Tag: बतकुच्चन

बतकुच्चन – ६६-६८

बतकुच्चन – ६६ सोमार के बरखा त बरखल बाकिर अबहीं लर नइखे लागल. लर के मतलब त होला रसरी, सूतरी भा धागा बाकिर एकरा के निरंतरता भा लगातार होखे-बोले वाला बातो खातिर इस्तेमाल कइल जाला. का लर ध लिहले बाड़, एके बात के? जइसे कि पिछला...

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बतकुच्चन – ६५

बुड़बक बझावल राजनीति में त बहुते होला बाकिर विज्ञानो में कम ना होखे. पिछला हफ्ता सुने के मिलल रहुवे कि मानसून केरल ले आ गइल बा आ अब अवले चाहऽता छपरा बलिया ले. बाकिर आसमान से अबही ले वइसहीं आग बरसत बा आ अब कहल जात बा कि मानसून थथम...

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बतकुच्चन – ६४

सुने में आवऽता कि मानसून के बरखा केरल का किनार पर चहुँप गइल बा. अबकी क मानसून करीब सात दिन देरी से आइल बा. आ एह बीच आसमान से बरसत आग के धाह तनी मनी कम भइल बा. बादर बरसे भा ना छाइओ के छाँह कर देला. मानसून के देर से अइला पर मन इहे...

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बतकुच्चन – ६३

आजु जब बतकुच्चन लिखे बइठल बानी त घर दुअरा, खेते खरिहान, सड़क बधार सगरी ओर आसमान से आग बरसत बा. आ एह आग से राजनीतिओ बाच नइखे पावल. पेट्रोल क दाम में बढ़ोतरी का खिलाफ जनता अगियाइल बिआ आ राजनीतिक दल विरोध करे में लागल बाड़े. जे विरोध...

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बतकुच्चन – ६२

हमरा हियाँ अइब त का का ले अइब? तोहरा किहाँ जाएब त का का खिअइब? एह भोजपुरी कहावत में समाज के सुभाव झलकत बा जहाँ आदमी सिर्फ अपना मतलब से मतलब राखे लागल बा. हर हाल में फायदा ओकरे होखे के चाहीं आ अइसे कि सामने वाला के पतो ना लागे भा...

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