बांसगांव की मुनमुन

(दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)

‘भतार छोड़ि देब बाकिर नौकरी ना ।’
बांसगांव के मुनमुन के ई आवाज गांव आजु क़स्बने में ना, बलुक सगरी निम्न मध्यवर्गीय परिवारन में बदलत औरत के एगो नया साँच हो गइल बा। पति परमेश्वर के छवि अब खंडित हो गइल बा। अइसन बदकत, खदबदात अउर बदलत औरत के क़स्बा भा गांव के मरद अबहीं बरदाश्त नइखे कर पावत। ओकर आपन सगा भाईओ ना। पइसा अउर सफलता अब परिवारो में राक्षस बन गइल बा। साँप बन चुकल सफलता अब कइसे एगो परिवार के डंसत जात बावे, बांसगांव के मुनमुन के एगो धाह इहो बा कि लोग अकेला होत जा रहल बा। अपना-अपना चक्रव्यूह में हर केहु अभिमन्यु हो गइल बा। लालच कइसे भाई को लाशो के आरी से काट के बांटे वाला लोगन के निर्लज्जता अपना हद ले जा चुकल बावे, बांसगांव के मुनमुन में ई दंशो खदबदात मिलत बा। जज, अफसर, बैंक मैनेजर अउऱ एन.आर.आई. जइसन चार बेटन के महतारी-बाप
एगो तहसीलनुमा क़स्बा में कवना तरह उपेक्षित, अभावग्रस्त अउर तनाव भरल जीवन जिए ला अभिशप्त बाड़ें, एह लाचारगी के इबारत पूरा उपन्यास में अइसहीं नइखे रचि-बसि गइल। बांसगांव के मुनमुन का बहाने भारतीय क़स्बन में कुलबुलात, खदबदात एगो नए तरह के जिनिगी, एगो नए तरह के समाज हमनी का सोझा उजियार होखत बा। बहुते तफ़सील में ना जाके अंजुम रहबर के एगो शेर में बताईं त, ‘आइने पे इल्ज़ाम लगाना फिजूल है, सच मान लीजिए चेहरे पे धूल है।’
बांसगांव के मुनमुन इहे बतावत बावे।

धारावाहिक कड़ी के पहिलका परोस
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बहुते टूटि गइल रहलन मुनक्का राय। पांच गो बेटा आ तीन गो बेटियन वाला एह बाप का जिनिगी में पहिलहूं कई एक मोड़ आइल रहल, परेशानियन आ झंझटन के अनेके घाव, कई गरमी बरसात आ चक्रवात ऊ झेल चुकल रहलें, बाकिर कबो टूटल ना रहलें। बाकिर आज तो ऊ टूटि गइल रहलन। उनुकर छोटका बेटा राहुल बोलत रहल, ‘अइसना माई बाप के त चौराहा पर खड़ा क के गोली मार देबे के चाहीं।’ बाप पर ज़ोर ओकर अधिका रहल। सतहत्तर-अठहत्तर साल के उमिर में का इहे सुनल अब बाक़ी रह गइल रहुवे? ऊ अपना दुआर पर ठाढ़ सोचत रहलन आ दरवाज़ा पर लागल अपने नाम के नेम प्लेट घूरत रहलें; मुनक्का राय, एडवोकेट! ग़नीमत अतने रहुवे कि बेटा घर का अङने में तड़कत रहुवे आ ऊ बाहर दुआर पर चल आइल रहलन। बेटा में जोशो बा, जवानिओ आ पइसा के गुरूरो। एनआरआई हवे। इहे सोचि के ऊ ओकरा से अझूराए भा ओकरा के कुछ कहला का बजाय अङना से निकल के दुआर पर आ गइलन। बेटा राहुल चिग्घाड़त रहल, ‘एह आदमी के इहे पलायनवादिता पूरा परिवार के ले डूबल।’ ऊ चिचियात रहल, ‘ई आदमी सीधा कवनो बात के फे़से ना कर सके। बात के टाल देबे आ घरो का मसलन पर कचहरी क तरह तारीख़ ले लीहल एह आदमी के फ़ितरत हो गइल बा।’

ज़हर के घूंट पी के रहि गइलन, मुनक्का राय। बाकिर चुपे रहलन।

बेटा राहुल ज़िदियाइल रहल कि बहिन के विदाई अबहीं आ एही बेरा हो जाए के चाही। आ मुनक्का राय के राय रहल कि, ‘बेटी के एह तरह मर जाएला ऊ ओकरा के ओकर ससुराल ना भेज सकसु।’

‘त एहिजे अपना छाती पर बइठा के ओकरा के आवारगी कले ला छुट्टा छोड़ देबऽ? रंडी बनइबऽ?’ बेटा बोलत रहल, ‘सगरी बांसगांव में एकरा आवारगी के चरता बा। अचना कि केहू के दुकान, केहू का दुआरी पर बइठल मुश्किल हो गइल बा। इहां ले कि अपनो दरवाज़ा पर बइठे में लाज लागत बा।’

