– रामसागर सिंह
#बुढ़ापा #भोजपुरी-कविता #रामसागर सिंह
बुढ़ापा एक दिन अइबे करी
old-age-is-inevitable
बचपन गइल, जवानी आइल,
इहो एक दिन जइबे करी,
चाहे कवनो जुगत भिड़ाईं,
बुढ़ापा एक दिन अइबे करी!
केतनो दुध मलिदा खाईं,
काजू किशमिश रोज चबाईं,
खिलल देह खिलले ना रही,
एक दिन इ सूख जइबे करी,
चाहे कवनो जुगत भिड़ाईं,
बुढ़ापा एक दिन अइबे करी!
कवनो पाउडर क्रीम लगाईं,
रोज रोज मेकअप करवाईं,
ढल जाई चेहरा के पानी,
एक दिन इ मुरझइबे करी,
चाहे कवनो जुगत भिड़ाई,
बुढ़ापा एक दिन अइबे करी!
अपने पर इतराइल छोड़ीं,
रुपवा देख धधाइल छोड़ीं
रामसागर कुछ खबर ना लागी,
चाम हऽ ई झूल जइबे करी,
चाहे कवनो जुगत भिड़ाईं,
बुढापा एक दिन अइबे करी!
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– रामसागर सिंह
सिवान, बिहार
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