने तीन-चार सहायकन के लेइ के लाली के घर पहुँचि गइलन अउर कड़ा रुख अपना के लाली के छुड़ा के पुछलन की सादी कहॉं कइल चाहत हऊ? लाली अपनी सहमति रमेस के साथ दिहली. दूनो जनी वयस्क हो गइल रहलन. लाली, अउर रमेस के कोर्ट में दरोगा जी भेज के कहलन की जा सादी रचा के अपने घर ले जा. दरोगा जी लाली के बाऊ के अपने संघे थाना ले गइलन. वहॉ उनके नरम-गरम दिनभर समझवलन कि लइके सयान हो जालन त जोर जबरदस्ती ना करेके चाही. कवनो तरह क जोर-जवरदस्ती अपराध के श्रेणी में आवेला. हिन्दू धरम में लड़की क कवनो जाति-गोत्र ना होला. ऊ जवने कुल में बिआह के जाली ओही कुल क जाति अउर गोत्र उनकर हो जाला. खुसी-खुसी बिटिया जहॉं जात हउए जाये देई. आप जाईं अउर जश्न मना के खुसी जताईं. लइकन के आशीर्वाद देई. दरोगा जी क बात लाली के पिताजी के दिमागी में बइठल और दुइ दिन बाद रमेस के घर भात-भोज क आयोजन रहल ओह में जाइके सामिल भइलन. एतने नाहीं रमेस के पिताजी से गले मिल के इक्वान हजार रुपइया भेंट के रुप में देइ के आपन खुसी जतवलन. लइकी-लइका के माथे प हाथ धइ के भरल पंच के सामने आसीष दिहलन.


इं॰ राजेश्वर सिंह,
मूल निवास – गोपालपुर, गोला, गोरखपुर.
हाल फिलहाल – पटना में बिहार सरकार के वरिष्ठ लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण सलाहकार
उत्तर प्रदेश जल निगम से अधीक्षण अभियंता के पद से साल २०१० में सेवानिवृत
हिंदी में अनेके किताब प्रकाशित, भोजपुरी में “जिनगी क दूब हरियाइल”, आ “कल्यान क जुगति” प्रकाशित. अनेके साहित्यिक आ सांस्कृतिक संस्था से सम्मानित आ संबद्ध.
संपर्क फोन – 09798083163, 09415208520

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