बाकिर मुनक्का राय अड़ गइल बाड़न त अड़ गइल बाड़न। बेटा के बता दीहलन कि, ‘बांसगांव में हम रहिलें तूं ना। हमरा कवनो दिक्क़त नइखे होखत। ना अपना दरवाज़ा पर बइठे में ना केहू दोसरा के दरवाजा भा दुकान पर। कचहरी में हम रोज़ बइठबे करिलें।’ आ कि, ‘हमार बेटी रंडी ना हीय, आवारा ना हीय।’

‘रउरा बुजुर्गियत के, रउरा वकालत के लोग लिहाज़ करेला, एह तलते रउरा से केहू कुछ ना बोले। बाकिर पीठ पीछे सभे बतियात बा।’ कहत ऊ बहिन के झोंटा खींचत कोठरी में से बाहर अङना आ जात बा, ‘अब ई एहिटा ना रही।’ महतारी रोकत बाड़ीं त ऊ महतारिओ के झटक देत बा, ‘एकर कपड़ा-लत्ता, गहना-गुड़िया सब बांधऽ। एकरा के हम अबहिंए एकरा ससुरारी छोड़ के आवत बानी।’

‘हम ना जाएब भइया, अब बस करीं।’ ऊ जोर लगा के भाई से आपन झोंटा छोड़ा लेत बिया। पलटि के ऊ बोलतिया, ‘हमरा मरे के नइखे, जिए के बा। आ अपना शर्तन पर।’

‘त का एहिला आठ-दस लाख रुपिया खरचि के तोर शादी कइल रहुवे?’

‘रउरा लोग हमार शादी ना करवले रहीं आठ-दस लाख ख़रचा करि के।’ ऊ बोलल, ‘आपन बोझ उतारि के हमार जिनिगी बरबाद क दिहनी सभे।’

‘का बोलत बाड़े?’

‘ठीक बोलत बानी।’ ऊ लपकि के एगो फ़ोटो अलबम उठा के देखावत बोलल, ‘देखीं एह घर के एगो दामाद ई हउवन, दोसरका दामाद ई आ ई रहलन तिसरका! का इहो एह घर के दामाद होखे लायक़ रहलन? रउरा देख लीं धेयान से अपना तीनों बहनोइयन के आ तब कुछ बोलीं।’

‘तोर ई अनाप शनाप हमरा नइखे सुने के।’ ऊ बोलल, ‘तूं त बस चल।’

ऊ अङना में से झटका से उठल आ अपना कोठरी में चलि गइल। भीतर से दरवाज़ा धड़ाम से बंद करत बोललसि, ‘भइया अब रउरा जाईँ एहिजो से, हम कतहीं ना जाएब।’

‘मुनमुन सुन त!’ ऊ दरवाज़ा पीटत दोहरवलसि, ‘सुन त!’

बाकिर मुनमुन ना त सुनलसि। ना ऊ कुछ बोललसि।

‘त तूं एहिजा से जइबू ना?’ राहुल फेरु आपन बात दोहरवलसि। बाकिर मुनमुन तबो कुछ ना बोललसि। थोड़िका देर चुप रहि के राहुल फेरु बोलल, ‘बाबूजी के त नाक रहल ना। तोरा में आपन नाक उहाँ के कटवा लिहले बानी। बाकिर सोच मुनमुन कि तोरा भाइयन के नाक अबहीं बा।’

मुनमुन तबहिंयो चुपे रहल।

‘अतना बड़-बड़ जज, अफ़सर, बैंक मैनेजर अउर एनआरआई के बहिन एह तरहा आवारा फिरे ई हमनी भाइयन के मंज़ूर नइखे।’ राहुल बोलत रहल, ‘मत कटवाव हमना भाइयन के नाक!’

मुनमुन चुपाइले रहल।

‘ल त जब तूं नइखू जात त हमहीं जात बानी।’ राहुल बोललसि, ‘माई तेहूं सुनि ले अब हम फेर कबो लवटि के बांसगांव ना आएब।’

माईओ चुपाइले रहली।

‘तोहरा लोग के चिता के आगो देबे ना आएब।’ राहुल जइसे चिचियात सरापत रहल अपना माई के। आ माई बाबूजी के बिना गोड़ लगले ऊ घर से बहरि आइल आ बाहर खड़ा कार में बइठि के छोड़ गइल बांसगांव। एकरा पहिले त ना बाकिर अब मुनमुन राय एगो ख़बर रहलन। ख़बर पसरल रहुवे बांसगांव के सड़कन पर। गलियारन, चौराहन से चौबारन आ बाज़ारन ले।

