राजा आ लोक कवि

Dr.Ashok Dvivedi

– डा॰अशोक द्विवेदी

सिंहासन पर बइठल राजा के
अझुराइल रहला खातिर
जुटावल जाला कतने सरंजाम.

जइसे मारकाट के खेल
भुखाइल, खूनी बाघ से
निहत्था आदमी क लड़ाई.
जइसे नाच गाना के महफिल
आ शेरो-शायरी से बड़ाई
खास नर्तकियन के पेशी.
पाँच रानियन से
अतृ्प्त — उबियाइल मन के
मोर बनावे खातिर, राजा करेला
नया कमसिन सुन्दरी के चुनाव
महँगा मदिरा का सुरूर में
सत्ता क मउजे दोसर होला.

राजा शिकार करेला
बाघ, हिरन, सूअर भा आदमी के
राजा के महल होला आलीशान
किसिम-किसम के कमरा-बइठका
ढाल-तलवार, भाला, बनूखि
आ रतन जड़ावल तस्वीर से सजल
झाड़-फानूस लटकल
जगहे जगह खूंटी पर
बाघ, हिरन के खाल
राजा के बीरता आ पराक्रम के निशानी.

राजा कवि होला
सुधी-गुनी आ आलोचक
राजा का मुखार से बरिसेला तेज
चमकेले कला आ कारीगरी
राजा सम्मान आ पुरस्कार देला
आ निजी सकून खातिर
कटवा लेला हाथ कारीगर के !
कवनो कवि, राजकवि ना बने
राजा राजकवि बनवावेला.

लोक के कवि त
राजा का नजर से दूर
कवनो गाँव-कस्बा भा
उजाड़ल शहर में रहेला —
लोगन का बीच
आपन निरगुन-सगुन गावेला

धरती ओकरा हरियरी
आ जिया जन्तु का हुलास में
निहारेला सुथराई
ढूंढेला प्रेम !
लोक कवि मान-सम्मान आ
पहिचान खातिर ना होला बेचैन
जोलहा बनि बीनेला कपड़ा
सियेला चाम लोक कवि
जोतेला खेत आ
तूरेला दुख के पहाड़ !


अँजोरिया पर डा॰ अशोक द्विवेदी के दोसर रचना

1 Comment

  1. amritanshuom

    रजा आ लोक -कवि के परिभाषा बहुत निक लागल .

    ओ.पी.अमृतांशु

    Reply

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *