( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )
धारावाहिक कड़ी के बरहवां परोस
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( सोचले त रहीं कि अबसे अंजोरिया पर भोजपुरी के कवनो रचना ना डालब बाकिर कुछ काम बाकी रह गइल बा. किरिया टूटे त टूटे वचन भंग ना होखे के चाहीं. एह चलते दयानन्द पाण्डेय जी के लिखल एह बहुचर्चित उपन्यास के अनुवाद पूरा करहीं के पड़ी. पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)
दोसरके दिन से राम निहोर के दशा में सचहूं सुधार आ गइल. अछूताह भलहीं रह गइलन बाकिर भोजन-पानी, बोली बर्ताव में राम किशोर आ ओकरा परिवार में बदलाव आ गइल. बाकिर राम निहोर मन ही मन दुखित रहलन. ई सोच-सोच के कि का ई अतना पापी हउवें जे एह स्वार्थी भाई से चिपकल पड़ल बाड़ें ? जवना भाई ला सगरी कमाई,सगरी जीवन न्यौछावर कर दिुलन उहे अइसन नीच आ स्वार्थी निकलल ? फेरु ऊ सोचलन कि अगर खेतो-बारी लिखियो देत बाड़त का गारंटी बा कि ऊ फेर उनुका साथे दुर्व्यवहार ना करी ? ऊ बहुते सोचलन बाकिर कवनो साफ फैसला ना ले पवलन.
हफ्ते दस दिन के आवभगत कइला का बादे राम किशोर आ उनुकर बेटन के दबाव अतना बढ़ गइल कि जल्दी से जल्दी बैनामा लिख दीं. आ ऊ आजु काल्हु पर टारत जासु. आखिरकार राम किशोर के बेटा उनुका के पीटल शुरु कर दिहलन सँ. पीट-पीट के दबाव बनावे लगलन सँ. आखिरकार ऊ ठेहुना रोप दिहलन. गइलन रजिस्ट्री आफ़िस. लिखत पढ़त के कार्रवाई शुरू भइल. ऐन समय पर ऊ बोललन, ‘बैनामा ना लिखब. बैनामा का हा वसीयत लिख देब.’ लवटानी में बीचे रास्ता में उनुकर जम के धुनाई भइल. राम किशोर के बड़का बेटा एक बेर उनुकर गरदन दबा के मारहूं के कोशिश कइलसि. हाथ पैर जोड़ के राम निहोर जान बचवलन. कहलन, ‘छोड़ द सँ हमरा केे ! बैनमे लिख देब.’
हताश मने घरे अइलम. बेमन से खाना खइलन. सूते गइलन बाकिर नीन रहुवे कहाँ आँखिन में ? अधरतिया जब सगरी गाँव सूतल रहल, ऊ उठलन आ घर-गांव छोड़ गइलन. सबेरे उठला पर जब राम किशोर के पता चलल कि राम निहोर भइया ग़ायब बाड़न त ओकर माथा ठनकल. हरान भइल बाकिर आपन हरानी केहू से जतवलसि ना. तबो गांव में गुपचुप ख़बर पसरिये गइल कि राम निहोर घर छोड़ के रातों-रात ग़ायब हो गइल बाड़न. दू तीन दिन बीतलो पर जब राम निहोर के पता ना लागल त राम किशोर अपना बेटन के भेज के सगरी हितइयन में छनवा मरलन. बाकिर राम निहोर ना भेंटइलन. पुलिस में उनुका गुमशुदगी के रिपोर्टो दर्ज करा दीहल गइल. ऊ तबो ना मिललन.
कुछ पन्दरह दिन बाद राम निहोर भेंटइलन बनारस में. गंगा नदी में डूबत घरी जल पुलिस के. नाव से ऊ बीचहीं में कूद गइल रहलन. हाय तौबा मचल, हल्ला हो गइल. जल पुलिस दउड़ल आ गोताख़ोर जवान उनुका के बचा लिहलन सँ. पुलिस उनुका के घाट पर ले आइल. भीड़ बिटोरा गइल. एक आदमी उनुका के चीन्ह गइल. कलकत्ता में ऊ राम निहोर का साथे नौकरी कर चुकल रहुवे. आ ओकरो गाँव राम निहोर के गांव का लगहीं रहल. राम निहोर का नियरा जब ऊ गइल त राम निहोर ओकरा के चिन्हतो अनचीन्ह बता दिहलन. बाकिर राम निहोर के जाने वाला ऊ आदमी ना हार मनलसि ना राम निहोर के छोड़ के गइल. निहोरा कर कर के ऊ राम निहोर के मनवा लिहलस. राम निहोर पिघलन आ ओकरा के अँकवारी में लेत फफक पड़लन. बोललन, ‘एह बुढ़ौती में आत्महत्या कवनो खुशी से त करत ना रहीं. बाकिर करीं का ? एह अभागा के त गंगो माई अपना गोदी में लेबे से मना कर दिहली. ‘ ऊ मानो पूछलन, ‘निःसंतान होखल का अतना बड़ पाप होला ? बाकिर एकरो में हमार कवन दोष ?’
