भोलानाथ गहमरी जी के लिखल एगो निर्गुन

कवने खोतवा में लुकइलू आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई.

बन बन ढुंढली, दर दर ढुंढलीं, ढुंढलीं नदी का तीरे,
साँझ के  ढुंढली, राति के ढुंढली, ढुंढली होत फजीरे
जन में ढुंढली, मन में ढुंढली, ढुंढली बीच बजारे
हिया हिया में पईठ के ढुंढली, ढुंढली बीरह का मारे
कवने अँतरे में समइलु, आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई.

गीत के हम हर कड़ी से पुछलीं, पुछलीं रात मिलन से
छन्द छन्द लय ताल से पुछलीं, पुछलीं सुर के मन से
किरन किरन से जा के पुछलीं, पुछलीं नील गगन से
धरती और पाताल से पुछलीं, पुछलीं मस्त पवन से
कवने सुगना पर लुभइलु, आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई.

मन्दिर से मस्जिद ले देखनी, गिरिजा से गुरुद्वारा
गीता और कुरान में देखनी, देखनी तीरथ सारा
पण्डित से मुल्ला तक देखनीं, देखनी घरे कसाई
सगरी उमिरिया छछनत जियरा कइसे तोहके पाईं
कवने बतिया पर कोन्हइलू आहि रे बालम चिरई, आहि रे बालम चिरई.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के मशहूर गाँव गहमर के निवासी स्व. भोलानाथ गहमरी जी गीत-गायन के तमाम विधन में पारंगत रहनी. ई निर्गुन उहाँ के मशहूर गीत हउवे जवना के मोहम्मद खलील जी गवले रहनी. पटना आकाशवाणी से एक जमाना में खलील जी के गावल गीत खूब प्रसारित होखत करे आ कार्यक्रम बहुते लोकप्रियो रहल. ओह घरी गहमरी जी पटना आकाशवाणी में स्वर-परीक्षक आ सलाहकारो रहीं.

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *