बांसगांव की मुनमुन – 4

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के चउथका परोस
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( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)

एने रमेश प्रैक्टिस शुरू कइलन आ ओने मुनक्का राय ओकर बिआह तय कर दिहलें. रमेश अबहीं ना -अबहीं ना करता रह गइल बाकिर मुनक्का ओकर बिआह कराइए के मनलन. दुसरका बेटा धीरजो अब एम.एस.सी. में आ गइल रहल. मुनक्का राय चाहत रहलें कि उहो एल.एल.बी. कर लेव अउऱ बांसगांव कचहरी में उहो आ जाव. बाकिर ऊ रमेश का तरह बाप का बात में ना आइल. एम.एस.सी. पूरा करि के ऊ एगो कालेज में लेक्चरर हो गइल. एने रमेश बांसगांव में बाप के बोझा बांटे भलही उनुका कहला से आ गइल रहुवे बाकिर ऊ कारगर साबित ना होखत रहुवे. तहसील के वकालत करे खातीर जवन थेथरई, जवन कुटिलता आ कमीनापन के जरुरत होला, ऊ ओकरा में रत्तिओ भर निपुण ना रहल. ना ही ऊ एकरा के सीखल चाहत रहुवे. कचहरी में तारीख़-वारीख़ लेबे के काम ऊ करत ना रहे. केस हारो भा जीतो ऊ मेरिटे पर मुकदमा लड़ल करे. नतीजा होखे कि केस हार जाव. ऊ शेख़ी मारत बोलबो करे कि, ‘हम त वन डे मैच खेलिलें, हारीं भा जीतीं एकर परवाह ना करीं.’ ऊ कचहरियों में अपनावल जाए वाला चालबाजियन से नफ़रत करे. मुनक्का राय ओकरा के एकाध बार समुझइबो कइलन कि, ‘ई कचहरी ह; कवनो क्रिकेट के मैदान ना. एहिजा दुर्योधन, अर्जुन, युधिष्ठिर-शकुनी सगरी चाल चले के पड़ेला. साम, दाम, दंड भेद के सगरी हथकंडा अजमाइए के केहू सिद्ध अउऱ सफल वकील बन पावेला. होत होखी तोहरा गणित में दू दुनी चार. एहिजा त दू दुनी पांचो हो सकेला आ आठो भआ दसो. सिफरो हो सकेला. कुछुओ हो सकेला.’ ऊ बतावसु कि, ‘कचहरी में बात मेरिट से ना, क़ानून से ना, जुगाड़ आ तिकड़म से तय होखल करेला.’

बाकिर रमेश के अपना बाबू जी के कहलका सोहावे ना. बाप बेटा दुनु के प्रैक्टिस खटाई में रहपवे. ओमई दुनु के वकालत पर भारी रहुवे. कचहरी में ओमई, समाज में गिरधारी राय. बाप बेटा दुनु मिल के मुनक्का बाप-बेटा के जीयल हराम कइले राखसु. गिरधारी राय के उकसवला से मुनक्का राय के मकान मालिको घर ख़ाली करे के कहल करे. तीन साल में चार मकान बदलत मुनक्का राय परेशान चलते रहलन कि एगो मुवक्किल के भड़का के ओमई मुनक्का राय अउर रमेश राय दुनु के पिटवा दिहलसि. विरोध में वकील एसोसिएशन आइल. दू दिन कचहरी में हड़ताल रहल. पिटाई करे वाला मुवक्किल गिरफ़्तार भइल त हड़ताल टूटल, अख़बारन में ख़बर छपल. जेकरा ना जाने के रहल उहो जान गइल कि मुनक्का बाप बेटा पिटा गइलें.