राम निहोर के ऊ साथी उनुका के मना लिहलन आ भरोसा दिया दिहलसि. बहुते समुझवलसि-बुझवलसि. बाकिर राम निहोर अपना घरे भा गांवे लवटे ला कवनो कीमत पर तइयार ना भइलन. हार पाछ के ऊ उनुका के अपना घरे ले आइल. कुछ पन्दरह बीस दिन ओकरा साथे रहला का बाद राम निहोर तनिका थिरइलन आ अपना एगो बहिन का घरे जाए के मनसा जतवलन. साथी राम निहोर के उनुका बहिन का घरे चहुँपा दिहलसि. भाई के देखते बहिन फफक पड़ल. राम निहोरो रोवलें आ फफक-फफक के रोवलन. सगरी व्यथा-कथा आदि से अंत ले बतवलन आ कहलन कि अब ऊ अपना घरे आ गाँवे ना जइहें. बहिनो मान लिहलसि आ कहलसि, ‘अइसन पापियन का लगे गइला के ज़रूरतो नइखे. एहिजे रहीं आ जइसे हमहन का गुजर-बसर करत बानीं जा, रउओ रहीं, खाईं पिहीं.’
राम निहोर गदगद हो गइलन. बाकिर कुछ दिन बाद बहिन अपना छोट भाई राम अजोर के बेटा जगदीश के सनेसा भेज के अपना घरे बोलवली. ऊ आइल त राम निहोर के देखते, ‘बड़का बाबू जी, बड़का बाबू जी’ कहत उनुका से लिपट के फफके लागल. रामो निहोर फफक पड़लन. दू दिन रहला का दौरान जगदीश बड़का बाबू जी के सगरी कथा, अंतर्कथा, पीड़ा-व्यथा-अपमान-उपेक्षा आ लांछन के सगरी उपकथा सुन गइल. आ बोलल, ‘बड़का बाबू जी, रउरा ई सब कुछ भूले दीं आ हमरा साथे चलीं. हमरा किहां रहीं. हम भर ताकत राउर सेवा करब. हमरा कुछऊ ना चाहीं रउरा से. जवन खाएब, तवने खियाएब बाकिर रउरा मान सम्मान में इचिको रेघारी ना पड़े देब. आ जे रउरा मान सम्मान ओरि केहू फूटलो आंखि देखलस त ओकरो आँख फोड़ देब हम.
बहुत मुश्किल से राम निहोर राय गांवे आवे ला तइयार भइलन. आ पूरा गाँव में राम निहोर के वापसी के ख़ुशी पसर गइल. आ साथही राम किशोर आ ओकरा परिवार के थू-थूओ. जगदीश जवना भरोसा से राम निहोर के ले आइल रहल ओही निष्ठा से उनुका सेवो टहल में लाग गइल. उनुका चर्मो रोग के परवाह ना कइलसि, ना त उनुका ला बरतन बासन अलगा कइलसि, ना ओढ़ना-बिछवना. उनुका ला नया एक जोड़ी धोती कुर्ता, अंगोछा, बंडी आ जंघियो ख़रीद दिहलसि. राम निहोर ई प्यार आ सम्मान पा के पुलकित हो गइलन. पुलकितो भइलन आ लजाइयो गइलन. कि जवना भाई के ऊ अपना कमाई आ जायदाद के शतांशो ना दिहलन ओही छोट भाई के बेटा बेटा निःस्वार्थ उनुकर सेवा करत बा. जगदीश के पिता राम अजोरो अपना बड़का भाई के सहजे भाव से लिहलन. राम निहोर के जिनिगी में अब सुखे-सुख रहल. ऊ फेरु गांव के मंदिर में पुजारी जी का साथे पूजा-पाठ में रम गइलन. एक दिन दुपहरिया में राम निहोर छोटका भाई राम अजोर आ भतीजा जगदीश के अपना लगे बईठवलन आ कहलन कि, ‘आपन सगरी खेती बारी जगदीश के नांवे लिखल चाहत बानीं.’
