अउर ए बंद से महँगाई घटि गइल…हा..हा..हा..हा..

Prabhakar Pandey

– प्रभाकर पाण्डेय “गोपालपुरिया”

केतना खुशी के बाति बा कि काल्ह का बंद से महँगाई घटि गइल. हँ भाई! काँहें हँसतानि? घटल नइखे का? खैर हो सकेला रउरा खातिर ना घटल होखे पर एह बंद से हमार महँगाई त घटि गइल, मतलब हमरा त बहुते फायदा भइल. अब सुनीं बतावतानी –

काल्ह सबेरवें-सबेरवें रामखेलावन भाई अइने अउर हम से कहने, “का हो चिघारू भाई, का हालि बा?” हम कहनी, “कुछ ना भाई. लागऽता महँगाई जीए ना दी. लागता आजु कामो पर जाए के ना मिली.” हमार एतना बाति सुनि के रामखेलावन भाई त लगने जोर-जोर से हँसे. हम कहनी, “हमार आफति में परान बा अउर तोहरा हँसल नीक लागता?” एह पर रामखेलावन भाई कहने, “भाई चिघारू, तोहार कवनो जबाब नइखे. हमरा इ ना बुझाला कि तूँ कवने दुनिया में रहेलS?” हम कहनी, “हम समझनी ना.” “त ल सुनS, हम सुनावतानी”. एतना कहि के रामखेलावन भाई शुरु हो गइने. “अरे भाई महँगाइए के ले के त आजु भारत बंद के नारा बुलंद करे के बा. देखS आजु का बाद महँगाई कवनेगाँ दुम दबा के भागि जाले.” हम कहनी, “भाई, ए बंद-ओंद से कवनो फायदा ना होई. ई सब ओट के राजनीति हS. एह से नोकसान जनते के होई. एहमें गरीब जनते पिसाई.”

हमरी एतना कहते त रामखेलावन भाई आग-बबूला हो गइने अउर मुँह फूला के कहने, “तूँ त खालि अपने धुनबS, हमार बात त मनबS ना, जा जवन बुझा उ करS, अब हम तोहके ना समझाइबि.” अरे अबहिन हमार अउर रामखेलावन भाई के बात चलते रहे तबले कहिं मलिकाइनियो घर में से निकलि अइली अउर आवते घुँघुट काढ़ि के रामखेलावन भाई से कहली, “इहाँ के कबो केहू के बात मनले बानी कि आजु राउर मानबि.” हम कहनी, “अब तूँ का बीचे में कूदि पड़लू. (रामखेलावन भाई कि ओर देखि के) बतावS रामखेलावन भाई, का करे के कहत रहलS हS.”

रामखेलावन भाई कहने, “हम तS तोहार महँगाई कम करे आइल रहनी हँ.” तब हम कहनी, “तS कS दS.” हमार इ बाति सुनि के रामखेलावन भाई एगो लंबा-चवड़ा भासन दे देहने. उ हमसे कहने, “आजु तूँ काम पर मति जा. बिहने आफिस में कहि दिहS कि कवनो सवारी ना मिलल ए से हम आफिस ना आ पवनी. ए तरे तोहार हाजिरियो लागि जाई अउर आजु कि दिन के तनखाहो ना कटी। अउर हाँ तहरी साहबो के पता बा कि आजु भारत बंद बा. तूँ हमरी साथे आवS, हम तोहके आजु खिआइबि-पिआइबि अउर दु सौ रुपयो देइबि.” रामखेलावन भाई के बाति सुनि के हमरा बहुत अचंभा भइल अउर खुशीओ. अब हमरा बुझात रहे कि इ त सही में हमार महँगाई कम हो रहल बा. आजु आफिसो ना जाए के परी अउर फिरिहा खइले-पियले क बाद दु सौ रुपयो मिली.

हम झट से तइयार हो के रामखेलावन भाई कि साथे चलि देहनी. अरे इ का? हमनी जान ज्यों-ज्यों आगे बढ़े लगनी जा, हमनी का साथे अउरियो लोग जुड़े लागल. देखते-देखत एगो मजिगर भीड़ हो गइल.

हम भीड़ में रामखेलावन भाई क साथे एकदम आगे रहनी अउर महँगाई का खिलाफ नारा लगावत रहनी. भीड़ दुकान-सुकान बंद कराबत, तोड़-फोड़ करत आगे बढ़त रहे. अरे भाई हम त एगो दोकानदारे के दु चटकन मारि के दु-चारिगो साबुनो ओकरी दोकानी में से ले के एगो झोरा में ध लेहनी. अब हम बहुत खुश रहनी काँहे कि अब हमरा बुझात रहे कि हमार मँहगाई कम हो रहल बा.

आगे बढ़ले पर एगो आदमी लउकल. उ साइकिल पर सवार रहे अउर कुदारी लटकवले रहे. भीड़ के देखते ऊ साइकिल पर से हड़बड़ा के उतरि गइल अउर रस्ता से किनरिया गइल. हम दउड़ि के ओकरी लगे पहुँचनि अउर कहनी, “का हो सरऊ, आजु तोहरा मालूम नइखे कि महँगाई का खिलाफ पूरा भारत बंद बा.” एतना कही के हम ओकरी साइकिल में से हवा निकाले लगनी अउर तवले कहीं भीड़ में से दु-चार आदमी आगे बढ़ि के ओके थपरियावे लागल. उ मनई साइकिल छोड़ि के घिघियाते कहलसि, “हमरा दु गो छोटे-छोटे लइका बाने सन अगर हम काम पर ना जाइबि त हमरी घरे चूल्हि ना जरी.” ओकर इ बाति सुनि के हम एक चांटा लगवनी अउर कहनी, “अरे भकचोनरा, एक दिन तोर लइका खइहें कुलि ना त ठीके बा न. महँगाई कम होई.” एकरी बाद ओ मनई के घिघियात छोड़ि के हम भीड़ कि साथे आगे बढ़ि गइनी.

साँझि खान ओ दु सौ रुपया में से 100 रुपया के मुरगा ले अइनी अउर मलिकाइन से कहनी कि आजु मुरगा-भात खाइल जाई. तबले कहीं रामखेलावनो भाई एगो देसी अद्धा ले आके दे गइने अउर कहि गइने कि खइले-पियले कि बाद एह के ले के आराम से सुति जइहS.

राति खान खात समय हमार लइका कहलसि, “बाबूजी, केतना अच्छा बा. रोज बंद रहे के चाहीं. हमरा इस्कूले ना जाए के परी अउर रोजो मुरुगा खाए के मिली.” हम अपना लइका क बाति पर धेयान ना देहनी अउर खइले-पियले क बाद अद्धा मारि के सुते चलि गइनीं.


प्रभाकर गोपलापुरिया के पहिले प्रकाशित रचना


प्रभाकर पाण्डेय

हिंदी अधिकारी, सी-डैक पुणे

पुणे विश्वविद्यालय परिसर, गणेशखिंड,

पुणे- 411007, भारत

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