मुनक्का के घरो में खटपट शुरू हो गइल रहुवे. रमेश के माई आ मेहरारु में अनबन रोज़ के बाति हो चलल रहुवे. आखिर अँउजा के मुनक्का राय रमेश के गोला तहसील शिफ़्ट होखे के कह दिहलन. जइसे कबो रामबली राय मुनक्का के शिफ़्ट कइले रहलन. बांसगांव में त मुनक्का राय के छांह में रमेश के रोटी-दाल के चिंता करे के ना पड़त रहुवे. गोला में रोटिओ-दाल के दिक्क़त हो गइल. हार-पाछ के रमेश के मेहरारु, जवन सोशियालाजी से एम.ए. रहल, एगो नर्सरी स्कूल में पढ़ावल शुरू कइलसि त कवनो तरह खींचतान क के गिरहस्थी चल जाव. अब रमेश के एगो बेटो हो गइल रहुवे बाकिर रमेश ना त बेटा के देख पावे ना अपने के. गोला कचहरिओ में ओकर क्रांति मशहूर हो चलल रहुवे, ऊ विद्रोही वकील मान लिहल गइल रहुवे. लोग ओकरा से कहल करे कि, ‘यार ई तहसील ह !’ त ई जबाब देव, ‘का तहसील में क़ानून अउर संविधान काम ना करे?’ ऊ पूछे, ‘अगर अइसने बा त हमहन के क़ानून पढ़ि के एहिजा अइला के जरुरते का रहल ? कवनो मुंसिफ़ भा एस.डी.एमो. के एहिजा आवे के के ज़रूरत रहुवे? ई वकीलन के मुंशी आ कचहरियन के पेशकारे जब कचहरी चला लेलें.’ बाकिर ओकर सुने वाला केहू ना रहल. गँवे-गँवे ऊ क्रांतिकारी से विद्रोही आ फेरु पागल अउर सनकी वकील मान लीहल गइल रहुवे.

रमेश अब डिप्रेशन के शिकार हो चलल रहपवे. रमेश के एहा डिप्रेशन का दौरान मुनक्का राय बांसगांव में एगो ज़मीन ख़रीदलन. उहो एगो खटिक से. ग़लती भइल कि रजिस्ट्री तुरंते ना करववलन. गिरधारी राय एह मौका के फ़ायदा उठवलन. खटिक के भड़कवलन. खटिक हरिजन एक्ट के धउँस दिहलसि आ फेरु दुगुना दाम ले के रजिस्ट्री कइलसि. इहो ज़मीन ख़रीदे खातीर पइसा मुनक्का राय के लेक्चरर बेटा धीरज दिहलसि. उहे फेरु ओह जमीन पर दू गो कोठरिओ बनववलसि. आ गँवे-गँवे पूरा घरो बनवा दिहलसि. घर के खरचा त ऊ उठावते रहुवे. अब मुनक्का राय ओकरो बिआह तय कर दिहलन. बिआह भइल, कनिया घरे आइल. बाकिर उहो सास संगे लमहर दिन ला रहे के तइयार ना भइल. ढेरे दहेज ले के आइल रहुवे एहसे केहू से ऊ दबबो ना करे, ऊ धीरजो के बतला दिहलसि कि, ‘हम बांसगांव में ना रहब.’

धीरज ओकरा के शहर ले आइल. भाई तरुण आ राहुल पहिलहीं से ओकरा साथे रहलें पढ़ाई करे ला, मेहरारु के अइला का बाद धीरज बांसगांव पइसा भेजे में कतोही करे लागल. जब कि पहिले ऊ पिता के नियमित कुछ पइसा भेज दिहल करत रहुवे. अतना कि मुनक्का राय मारे ख़ुशी के ओकरा के कबो नियमित प्रसाद कहसु त कबो सुनिश्चित प्रसाद। मुनक्का राय एह बात के भरपूर नोटिस लिहलन कि धीरज अब ना त सुनिश्चित रह गइल बा ना नियमित! बाकिर तरुण आ राहुल के पढ़ाई के ज़िम्मा ऊ उठावते रहल, ई सोचि के ऊ संतोष कर लिहलें. फेरु एक दिन ऊ शहर गइलन आ धीरज के बतवलन कि विनीतवो बी.ए. क के बइठल बिया. ओकर अब बिआह हो जाए के चाहीं ! धीरज हामी भर दिहलन. बिआह तयो हो गइल. बिआह के अधिका खरचा धीरज उठवलन बाकिर एकरा ला गांव के एगो ज़मीन बेचे के