‘ना बड़का बाबू जी अइसन मत करीं.’ जगदीश बोलल.
‘काहें ?’ राम निहोर बोललन, ‘काहें ना करीं करूं?’
‘एहसे कि ई उचित ना होखी.’ जगदीश बोलल, ‘रउरा लिखहीं के बा त दुनु भाइयन के आधा-आधा लिख दीं. इहे न्याय होखी.’
‘ना ई त अन्याय हो जाई.’ राम निहोर बोललन, ‘राम किशोर आ ओकर बेटा सब जवन हमरा साथे कइले बाड़न से ओकरा के हम अगिला सात जनम का सउवो जनम में भुला ना पाएब. हम त ओहनी के धूरो नइखीं देबे वाला चाहे जवन हो जाव.’
‘चलीं एह पर फेरु ठंडा दिमाग़ से सोच के फ़ैसला करब. अबहीं रउरा परेशान बानीं.’ रामो अजोर कहलन.
‘फै़सला त हो चुकल बा. अब कुछ सोचे-समुझे के नइखे.’
‘बाकिर लोग का कही बड़का बाबू जी!’ जगदीश बोलल, ‘लोग त इहे कही कि हमनी का रउरा के फुसला लिहनी स.’
‘हम कवनो दूध पीता बच्चा त हईं ना. कि तू लोग हमरा के फुसला लेबऽ. अरे फुसला त ऊ सभ रहले सँ.’ ऊ बोललन, ‘फेर ई फै़सला त हमार आपन ह. तू लोग त हमरा से कबो कुछ कहलऽ ना.’
‘तबहियों लोक लाज त बड़ले बा. लोग हमनिऐ के बेईमान कहे लागी.’
‘कईसे बेईमान कहे लागी?’ राम निहोर बोललन, ‘जीवन भर के कमाई ओहनी के सँउप दिहनी. मकान बनवा दिहनी. अब खेत बधार तोहरा लोग के देत बानी. हिसाब बराबर.’
‘बाकिर राउर खेतो त अबहीं उहे लोग जोतत बा. ओही लोग के कब्जा बा.’
‘खेत पहिले बैनामा कर देब, फेरु क़ब्ज़ो ले लेब.’ ऊ कहलन, ‘अबहीं ऊ सब जोतले-बोवले बाड़न स. केट लेबे द, फेरु अगिला बेर से तू लोग जोतीहऽ बोईहऽ.’
आ सचहूं राम निहोर अपना हिस्सा के सगरी खेत-बधार जगदीश का नामे लिख दिहलन. आ फसल कटला का बाद खेतो ले लिहलन राम किशोर से. बाकिर अबहीं ले राम किशोर भा केहू के पता ना भइल रहे कि राम निहोर सब कुछ जगदीश का नामे लिख दिहले बाड़न. हँ, ई अंदाज़ा ज़रूर लगा लिहले रहे लोग कि अब राम निहोर भइया खेत बारी जगदीश का नामे लिख सकेलें. एकरा के रोके खातिर राम किशोर के परिवार एगो वकील से सलाहो लिहल लोग किे कइसे रोकल जा सकेला. वकील बतवलन कि अगर पुश्तैनी जायदाद ह, माने कि पैतृक ह त मुक़दमा कर के रोकल जा सकेला. खसरा, खतौनी आ ज़रूरी काग़ज़ात मंगववलन. तब पता चलल कि राम निहोर त बैनामा करियो दिहले बाड़न. राम किशोर धक से रह गइलन. वकील कहलन कि मुक़दमा त अबहियों हो सकेला अगर दाखि़ल ख़ारिज ना भइल होखे. मालूम कइल गइल त पता चलल कि दाखि़ल ख़ारिज अबहीं ले नइखे भइल. फेर त ढेरहन मनगढ़ंत बात जोड़त दाखि़ल ख़ारिज रोके ला मुक़दमा कर दिहलन राम किशोर. अब राम किशोर आ राम अजोर जानी दुश्मन हो गइलन. दुनू के घरन का बीचे छत बराबर बाउंड्री खड़ा हो गइल. ओह लोग का बेटन का बीच बात-बात पर लाठी भाला निकले लागल.
एक दिन राम निहोर आ राम किशोर आमना-सामन पड़ गइलन. राम किशोर के देखते राम निहोर कहलन कि, ‘पापी तोरा नरको में जगहा ना मिली.’