मुनमुन जब जनमल रहुवे तब इहे राहुल ओकरा के गोदी में ले के खियावत-पुचकारत घूमल करे आ गावल करे – मेरे घर आई एक नन्हीं परी! आ राहुले काहे, बड़का भइया रमेश, मझिला भइया धीरज आ छोटका भइया तरुणो गावसु। माई-बाबूजी त ख़ैर भाव विभोर होकर गावसु – मेरे घर आई एक नन्हीं परी! साथ में बड़की दीदी विनीता अउर रीतो सुर में सुर मिलावल करसु; चांदनी के हसीन रथ पे सवार मेरे घर आई एक नन्हीं परी! सचमुचे पूरा घर चांदनी में नहा गइल रहुवे। घर के लोग जइसे समृद्धि के सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़े लागल रहुवे। ओही दिने एगो फुआ आइल रहली। माई से कहे लगली, ‘ई पेट पोंछनी तो बड़ क़िस्मत वाली बिया। आवते देखऽ रमेश के हाई स्कूल फ़र्स्ट डिविज़न पास करवा दिहलसि। बाप के कचहरी के ढिमिलाइल प्रैक्टिस फेर से चमका दिहलसि।’

‘ई त बा दीदी!’ मुनमुन के माई कहसु। मुनमुन नाम के ई नन्हकी परी जइसे-जइसे बड़ होत गइल, परिवार के खुशियो बड़ होत गइली सँ। एही बीच घर में पट्टीदारी के नागफनिओ उगे लागल। पट्टीदारी के ई नागफनिए मुनमुन के घर परिवार के आजु एह राह पर ला पटकले रहुवे।

मुनक्का राय के एगो चचेरा बड़ भाई रहलन गिरधारी राय। गिरधारी आ मुनक्का के एक समय ख़ूब पटत रहल। बचपन में तो बहुते। संयुक्त परिवार रहुवे। मुनक्का राय के बाबूजी दू भाई रहलन। बड़का भाई रामबली राय ओह घरी वकील रहलें आ छोटका भाई श्यामबली राय प्राइमरी स्कूल में मुदर्रिस। माने कि मास्टर। दुनु भाइयन में ख़ूब बने। बड़ भाई ख़ूब स्नेह करे त छोटका भाई ख़ूब आदर। मुनक्का के जनमला का कुछ दिन बादे मुनक्का के माई टी.बी. के बीमारी से चल बसली। त बड़ भाई रामबली छोटका भाई श्यामबली के दोसरकी शादी करवा दिहलन। अब मुनक्का मयभावत महतारी का हाथे पड़ गइलन। ममत्व अउर दुलार त ऊ ना मिला उनुका बाकिर खाए पिए ला मयभावत महतारी कबो उनुका के तरसवली ना। एही बीच रामबली राय के वकालत चल पड़ल रहुवे। आ सगरी तहसील में उनुका मुक़ाबले केहू दोसर वकील खड़ा ना हो पावे। नाम अउर नामा दुनु उनुका पर बरसत रहुवे। अतना कि अब ऊ गांव में खेत पर खेत ख़रीदे लागल रहलें, पक्का मकान बनवावत रहलें। बाकिर सब कुछ संयुक्त। मतलब छोटका भाई श्यामबली के घर मकान सब में बराबरी के हिस्सा। एह एका के देखि गांव में ईर्ष्या उपजहीं के रहल। बहुत लगावे-बझावे के कोशिशो भइल बाकिर दुनु भाइयन में जियते जिनिगी कबो कवनो दरार ना पड़ल। लेकिन परिवार बढ़ल, लईका बढ़लें, लईकनो के लईका बढ़लें त तो थोड़ बहुत रगड़ा-झगड़ो बढ़ल। त रामबली राय एडवोकेट अकलमंदी से काम लिहलन। एगो बड़हन मकान बांसगांव तहसीलो में बनवा लिहलन। आ गँवे-गँवे अपना बीवी बच्चा आ पोता-पोतियन के बांसेगांव में शिफ़्ट करा दिहलन। बेर-बेर गांवे आवहूं-जाए से भी फ़ुरसत हो गइल। आ गांव के मुसल्लम राजपाट, खेती बारी सब कुछ छोटका भाई के सुपुर्द कर दिहलें।

