धार्मिक नगरी वाराणसी के ऐतिहासिक रामनगर के रामलीला हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक कहल जा सकेला आ एहिजा के मुसलमान पीढ़ी दर पीढ़ी एह परंपरा के निबाहत आवत बाड़े.
रामलीला के समय सीधे भा घुमा के आजुओ ढेरे मुसलमान एकरा तइयारी से जुड़ल होले. लीला के पोशाक बनावे के काम होखो भा महताब जरावे के भा रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण वगैरह के पुतला बनावे के काम सगरी एहीजा के मुसलमाने करेले,
श्रीराम विवाह खातिर मँडवा मण्डप बनावे के कामो इहे लोग करेला कुछ लोग के एह काम मे पाँचवा पीढ़ी लागल बा.
जानकार बतावेले कि बटाऊबीर निवासी हाजी अली हुसैन एह परम्परा के शुरुआत कइले रहले, उनकर पँचवी अजुवो एह काम में लागल बिया. मुसलमानन के अनेके परिवार पूरा मन लगा के पुतला आ महताबी के इन्तजाम मे लागल रहेले. पुतला का अलावे गाय, हंस, मोर, कौआ, हाथी, आ घोड़ो के पुतला बनावेला ई लोग.
सबले बड़हन पुतला रावण के होला. एकरा बाद मेघनाद, कुम्भकर्ण, ताडका आ सुरसा के पुतला के आकार होला.
मुसलमानन के जुडाव काशी नरेशन का साथे अइसहीं ना हो गइल. बनारस स्टेट के राजा लोग मुसलमानन के राज में बसवले आ ओह लोग के धार्मिक आयोजनन के पूरा सहयोग दिहले. एकरे नतीजा ह कि महाराज ईश्वरी नारायण सिंह के मन्नत के ढुलढुल सुन्नी सम्प्रदाय के लोग निकालेला आ काशी नरेश के मन्नत के तजियो रखाला.
सवा दू सौ साल पुरान रामनगर के रामलीला हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक त बड़ले बा, भारतीय संस्कृति, परम्परा, आ भाईचारो के प्रचार प्रसार मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेला.
(वार्ता)
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