‘नरक त रउरा अबहियें झेलत बानी कोढ़ी हो के.’ राम निहोर के चर्म रोग इंगित करत राम किशोर दांत किचकिचात कह दिहलसि. बात बढ़ गइल. हमेशा शांत रहे वाला राम निहोर राम किशोर के मारे लपकलन. रामो किशोर राम निहोर का ओरि मारे ला लपकल. अबहीं बात हाथापाईए ले आइल रहल कि गांव के कुछ लोग आ गइल आ बीच बचाव करत छोड़वा दिहलसि. एक आदमी बोलल, ‘राम निहोर चाचा रउरो एह उमिर में एह पापी का मुंहे लागत बानीं ?’
त राम किशोर ओकरो पर किचकिचा गइल. राम निहोर मूड़ी झुकावत घरे आ गइलन. घर में सगरी हाल बतवलन. जगदीश कहलसि कि, ‘बड़का बाबू जी अब से रउरा घर से कतहूं अकेले मत जाइल करीं. ‘
राम निहोर मान गइलन बाकिर राम किशोर ना मानल. राम निहोर के सगरी खेती-बधार अपना हाथ से निकलल जात देखल ओकरा बरदाश्त ना होखत रहे. कहां त ऊ सोचले रहल कि ओकरा दुनू बेटन का नामे जगदीशे का बराबर खेती होखी. आ एहिजा जगदीश का लगे ओकरा बेटन से चार गुना खेत हो गइल. ऊ चिंता में गलल जात रहुवे. हफ़्ते भर में ओकर ब्लड प्रेशर ज़्यादा अतना बढ़ गइल कि ओकरा लकवा मार दिहलसि. दहिना हिस्सा पूरा के पूरा लकवाग्रस्त. डाक्टर बहुते इलाज कइलन बाकिर कवनो ख़ास सुधार ना भइल. अब राम किशोर बिछवना पर पड़ल रहलन गाँव के लोग कहे लागल कि ओकरा पाप के सजा जियते जिनिगी मिल गइल राम किशोर के. राम निहोर के साथ ओकर दुर्व्यवहार, ओकर बेइमानी लोगन का ज़बान पर रहे लागल. ओकरा साथे इक्का-दुक्का छोड़ केहू के सहानुभूति ना भइल.
बाकिर राम निहोर के भइल आखिर छोट भाई रहल राम किशोर. से राम निहोर गइबो कइलन ओकरा के देखे. ओकरा माथ पर हाथ फेरत ओकरा के तोस दिहलन आ हाथ ऊपर उठा के कहलन कि, ‘भगवान जी सब ठीक करिहेंं.’
‘बड़का भइया!’ कहत रामो किशोर फफके लागल. बाकिर आवाज साफ ना निकलत रहुवे. आवाज़ लटपटा गइल रहल. चिंतित राम निहोर घरे लवटलें. राम अजोर से बोललें, ‘हमरा घर के सुख पर कवनो के नज़र लाग गइल. थाना, मुक़दमा हो गइल. हमरा ई बेमारी हो गइल, राम किशोर बिछवना धर लिहलसि.’ राम अजोर उनुका बात पर ग़ौर ना कइलन त राम निहोर तड़प कर बोललें, ‘आखि़र हमनी का हईं सँ त एके ख़ून! मुनीश्वर राय का संतान !’
राम अजोर समझ गइलन कि बड़का भइया भावुक हो गइल बाड़न. दिन बीतत गइल आ मुक़दमा चलत गइल. घर का बीचे के देवारो से बड़हन देवार दिलन में बनत गइल. इहाँ ले कि ख़ुशी, त्यौहार आ शादिओ बिआह में राम किशोर आ राम अजोर के परिवार में आना जाना बातचीत सब बंद हो गइल. लोगन के लागे लागल कि कि कहियो ना कहियो राम किशोर के लड़िका राम अजोर के लड़िका जगदीश कर ख़ून दिहें सँ. कुछ लोग जगदीश के समुझइबो कइल कि, ‘अब से राम निहोर के हिस्सा के खेत बारी आधा-आधा कर लऽ ना त कवनो दिन ख़ूनी लड़ाई छिड़ जाई.’ जगदीश त मन मार के तइयारो होखे लागल बाकिर राम निहोर एको पइसा एह से सहमत ना भइलन. ऊ जगदीश के गीता के कुछ सुभाषित सुनावत कहलन कि, ‘डेरा के मत रहल करऽ.’
‘जी बड़का बाबू जी!’ जगदीशो मान गइल.
(कहानी अबहीं बाकी बा. भगवान उमिर देसु कि पूरा सुना लीं. – अनुवादक)
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