– दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद
धारावाहिक कड़ी के तिसरका परोस
( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)
मुनमुन जइसे लक्ष्मी बनि के आइल रहे मुनक्का आ उनुका परिवार ला. घर गिरहस्थी के गाड़ी चलल का, दउड़ पड़ल. गिरधारी राय खातीर ई सब बहुते दुखदायी रहल. ख़ास क के एहू चलते कि भलहीं ऊ वकील ना बन पवलें बाकिर सोचले रहलन कि लइकन के वकील बना के एह कमी के भरपाई कर लीहें. जेहसे उनुका बाबूजी के वकालत के विरासत मुनक्का का हाथे ना लागे. बाकिर उनुकर बड़का बेटा शहर में चाचा गंगा राय का सोहबत में पड़िके घनघोर पियक्क्ड़ अउर औरतबाज़ निकल गइल. ओकरा ला त बी.ए. हीं पास कइल मुश्किल हो गइल. गिरधारी राय में झूठ बोले, दिखावा करे अउर तमाम खुराफात आ साज़िश करे के बीमारी भलही रहल बाकिर शराब-औरत वग़ैरह के अय्याशी ऊ कबहूं ना कइलन. ना ऊ, ना मुनक्का राय.
अब भइल ई कि जब बड़का बेटा गिरधारी राय के सपना तूड़ दिहलसि त उनुका अपना दूसरका नंबर के बेटा से उम्मीद बढ़ल. उहो पढ़े लिखे में बहुते तेज़ ना, औसते रहल. दू चार बेर फेल भइला का बादो ऊ एल.एल.बी. त पूरा कइए लिहलसि. गिरधारी राय के खु़शी के ठिकाना ना रहल. बाकिर गिरधारी राय के ऊ दूसरका बेटा तहसील में ना, ज़िला अदालत में प्रैक्टिस कइल चाहत रहुवे. रामबलिओ राय इहे चाहत रहलें. ऊ समुझावे के कोशिश में तर्को दिहलन कि, ‘तेली के बेटा तेलिए बने आजु का दौर में ई ज़रूरी नइखे.’ आ इहो कि, ‘तहसील में अब कुछ नइखे राखल.’ ऊ त चाहत रहलन कि पोता ज़िला अदालत भा हाई कोर्ट में वकालत करे जाव. बाकिर ना त रामबली राय के चलल, ना पोता के. ज़िद चलल गिरधारी राय के.
गिरधारी राय का जिनिगी में ई उनुकर पहिलका फ़तह रहल. अपना दूसरका नंबर के बेटा से ऊ मुनक्का राय के शह दे दीहलन. बाकिर मुनक्का राय एहसे बेख़बर रहलन. प्रैक्टिस उनुकर चटक रहुवे, ई लब देखे सुने के उनुका फुरसत कहां रहल? ऊ त फ़राख़दिली देखावत भतीजा के कचहरी में स्वागत करत कहलन कि, ‘चलऽ कचहरी में हमनिके परिवार के ताक़त अउर बढ़ि गइल. दू से हम तीन जने हो गइनीं सँ.’
‘बाकिर तीन टिकट महाविकट !’ एगो वकील चुटकिअवलें
‘शुभ-शुभ बोलीं वकील साहब!’ मुनक्का राय आंख तरेरत कहलन त ऊ वकील सटपटा गइल. बाकिर गिरधारी राय के ई लड़िका ओम जेकरा के घर में सभे ओमई कहल करे, बहुते तेज़ी से मुनक्का राय के घेराबंदी में लाग गइल. ऊ वकालत के पेंच कसल कम सीखे, मुनक्का राय के कहां-कहां आ कइसे-कइसे मात दीहल जा सकेला, एकर पेंच बेसी खोजल करे. पहिलका दौर में ऊ मुनक्का राय के कुछ होशियार जूनियर तुड़लसि. फेरु मुंशी तुड़लसि. बाकिर एहनी के ओमई तुड़लसि एकर भनक मुनक्का राय के ना लागल. मुनक्का राय त अपना प्रैक्टिस, लड़िकन के नीमन पढ़ाई आ सुखी पारिवारिक जीवन में मस्त रहलन. ओने रामबली राय के स्वास्थ्य साथ दीहल छोड़ले जात रहुवे. आखो से लाचार हो गइल रहलन. लउकल कम करे. अब अधिका मामिला ऊ अपना पोता के राय दे देके निपटावे लगलन. कबो कवनो बहुते ख़ास मुक़दमा होखे तबहीं ऊ कोर्ट जासु. कोर्ट में उनुकर खड़ा भइले मुक़दमा जीते के गारंटी हो जाव. लोग उनुका के चलत-फिरत कोर्ट कहे लागल. ओमई उनुका एह गुडविल के जतना भँजा सकत रहल, भँजावे लागल.
