– जयंती पांडेय
बाबा लस्टमानंद सबेरहीं से उदास बइठल रहले. रामचेला खेत कियोर से घूम घाम के अइले आ जब बाबा के दंडवत कऽ के उनकर मुंह देखले तऽ चिहुक उठले. अरे हरदम हंसे वाला बाबा उदास बइठल बाड़े. रामचेला कहले, ‘का हो बाबा काहे उदासल बाड़ऽ, भईंसिया पाड़ा बियाइल बिया काऽ?’
बाबा कहले, ‘ना हो रामचेला. ई बात ना हऽ. हम तऽ राते एगो सपना देखले बानी आ ओही से उदास बानी.’
‘का देखलऽ हो?’
बाबा कहले, ‘हम रात एगो सपना देखनी कि मोदी जी के नींद अधरतिये टूट गइल बा. आ ऊ अपना बिस्वना पर बईठल बाड़े आ सामने एगो लईकी खड़ा बिया. हम चिहुंक गइनी कि भइयवा के पलंग प लईकी का करऽतिया पर बाद में पता चलल कि ऊ तऽ मंहगी रहे. मोदी जी देख के खिसिया गइले आ कहले, अरे, डइनिया तें एहिजा काहे रे? भाग इहां से. महंगी अंड़च के बोललस कि. हो भइया, तहरा अइसन हमरो मन करऽता कि कुछ अउर जियादा आगे बढ़ल जाउ. मोदी जी एकदम जामा से बाहर हो गइले, कहले, अरे मुंहजोर मेहरारू तोर ई मजाल कि तें हमरा सामने हमार नकल करे.’
ऊ हंसलऽस, ‘काहे ना. जब तहार मंत्री, नेता अफसर, चमचा, इहां ले कि संघ सब लोग तहार नकल करऽता आ तहरा अच्छा लागऽता तऽ हमार नकल काहे खराब लागऽता?’
मोदी तुरंते बात बदल दिहले आ कहले, ‘चल भाग इहां से. तोरा तऽ अबले चल जाये के चाहीं.’
महंगी कहलस कि, ‘हम कवनों बीतल समय ना हईं कि चल गइनी त लवटब ना. आ हम गइनीं कब? हँ, तहरा आवे के हाला में लोग हमरा जाये से जोड़ के देखे लागल.’
मोदी जी खिसिया के कहले, ‘अरे तोरा हमरा से डर ना लागे?’
महंगी हंसलस आ लहक के कहलस, ‘अरे, तहरा से काहे डेराईं. हम ना तहार मंत्री हईं आ ना अल्पसंख्यक कि तहरा से डेरा जाई. लोग के डेरावाये में हम तहरा से उनइस ना होखब एकईस होखब. जनलऽ?’
मोदी जी अउरी जोर से खिसिअइले, आ कहले कि, ‘हमरा पर रोब मत दे मेहरारू. हमार रोब तऽ ओबामा जी ले माने ले.’
महंगी कहलस, ‘तहरा से बेसी तऽ ऊ हमरा से डेराले. तहार रोब मानऽत होइहें हमरा से तऽ ऊ डरे कांपे ले.’
महंगी कहलस, ‘हमार एगो प्रस्ताव बा, सुनऽबऽ?’
मोदी जी गुरना के देखले आ कहले, ‘बोल.’
‘ऊ का हऽ कि म से मोदी आ म से महंगी. हमार तहार एके राशि बा. काहे ना हमनी के संगे रहल जाउ?’
अतना सुनिके मोदी जी के बोलती बंद हो गइल आ एतने पर रामचेला हमार नींद टूट गइल. तबसे हम इहे सोचऽतानी कि जे मोदी जी आ महंगी संगहे रही लोग तऽ हमनी के का होई?
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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