भोजपुरी इंटरव्यू गायकी फिसल गयी लेकिन एक्टिंग में जम गया – मनोज द्विवेदी

ManojDwivedi
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रहने वाले मनोज द्विवेदी मुंबई आए थे गायक बनने, मगर बन गए एक्टर. वे मानते हैं कि उन्हें कामयाबी पहले ही मिल गई थी लेकिन वे उसे समझ नहीं पाए और इसलिए भुना नहीं पाए. अब फिर एक बार पूरी तरह से एक्टिंग की ऊंचाई छूने की कोशिश में हैं. उनसे हुई बातचीत के अंश :

मुंबई क्या सोचकर आए थे और वहां तक पहुंचने में कितने सफल हुए?
गायक बनने वर्ष 2000 में मुंबई आया था. बचपन से गायकी का शौक था. हालांकि घरवाले चाहते थे कि पढ़-लिखकर कुछ बड़ा पद पा लूं. पढ़ाई-लिखाई कुशीनगर में हुई. मैं यहीं पैदा हुआ. पॉलिटिकल साइंस में दिलचस्पी थी मगर मन के किसी कोने में गायक बनने की इच्छा ज्यादा प्रबल थी. लोग मेरी गायकी की तारीफ करते थे. मुझे भी लगा कि इसके लिए मुंबई जाना ही पड़ेगा. यहां आया लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ कर नहीं पाया. एक-दो अलबम बनाकर खुद को स्थापित करने की कोशिश की लेकिन अच्छा रिस्पांस नहीं मिला. अचानक लगा कि सपना टूट जाएगा, तब खुद को संभालने की कोशिश में असिस्टेंट डायरेक्टर बन गया. कई हिन्दी निर्देशकों के साथ काम किया. इससे तकनीकी जानकारी मिल गई. उसी दौरान यह सुझाव आया कि एक्टिंग करना शुरू कर दूं. छोटे-छोटे रोल मिलने लगे. उससे आत्मविास बढ़ने लगा और यह भी उम्मीद जगी कि मुंबई मुझे अब कुछ देने वाली है. आज मैं यह कहने की स्थिति में हूं कि मेरे दिन बदल रहे हैं. हालांकि कुछ समय पहले कामयाबी का स्वाद चख लिया था. मगर उसे या तो समझ नहीं पाया या कुछ भूल हो गई. वह दिन हाथ से फिसल गया.

यह कामयाबी भोजपुरी फिल्मों में एक्टिंग की थी या हिन्दी में बतौर सहायक निर्देशक की?
एक्टिंग में काफी अच्छे मौके मिले . अपने आपको स्थापित भी किया. इंडस्ट्री ने काम दिया और लोगों ने तारीफ की. पहला मौका बृजभूषण जी ने फिल्म ‘गंगा मिले सागर से‘ में सह नायक की भूमिका देकर मेरा उत्साह बढ़ाया. उसके बाद राजकुमार पाण्डे, बालकिशन, मंजुल ठाकुर आदि ने अपनी-अपनी फिल्मों में सेकेंड लीड दिया. लीड रोल करने का मौका केशवजी ने ‘कब आई डोलिया हमार‘ में दिया. यहीं से कामयाबी का सिलसिला चल पड़ा. ‘कट्टा तनल दुपट्टा पे‘, ‘ठोक देव‘ जैसी फिल्मों से बहुत फायदा मिला. पिछले दिनों रिलीज हु ई निर्माता अखिलेश सिंह की फिल्म ‘लहू पुकारे ला‘ की बहुत प्रशंसा हुई. इसके निर्देशक हैं मंजुल ठाकुर. मैं इस बात से खुश हूं कि निर्माता-निर्देशक ने मुझ पर भरोसा किया. इस फिल्म से मुझे बहुत फायदा मिल रहा है. मंजुल ठाकुर की दो फिल्मों के अलावा बबलू सिंह और शिवा त्रिपाठी के साथ भी आने वाला हूं.

अब तो आपकी रोजी-रोटी की समस्या खत्म हो गई होगी?
मैं यहां सिर्फ रोजी-रोटी के लिए नहीं, कुछ बड़ा करने आया हूं. गायकी फिसल गई लेकिन एक्टिंग में जम गया. मुझे बचपन से एक्टिंग का भी शौक था. मिथुन चक्रवर्ती का फैन था. आज भी उनके साथ काम करने की इच्छा है. हालांकि पहले परिवार के लोग मुझसे नाराज थे, अब वे खुश हैं. उनकी उम्मीदों पर खरा उतर रहा हूं. सबसे ज्यादा सपोर्ट मां ने किया. अब अपनी नई कामयाबी को मां को समर्पित करूंगा. चाहता तो हिन्दी में भी काम कर सकता था लेकिन वहां संघर्ष ज्यादा था. भोजपुरी मेरी मातृभाषा है, यहां सारे लोग अपने जैसे लगे. इसलिए यहां काम करना आसान हो गया है. हां, अगर हिन्दी में कुछ अच्छा मौका मिला तो वह जरूर करूंगा.


(संजय भूषण पटियाला)

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