मुनक्का राय के ज़मीन अब उनुका नीचे से खिसकत रहुवे, उनुकर पुरानो मुवक्किल अब ओमई का लगे जाए लागल रहलें, नया मुक़दमन के आवग कम हो गइल. मुनक्का राय के बड़का बेटा रमेश तब एम.एस.सी. के पढ़ाई करत रहुवे आ सिविल सर्विस के तइयारिओ. बाकिर मुनक्का राय ओकरा से कहलन कि, ‘अब तूँ एल.एल.बी. करऽ।’
‘बाकिर हम त सर्विसेज़ के तइयारी करत बानी.’
‘सर्विसेज़ छोड़ऽ।’ मुनक्का राय साफ आदेश दे दीहलन, ‘जवन हम कहत बानी, तवने करऽ.’
‘बाकिर बाबू जी…….!’
‘कुछ ना सुनब !’ मुनक्का राय बोललन, ‘बाप हम हईं कि तूं ?’
‘बाकिर बाबू जी पहिले ई एम.एस.सी. त कंपलीट करलीं ?’
‘हँ, ई कर लऽ !’
बाकिर बाप के एह बेवहार से मुनक्का राय के ई बड़का बेटा हक्काबक्का रहल. काहें कि अबहीं तक का जिनिगी में बाबूजी ओकरा से अइसे आ एह तरह से कबो ना बतियवले रहलन. ख़ैर, रमेश एम.एस.सी. मैथ के इम्तहान डिस्टिंक्शन ले के पास कइलसि आ अगिला सेशन में एल.एल.बी. में एडमिशन ले लिहलसि. एही बीचे ओकर सेलेक्शन एगो बैंको में हो गइल बाकिर मुनक्का राय मना कर दिहलन. कहलन कि, ‘जवन बाति वकालत में बा, ऊ बैंक में कहां?’ मुनक्का राय के त गिरधारी के बेटा के शिकस्त देबे का सिवाय कुछ लउकते ना रहल ओह घरी. उनुका लेगो कि उनुकर बेटा रमेश त ओमई से पढ़े लिखे आ तमाम अउरिओ मामिलन में अव्वल बावे, ऊ कचहरी में आई आ आवतहीं ओमई के पस्त करि के मुनक्का राय के झंडा फेरु से लहरा दी.
एही बीच गिरधारी के छोटका भाई गंगो राय मर गइलन. उनुका मौत के ले के बहुते सवाल उठल. कुछ लोग संदेह जतावल कि प्रापर्टी हड़पे का फेर में गिरधारी राय गंगा राय के शराब में ज़हर दिअवा के मरवा दिहलें. बाद में लोगन के ई शक अउरि पोढ़ हो गइल जब खेती बारी अउर दोसर पुश्तैनी जायदाद में गिरधारी अपना भाई गंगा राय के परिवार के अधिया हिस्सा देबे का जगहा कुल 6 गो बखरा लगववलन, ऊ एह हिसाब से कि गिरधारी राय के चार बेटा रहलें आ गंगा राय के दू बेटा. सभनी के मिला के 6 बखरा लगववलन. बाप रामबली राय का जिनिगिए में. रामबली राय एह घरी खटिया ध लिहले रहलन. आ गिरधारी राय जवने चाहसु उनुका से करवा लेसु. अतने ना गिरधारी राय अब अपना बाबूजी का साथे ज़ुल्मो सितमो करे लगलन. अउसन बाति लोग दबल ज़बान में कहत रहे. छोटका भाई गंगा राय के बीवी मारे डर के अपना दुनु बेटन के ले के नइहरा चलि गइल. ओकरा बराबर डर बनल रहत रहे कि गिरधारी राय ओकरा मरद का तरह कहीं उनुका बेटवनो के ना मरवा देसु. एही बीच रामबलिओ राय के निधन हो गइल.