बिआह धूमधाम से भइल. बिआह के तइयारी, बारात के अगुआनी, विदाई, सभे के आइल गइल, सगरी के कमान धीरजे सम्हरलन, मुनक्को राय धीरज के साथ दिहलन. सबले खराब गति रमेश के रहल. बड़ भाई होखला का बावजूद रमेश के हैसियत कवनो नौकरो से गइल गुज़रल रहल. अपना हीनता में क़ैद रमेश आ ओकर मेहरारु डेराइले-सहमल सभका लउकलन. रिश्तेदार, पट्टीदार भलही रमेश से बातचीत कइलें बाकिर घर के लोग ओकरा से अइसे बेवहार कइल जइसे ओकर कवनो अस्तित्वे नइखे. आ धीरज त जइसे किरिए खा लिहले रहुवे रमेश के बेइज्जत करे के. एगो पट्टीदार टीपबो कइलन कि, ‘एगो होनहार आ हुनरमंद आदमी पट्टीदारी का आग में कइसे त होम हो गइल!’

विनीता के मरद थाइलैंड में नौकरी करत रहुवे आ ओकर सगरी परिवारो ओहिजे रहत रहुवे. दू पुस्त से. विनीता के दस दिन बाद थाइलैंड उड़ जाए के रहल. धीरज के ससुर ई बिआह तय करवले रहलें. ई बाति कमे लोग जानत रहल. बाकिर दामाद, डाल अउर बारात के तारीफ करे में सभे मगन रहल. मुनमुनो अपना मझली दीदी रीता का साथे जीजा जी के इंप्रेस करे में लागल रहल. मुनमुन अब टीन एजर हो गइल रहे आ भारी मेकअप में ओकर जवानी कवनो जवानो लड़की से बेसी छलकत रहुवे, इहो बाति लोग नोट कइल. ऊ अपना जीजा से इठलात चुहुलो करत रहुवे, ‘हमरो के अपना संगही उड़ा ले चलीं ना!’

जीजा लजा के रह गइलन. रमेशो चोरी छुपे अपना छोट बहनोई के ख़ुशामद में लागल रहुवे. एगो रिश्तेदार से रमेश खुसफुसा के कहबो कइलसि कि, ‘अब विनीता हमनी के परिवार के क़िस्मत बदल दिही.दस दिन बाद अपनहुं थाईलैंड जात बिया. का पता पीछे-पीछे हमनियो के बोला लेव !’

‘का रमेश !’ ओकर एगो फुफेरा भाई दीपक अफ़सोस जतावत कहलसि, ‘अब तोहार ई दिल आ गइल !’ ऊ आगे जोड़लसि कि, ‘सोचऽ कि तू कतना तेज रहलऽ. पट्टीदारी-रिश्तेदारी के लड़िका तोहरा के आपन आदर्श मानत रहलें. आ अब तू बहिन के पैरासाइट बनल चाहत बाड़ ? चचच्च!’

रमेश झेंप गइल रहुवे, इहो लोग नोट कइल. आ हँ इहो कि गिरधारी राय आ उनुकर परिवार एह बिआह में गेरहाजिर रहुवे. मुनक्का राय से केहू पूछल त जवाब धीरज दिहलसि, ‘नागपंचमी त रहे ना कि दूध पिआवे खातिर बोलावल जाइत.’

