राकेश कुमार पाण्डेय के दू गो कविता


– राकेश कुमार पाण्डेय

(1)

माटी धूर क गंवई जिनगी, गइया भईंस चराईं।
खेती-बारी भीर बहुत बा, फुरसत ना हम पाईं।
भोरहटिये से सानी-पानी, चउवा नाद लगाईं।
गोबर-गोंइठा दूधवा दूहत, दुपहर होत नहाईं।

छोट मनई छोटकन के संघी, आपन काम चलाईं।
हाकिम-हुक्का साहेब-सुब्बा, लमहीं से घबराईं।
दुआ-सलामी रम-रम्मी बस, सबकर साथ निभाईं।
टेंट में कहवां रुपिया भइया, केहू से अझुराईं।

बड़ा बेकार जमाना ई हऽ, कइसों बचीं-बचाईं।
आपन नेम-धरम आ कारज, अपने कामे आई।
दर-दयाद त घात में झुट्ठे, अंइठल रहें बताईं।
इरखा पालि के बइठल झुठहीं, छाती फारि देखाईं।

खलीहर लुक्खा काम धाम ना, करेलें चुगुलाई।
कइसे बढ़त झिंगुरिया आगे, कइसे टांग खिंचाई।
भयबद्दी ना आपुस रगरा, केकरा के समुझाई।
कार-परोजन बफर क आइल, गउवां गइल बंटाई।

पत्तल-पुरुवा गइल जमाना, देखलीं जो लरिकाईं।
सबही मिलि-जुल भात बनावे, अब त बढ़ल बा खाईं।
बिनु झगरा के मूंह फुलवले, रस्ता रोकल जाई।
बही पनारा सड़की पर हो, झाड़ा सड़क फिराई।

अपने काम से छुट्टी कहवां, नेउता नात हिताई।
जोरते-तोरत गइल उमिरिया, नूने तेल दवाई।
सीजन अवते चिंता भारू, खेती खाद जोताई।
घरनी ओरहन अलगे सुनते, छागल कहां किनाई।

कुल्ही महंग बा गिट्टी-बालू, कइसे टीन धराई।
मड़ई छावे वाला केहु ना, हूनर कहाँ से आई।
नवा जमाना नई कहानी, आइल नई पढ़ाई।
टेल्हुआ मांगे नई मोबाइल, कइसे कीनि दिआई।

आनलाइन महटर अब लउकें, का इस्कूले जाईं।
कउवा खरहा ना अब पढ़े, डॉगी कैट सुनाई।
एक इकाई दुइ इकाई, अब ना लिक्खे पाई।
टाई बान्हि के वन टू थीरी, नन्हका मोर सुनाई।

माई बाबू पहिले छोड़लस, हमहूं डैड कहाईं।
बनल बजार भोजपुरियो छोड़लस, लिक्खीं का कविताई।
देखते-देखत बदलल भइया, भाव-विचार-पढ़ाई।
पठशाला में हमहूं पढ़लीं, गइलीं हम पछुआई।

(2)

जीउ छुछुआत बा कविता लिखात बा।
गरमी क पेट फाटत देंह खजुआत बा।
डाहत घाम बा झंउसल चाम बा।
छाँह में अराम कहां बेनवें हंकात बा।

कउनो त काम ना खलीहर त झाम ना।
झिंगना के मड़ई में तसवे फेंटात बा।
गुटखा पुकार बा ताड़ी क ढेकार बा।
संझवा के हिक भर दरुवे पिआत बा।

बरखा के आस ना गोरुअन के घास ना।
झोंकरल चरी मूंग चिचुकल तोरात बा।
बरसी अषाढ़ ना बेहन में बाढ़ ना।
धरती झुराइल खेत कोंहड़ा सुखात बा।

तर-तरकारी ना अमवों के फारी ना।
रहर क दाल महंग भिंडी तोरात बा।
गर-गिरहस्थी में कवन चीज सस्ती में।
आवे जो चुनाव कवनों रुपये भेंटात बा।

जांगरे ना काम का बइठल अराम बा।
झुठवें कहत बाड़ीं रोजी ना हेरात बा।
मजा बा तास में मेहरी के पास में।
बतिये आ जतिये पर दोसवा गिनात बा़।

(3)
राकेश कुमार पाण्डेय के लिखल एगो कविता मशहूर भोजपुरी गायक भरत शर्मा के आवाज में –

राकेश कुमार पाण्डेय (शिक्षक)
हुरमुजपुर, सादात, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश, पिन कोड-275204

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