– जयंती पांडेय
रामचेला एगो कागज हाथ में ले ले रहले. ओहमें कुछ लिखल रहे. ऊ कागज के रामचेला बाबा लस्टमानंद के देखवले. बाबा कहले ई सर्वे हऽ एह में लिखल बा कि मेहरारू सब दिन में माने कि 12 घंटा में 5 घंटा खाली बतियावेली सन. रामचेला कहले, बाबा ई पांच घंटा कुछ बेसी नईखे का?
बाबा कहले, ना हो, जे मरद के डर ना होखो आ काम ना होखो तऽ मेहरारू दरबार पांच घंटा से बेसी बतिया लिहें सन.
का बतियावेली सन हो बाबा?
अरे रामचेला बाते के कमी बा. अगर तनिको पढ़ल लिखल होइहें सन तऽ कवनो सीरियले के बात ले के बइठ जइहें सन.
लेकिन बाबा ई तऽ गप्प ना भइल. ई सीरियल के बात भइल. बाबा कहले – भाई तू नइखऽ जानत. सीरियल के कहानी तऽ खाली आधार हऽ. एह में आस पास के सास बहू चाहे मेहरारून के जोड़ल जाला. ओकनिये पर पड़तर गिरावल जाला. मेहरारून के बात के कवनो टुकड़ा खांड़ा धरा दऽ आ ओकरा के तान के लमहर थान बना दिहें सन. मरद लोग अपना बात में विचार डाले ला लोग आ मेहरारू लोग बात के रबड़ बना देला लोग. ई मेहरारू सब आपस में एक तरह के बात करत- करत बोर ना होली सन.
रामचेला कहले एही से ऊ सब पिछड़ल बानी सन आ सरकार के ओकनी के आरक्षण देवे के दरकार पड़ऽता.
फेर रामचेला, तू फेर गलती करऽ तारऽ. पिछड़ल बाड़ी सन खाली गांव के मेहरारू सब. जे शहर में रहेली सन आ आफिस वगैरह में काम करऽतारी सन ओकनी का बड़ा चालू होली सन. गपवा ओतने करिहें सन आ केतना मरद लोग बा कि साथ काम करे वाला मरदाना लोग ओकनी के काम पूरा करे ला.
अतना बोलला से ओकनी के मुंह ना दुखाला?
अरे रामचेला बोलले तऽ ओकनी के ताकत हऽ.
दू गो मेहरारू जे बइठल रहिहें सन आ ना बोलिहें सन तऽ एकर माने बा कि ऊ सास-पतोह हई सन. ना तऽ अपना देस में अबले अइसन नइखे देखल गइल. अक्सर मेहरारू लोग खाना दे के पानी ले आावे जाला तऽ रस्ता में केहु से बतियावे लागि लोग आ तले खइनिहार के खाना खतम आ पानी के बिना बइठल बा. आ टोक दऽ तऽ देखऽ मजा.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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