विनीता सचहुँ दस दिन बाद थाइलैंड खातिर उड़ गइल. अब अलगा बाति बा कि ओकर संघर्ष ओहिजा जा के नया सिरा से शुरू हो गइल. ऊ अम्मा के एगो चिट्ठी में संकेते में लिखबो कइलसि, ‘दूर के ढोल सुहावने होला.’ अम्मा त ओतना ना बाकिर बाबू जी ठीक से समुझ गइलें. ओकरा के भेजल जवाबी चिट्ठी में मुनक्का राय दांपत्य के धीरज से निबाहे के सीख देत मनुहार कइलन कि हमार लाज बचा लीहऽ, हमार मूड़ी मत नीचा करवइहऽ. थोड़िका त्याग, तपस्या अउर सबुर से रहबू त सब ठीक हो जाई. खयास रखीह कि अबहीं तोहरा पीछे तोहार दू गो बहिनो बाड़ी सँ – रीता अउर मुनमुन. विनीता बाबू जी के सीख मान लिहलसि आ अपना दांपत्य के गँवे-गँवे सम्हार ले गइल बाकिर बाकिर सास का घर से अलगा होके. बाद में जब ऊ वापिस सास ससुर का घरे आइल त अपना अम्मा के चिट्ठी में लिखलसि कि, ‘अब ऊ ना, हम उनुकर सास हईं.’

मुनक्का राय फेरु बेटी के चिट्ठी में लिखलन कि, ‘सास के सासे रहे द आ तू बहूए बन के रहबू त सुखी रहबू. ना त बाद का जिनिगी में कांट अउर रोड़े बहुते मिली.’ विनीता बाबू जी के इहो बाति मान गइल. एने मुनक्का राय के जिनिगी जइसन खुशियन के लमहर राह तिकवत रहल ऊ अचके में अइसन पूरा भइल कि सगरी बांसगांव आ उनुकर गांवो उछाह में आ गइल. धीरज पी.सी.एस. मेन में चुना गइल. अख़बारन में ओकर फोटो छपल. चारो दिशाईं खुशियन के पुरवैया बह गइल. बाकिर एह पुरवैया का झोंका से केहू पीरातो रहुवे. ऊ रहलन गिरधारी राय आ उनुकर बेटा ओमई. तबहियों गिरधारी राय जाने रस्म अदायगी में, आ कि भय से भा ना जाने कवना भावे ख़ुदही चलि के आ गइलन मुनक्का राय के घरे बधाई देबे. ई ख़बर जब कचहरी में दउड़ल त एगो वकील कहलन कि एगो कविता ह, ‘भय भी शक्ति देता है!’ बहरहाल कचहरिओ में मिठाई बंटाइल अउर एस.डी.एम. आ मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट दुनु मुनक्का राय के घरे आके उनुका के बधाई दिहलें. बांसगांव का साथही मुनक्को राय झूम उठलन.

रमेश आई.ए.एस. प्रिलिमनरिए ले आ के रह गइल रहुवे. बाकिर धीरज पी.सी.एस. हो गइल. मुनक्का राय अब रमेश खातिर तनिका दयालु हो गइलन. उनुका अपना पर अफ़सोसो भइल आ ऊ अपना के रमेश के अपराधी माने लगलन. उनुका लागल कि अगर ज़िद क के ऊ रमेश के एल.एल.बी. ना करवइले रहतन आ करा बाद बांसगांव तहसीले में ओमई से निपटे ला ओकरा के ना भिड़ववले रहतन त शायद उहो एह बेरा कवनो निकहा जगहा होखीत. ऊ बुदबुदिबो कइलन, ‘दूध के हम नाबदान में डाल दिहनी !’

रमेशो के ख़ुशी भइल भाई धीरज के पी.सी.एस. हो गइला पर. बाकिर छने भर ला. रमेश के मेहरारु से केहू एकर चरचा कइल त ऊ बोललसि, ‘कोई नृप होए हमें का हानि!’ काहें कि जइसे धीरज रमेश के विनीता का बिआह में बेइज्जत करत रहल वइसहीं घर में धीरज के मेहरारु ओकरा के करत रहल. जेठानी होखो के मान त ऊ छनो भर ला ना दिहलसि. हँ, बाकिर रमेश धीरज के फ़ोन करि के बधाई जरूर दिहलन. त धीरज भावुक हो गइल. बोलल, ‘भइया ई सब राउरे पढ़वला-समुझवला का चलते भइल. रउरे हाई स्कूल अउर इंटर में हमार अइसन रगड़ाई करवा दिहले रहीं कि हमरा आगे चलि के बहुत आसानी हो गइल.’ ऊ बोललसि, ‘रउरे छोड़ल आई.ए.एस. के तइयारी वाला किताब आ नोट्सो हमरा एह सफलता में कामे आइल. भइया रउऱा ना रहतीं त हम पी.सी.एस. ना होखतीं.’