अब गिरधारी राय रहलन, आ उनुका साथे रहल उनुकर झूठ, उनुकर लालच आ बाति बेबाति मुनक्का राय के में नीचा देखावे के, बेइज्जति करे के अदम्य लालसा. बाप का मरते गांव के जायदादो बंटवा लिहलन ऊ. मुनक्का राय के मयभावत महतारी के ऊ मोहरा बनवलें. मुनक्का राय के एगो सौतेला भाईओ रहल. उहो वकील रहुवे. बाकिर गुमनामी में जीयत रहुवे, ओकरो के धो पोंछि के खड़ा कइलन गिरधारी राय मुनक्का राय का खि़लाफ़. खेती-बारी के बंटवारा में त पर्ची पड़ गइल. जेकरा जवने बखरा मिलल उहे ले के संतोष कर गइल. हालां कि अबहियो गिरधारी राय किचकिचा के कहल करसु कि, ‘सब कइल धइल रहल हमरा बाप रामबली राय के बाकिर भोगत बाड़ें श्यामबली राय के बेटा लोग.आ ई मुनक्कवा !’ ऊ जोड़सु, ‘लागेला जइसे इहे रामबली राय के असली वारिस हउवे, हम ना.’ ख़ैर घर के बंटवारे में बहुते कोहराम मचल. गिरधारी के त एहिजा रहहीं के ना रहुवे. उनुकर पूरा परिवार त बांसगांव में रहुवे. दुनु बेटा शहर वाला घर में. शहर वाला आ बांसगांव वाला घर में मुनक्का राय के कवनो बखरा बनते ना रहल कि बनत. काहें कि दुनु घर रामबली राय अपना मेहरारु का नामे बनववले रहलन. समस्या आइल गांव वाला घर में. पहिले ओकर अधवा लिहलन गिरधारी राय. फेरु मुनक्का के अधवा हिस्सा के दू बखरा करा दिहलन मुनक्का के सौतेला भाई के खड़ा करा के. अब मुनक्का का बखरे घर के चौथाई हिस्सा आइल. जवन परिवार पूरा घर में रहत रहुवे, अब ऊ चौथाई हिस्सा में समेटा गइल. एहू पर संतोष ना भइल गिरधारी राय के त दालान से होत अपना बखरा में एगो दरवाज़ा भर के जगहो फोड़ लिहलन. मुनक्का राय आ उनुकर परिवार समुझइबो कइल कि घर के जवन मुख्य दरवाज़ा बा, ऊ सबहीं का साझा रहे त नीमन कहाई, आ उनुका लोगन के एहपर कवनो ऐतराज़ ना होखी. जब जे चाहे आए जाए. बाकिर गिरधारी राय नाहिए मनलन. कहलन, ‘ऐतराज़ त हमरा बा. दरवाज़ा जब हमरा बखरे अइबे ना कइल ता हम ओकर इस्तेमालो ना करब.’ आ ऊ दरवाज़ा भर के जगहा फोड़ लिहलन बाकिर ओहिजा दरवाज़ा ना लगवलन.
अब दुआरे से अङना साफ़े लउके. हर आए जाए वाला के निगाह बरबस अङना में चलि जाव. मुनक्का के एगो बेटी विनीता जवान होत रहल. दू गो बेटी अउरी रहली सँ. मेहरारुओ रहली. घर के लाज अउर सुरक्षा दुनु ख़तरा में आ गइल. मुनक्का राय आपन सगरी इगो ताक़ पर राखत सीधे गिरधारी राय से बतियवलें. गिरधारी राय कहलन, ‘अबहीं पइसा नइखे. पइसा होखते दरवाज़ा लगवा देब.’
‘रुपिया हमरा से ले लीं.’ मुनक्का राय हाथ जोड़त कहलनि, ‘भा कहीं त हमहीं दरवाज़ा लगवा देत बानी.’
‘अतने रुपिया बा त अङना के अपना हिस्सा में बाउंड्री लगवा लीं.’
‘सुरक्षा अउर लाज त तबहियो ख़तरे में रही.’ मुनक्का बोललन, ‘छरदिवालि त केहू फान ली.’
‘त पुलिस में रपट करऽ !’ गिरधारी राय बोललन, ‘आखि़र बड़का वकील हईं रउरा !’
‘देखी घर के लाज हमरे ना राउरो त हऽ. विनीता अउर रीता राउरो त बेटी हईं स. हमार मेहरारुओ त राउरे बहू हिय. हमनी के ख़ानदान एके ह. कतहीं कुछ ऊंच-नीच हो गइल त राउरो मूड़ी नव जाई.’
