Tag: बतकुच्चन

बात पर बात (बतकुच्चन – 195)

सरकार बदलले एक साल बीतल बा आ देश मे बतकही के दौर जारी बा. ई बतकही कब बतकही में बदल जाई केहु ना बता सके. बातचीत कब बाताबाती हो जात बा बुझाते नइखे. सरकार कुछ बोलत ना रहुवे त शिकायत रहुवे कि सरकारो के मालूम बा कि ओकरा लगे बतावे...

Read More

अनसोहाते अनसाईल अनसाह (बतकुच्चन – 194)

कबो ट्रेन के टाइम त कबो हवाई जहाज के टाइम का चलते अनसोहाते मौका मिल जाला बतकुच्चन से आराम करे के. सोहाव त ना बाकिर कुछ देर ला सोहावन जरूर लागेला. आ आज एहीसे अनसोहाते पर बतकु्च्चन करे के मन बनवले बानी. अब रउरा एहसे अनस आवे, रउरा...

Read More

घूर का घुरची में घुरचियाइल (बतकुच्चन – 193)

जय हो बाबा लस्टमानंद के! पिछला अतवार के घूर के चरचा में अइसन टीप दिहलन कि सोचल धरा गइल आ हम घूर का घुरची में घुरचिया के रह गइनी. सोचे लगनी त लागल कि आखिर हम बतकुच्चन में करेनी का, घुरबिनिया छोड़ के. बाकिर घूर आखिर कइसे अतना...

Read More

कमान आ कमीना का बहाने (बतकुच्चन – 192)

भासा संस्कार से बनेला आ संस्कार भासा से. भासा संस्कार देखावेले आ संस्कार भासा के इस्तेमाल के कमान सम्हारेले. कमान सम्हारे खातिर कई बेर कमानी चढ़ावे पड़ेला आ कई बेर कमाने से काम चल जाला. एह कमाने आ कमाई वाला कमाने के कवनो संबंध...

Read More

गउँवा गउँईं त गईंया भेंटइले (बतकुच्चन – 191)

भोजपुरी के खासियत ह कि एकरा में नया शब्द गढ़े के अपार बेंवत मौजूद बा आ इहे एकर कमजोरियो साबित हो जाले कई बेर. हिन्दी के विद्वान लोग जब भोजपुरी लिखे चलेला त अकसरहाँ ओह लोग के संस्कृतनिष्ठ हिन्दी आ व्याकरण बोध हावी रहेला आ फरक...

Read More