‘चलऽ ख़ुश रहऽ आ ख़ूब तरक्क़ी करऽ !’ रमेश फ़ोन राख दिहलसि ओकरा लागल कि ऊ त मरिए गइल रहुवे, आजु फेरु जिन्दा हो गइल बा. धीरज के बातन से, ओकर दीहल मान से, ओकरा भावुकता से रमेश रो दिहलन. बेटा रंजीव पूछबो कइलसि कि, ‘का भइल पापा?’

‘कुछ ना बेटा नया-पुरान खुशी याद आ गइल.’ रंजीव ते रमेश के एह बाति के ना बुझलसि बाकिर रमेश पुरान बातन का याद में डूबे-उतराए लागल. ओकरा याद आइल कि कइसे ऊ धीरज के हाई स्कूल में केमेस्ट्री के एगो फार्मूला ना याद कइला पर ओकर कइसे जम के पिटाई कइले रहल. कई बेर ऊ अपना पढ़ाई से अधिका धीरज के पढ़ाई पर ज़ोर दिहल करत रहुवे. हाई स्कूल, इंटर का. बी.एस.सी. तकले ऊ ओकर मंजाई करत गइल रहलन. छोट होखाला का बावजूद ऊ ओकरा से कवनो काम ना करवावत रहलें. कइसे त ऊ एगो भाड़ा का कोठरी में मकान में रहत रहुवे. खाना ख़ुदही बनावे, बरतनो धोवे. आ धीरजे काहें तरुणो के का ऊ इहे नेह ना दिहलन. इहे सब आ अइसने तमाम छोट-मोट वाक्या याद क-क के ऊ मेहरारु के बतावत रहलन. बतावले बतावल सुबुकतो रहलन. फेरु अचके में मेहरारु से कहलसि, ‘ढेर दिना हो गइल हमनी का सरयू जी में नहइले. चलऽ आजु डुबकी मार आवल जाव.’

मरद का एह ख़ुशी में मेहरारुओ शरीक हो गइल. दुनु बेटन के ले के ऊ घाट पर गइल. लड़िकनो से डुबकी लगववला का बाद ऊ मेहरारु का साथे अपनहूं कई डुबकी लगवलन आ जम के पवँड़लन. अतवार के दिन रहल से घाट पर भीड़ो अधिका रहल. वकील साहब के एह तरह पवँड़ देखि कुछ लोग कौतुक जतावल त एगा आदमी सभकर जिज्ञासा शांत कइलसि, ‘अरे छोटका भाई पी.सी.एस. में चुना गइल बा. अख़बारनों में फ़ोटो छपल बा भाई!’

‘अच्छा!’

फेरु त वकील साहब के बधाई मिले के तांता लाग गइल. बांसगांव का साथही अब गोलो झूमत रहुवे. छोट जगहन पर मामूली ख़ुशिओ बहुते बड़ हो जाले. गोला में एस.डी.एम. प्रमोटी रहुवे, ऊ तहसीलदार से पी.सी.एस.भइल रहल, उहो कचहरी में रमेश के हाथ पकड़ के बधाई दीहलन. मुनक्का राय के गांवो में ई सिलसिला चललन. भर गांव के छाती फूला गइल.

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अब अगिला परोस फेरु कुछ दिन बाद. अगर भामाशाह बनि के एह काम में हमार साथ बँटावे के मन करें त हिचकिचाईं मत. दाहिना तरफ अँजोरिया के भामाशाह बने के तरीका बतावल गइल बा.. अबहिंए बनि जाईं.

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