‘अइसन कुछऊ नइखे.’ गिरधारी राय अड़ले रहलन, ‘ गांव में केहू के अतना बेंवत नइखे कि हमरा ख़ानदान ओरि आंखो उठा के देखे. आँखे नोच लेब. मूड़ी काट देब.’
‘बाकिर दरवाज़ा ना लगवाएब !’
‘कहनी नू कि रुपिया आवते लगवा देब.’
‘त रुपियो अइले पर दरवाज़ा फोड़तीं.’
‘रउरा हमार एडवाइज़र त हईं ना कि हर बात पर हम रउरा से सलाह लेइए के कुछ करीं. ना हमार बाप हईं रउरा !’
बाद में मुनक्का राय कुछ पट्टीदारन रिश्तेदारनो के बिचवनिया बनवलें. सभे समुझावल. बाकिर गिरधारी राय सभका के एके जवाब देसु, ‘रुपिया जुटते लगवा देब दरवाज़ा !’ आ रुपिया ऊ केहू से लेबे के तइयारो ना होखसु. हार मानि के मुनक्का राय अङना में खपरैलो से ऊंची बाउंड्री करववलन. बाकिर एकाध कुकुर तबहियो बाउंड्री फान आवऽ सँ. एक बेर दू गो चोरो कूदले सँ. थाक हारि के मुनक्का राय बाँसगांव में एगो मकान किराया पर बाकिर लीहलन. आ परिवार को शिफ़्ट कइलन. चटक प्रैक्टिस पुटुक गइल रहे. लड़िको पढ़त रहले सँ. ख़रचो बढ़ गइल रहुवे. जब प्रैक्टिस चटक रहुवे तब त कवनो बचत कइलन ना. दुनु हाथे कमासु आ चाक हाथ खरचल रहल. हँ, मुनक्का के मेहरारुओ पइसा के पानिए बुझली आ मान लिहले रहली कि नदी में जवन बाढ़ आइल बा तवन कबो लवटि ना. बाकिर बाढ़ त लवटि गइल. एक-एक पइसा के दिक्कत होखे लागल. जवन जूनियर आ मुंशी ओमई तूड़ ले गइल रहुवे ऊ जूनियरो आ मुंशी पुरनका मुवक्किलनो रो तूड़त रहले सँ. ख़ैर, एही आपाधापी में बड़का बेटा रमेश एल.एल.बी. पूरा क लिहलसि. आ बाप से मनसा जाहिर कइलसु कि अबहिंयो ऊ सिविल सर्विस के आस नइखे छोड़ले. दू बेर प्रिलिमनरी में आइओ गइल रहुवे ऊ एह बीच. बाकिर मुनक्का राय कहलन कि, ‘अब जवन होखे के रहल तवन हो गइल. प्रैक्टिस शुरू करऽ आ हमार बोझा कम करऽ.’
‘त हम इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कइल चाहब, अगर रउरा इजाज़त दे दीं त.’ रमेश बाप से निहोरा कइलसि.
‘हाई कोर्ट?’ मुनक्का राय भड़क गइलन, ‘पांच बरीस ले त भूँजो ना खरीद पईबऽ दू रुपिया के. उलटे हमरे से ख़र्चा मँगबऽ ओहिजा रहे- खाए ला.’
‘त चलीं शहर में. कम से कम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में त ई दिक्क़त ना होखी ?’
‘ओहिजो कम से कम दू-तीन बरीस ले एक-एक पइसा ला तरसऽब.’
‘त ?’
‘हमरे संगे एहिजे बांसगांव तहसीले में डटऽ आ एह ओमई सारे के छुट्टी करावऽ !’ ऊ बोललन, ‘अब ई हमार ना तोहार लड़ाई हवे. ओकरा से बेसी पढ़ल लिखल बाड़ऽ, ओकरा से बेसी होशियार हउव !’
‘कहां हमार जिनिगी बरबाद कइल चाहत बानी बाबू जी?’
‘कवनो इफ़-बट मत करऽ.’ मुनक्का राय रमेश के पुचकारत कहलन, ‘अब हम तय कर चुकल बानी.’
(आगे ला अगिला कड़ी के इंतजार करीं. जल्दिए ले आएब वादा बा.)
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