अब गांव के पट्टीदारी में कवनो शादी-बियाह होखे तबहिंए रामबली राय गांव आवसु। ना ता बांसेगांव में डेरा जमवले राखसु। एही बीच ऊ शहरो में एगो तिमंज़िला मकान बनवा दिहलें। ई सोच के कि लईकन के पढ़ावे लिखावे में आसानी रही। उनुका ई बड़हल साध रहल कि उनुकर कवनो बेटो वकील बन के उनुकर तख़ती संभाल लेव। बाकिर उनुकर दुनू बेटा उनुकर साध पूरा ना होखे दिहलें। बड़का बेटा गिरधारी राय के त ऊ बड़ा अरमान से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भेजलें। पढ़े ला। लेकिन गिरधारी राय दस-बारह बरीस बिताइओ के बमुश्किल बी.ए. त क लिहलें बाकिर ओकरा बाद एल.एल.बी. कंपलीट ना कर पवलन। लवटि अइलन बांसगांव। कबो कवनो नौकरी ना कइलन आ भर जिनिगी बाप के कमाई उड़ावत ऐश करत रहलन। छोटका बेटा गंगा राय त कई साल लगाईओ के इण्टर पास ना कर पवलसि। बाकिर बाप के पइसा से व्यापार करे लागल। किसिम-किसिम के व्यापार में घाटा उठावत उहो बाप के कमाई उड़ावल रहल। अब रामबली राय के दुनु बेटा भलहीं एल.एल.बी. ना कर पवलें बाकिर उनुका छोटका भाई श्यामबली राय के बेटा मुनक्का राय एम.ए. ओ कइलन आ एल.एल.बी. ओ। भलही एक-एक क्लास में दू-दू साल मरजाद रहलन त का भइल। रामबली राय के सपना त पूरा क दिहलन। आखि़र कचहरी में उनुकर तख़ता संभाले वाला उनुकर कवनो वारिस त मिलल। भतीजा का साथे लाग के ऊ अपना वकालत के परचम अउर ऊंचा फहरा दिहलन।

गिरधारी राय के ई सब फूटले आंखि ना सुहावे। हार मानिके ऊ राजनीति में हाथ पैर मारे के कोशिश कइलन। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ऊ एल.एल.बी. भलहीं पास ला कर पवलन बाकि उनुका साथे पढ़ल कुछ लोग अफ़सर आ नेता त होइए गइल रहपवे। फेर तब ले ज़माना आ लोग ना त अतना बेशर्म हो पावल रहलें ना एहसान फ़रामोश! गिरधारी राय के उनुकर साथी अफ़सरो भाव दिहलें आ राजनीतिको। बाकिर शायद गिरधारी राय के नसीब में सफलता ना लिखल रहुवे। राजनीतिओ में ऊ लगातार झटका खात रहलें। ज़िला लेबिल के कांग्रेस कमेटिओ में उनुका जगहा ना मिल पावल। ऊ लोगन के खिया पिया के खादी के सिल्क, मटका भा कटिया सिल्क के कुरता जाकिट पहिर के नेता जी वाले वेशे भूषा भर के नेतागिरी ले रह गइलन। हालांकि टोपिओ ऊ बड़ सलीका से कलफ़ लगावल लगावत रहलन बाकिर बात में ऊ वज़न ना रख पावसु। विचारो से दरिद्र रहलन से भाषण आ बातचीतो के स्तर पर ऊ कटा जात रहलन। तीन तिकड़मो पारिवारिक स्तर पर कर पावत रहलन। धीरज त बिलकुले ना रहल आ बात-बात पर जिज्ञासा भाव में मुंह बा देसु। से वेशभूषो के असर उतर जाव। हार मान के ऊ ग्राम प्रधानी के चुनाव में कूदलन। ई कहत कि ग्रास रूट से शुरू कइल राजनीति अधिका प्रभावी होखेला। बाकिर एहिजो उनुका हिस्सा हारे आइल। पिता के रसूख़ो कामे ना आइल. गिरधारी राय से अब आपन हार हज़म ना हो पावत रहुवे।

ओने मुनक्का राय के तख़ता अब रामबली राय से अलगा हो गइल रहुवे। अब ऊ जूनियर ना सीनियर वकील हो चलल रहलन। चकबंदी के ज़माना रहल। मुक़दमन के बाढ़ रहुवे। अतना कि वकील कम पड़त रहलें। बाकिर मुनक्का राय किहाँ जउसे पइसा क् बरखी हत रहुवे। मूसलाधार। गिरधारी राय मन मसोस के रह जासु। ई सोचि के कि उनुके बाप का पइसा से पढ़ल ई मुनक्का मलाई काटत बा, नाम-नामा दुनु कमा रहल बा जबकि उनुकर हालत धोबी के कुकुर वाला हो गइल बा। ना घर के रहि गइल बाड़न ऊ, ना घाट के। अवसाद के अइसने कमज़ोर लमहन में ऊ तय कइलन कि ऊ भलहीं खुद वकील ना बन पवलन त का। अब अपना बेटा के ज़रूरे वकील बनइहें। जेहसे कि उनुका बाप के तख़ता के वारिस कम से कम ई मुनक्का राय त नाहिए बने। रामबली राय के बेटा गिरधारी राय के इहे दमित कुंठा हंसत-खेलत परिवार के दरकावे का बुनियाद के पहिलका बीज, पहिलका पत्थर बन गइल।

 

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