(वसन्त पंचमी, 1ली फरवरी 2017, प मंगल कामना करत)
– अशोक द्विवेदी
कठुआइल उछाह लोगन के,
मेहराइल कन -कन
कवन गीत हम गाईं बसन्ती
पियरी रँगे न मन !!
हर मजहब के रंग निराला
राजनीति के गरम मसाला
खण्ड खण्ड पाखण्ड बसन्ती
चटकल मन – दरपन !!
गठबन्धन के होय समागम
तिहुआरी टोटरम के मौसम
धुआँ -धूरि कोहराम मचावे
धरती अउर गगन !!
गलत कलेण्डर के तिथि लागे
जे देखs ,बउराइल भागे
कोइलरि गइल बिदेस भँवरवा
गड़ही – तीर मगन !!
हिम-तुसार-बदरी घिरि आइल
जाय क बेरिया माघ ठठाइल
चुभ-चुभ धँसे बरफ के टेकुआ
सन् सन् चले पवन !!
कवन गीत हम गाईं बसन्ती
पियरी रँगे न मन !!
नीक. बहुत निक लागल.