कुछु समसामयिक दोहा

– मुफलिस

देई दोहाई देश के, ले के हरि के नाम.
बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम.

लूटे में सब तेज बा, कहाँ देश के ज्ञान
नारा लागत बा इहे, भारत देश महान.

दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष.
सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष.

असामाजिक तत्व के, नाहीं बिगड़ी काम.
नीमन नीमन लोग के, होई काम तमाम.

भाई भाई में कहाँ, रहल नेह के बात.
कबले मारबि जान से, लागल ईहे घात.

नीमन जे बनिहें इहां, रोइहें चारू ओर.
लोग सभे ठट्ठा करी, पोछीं नाहीं लोर.

अच्छे के मारी सभे, बिगड़ल बाटे चाल.
जीवन भइल मोहाल बा, अइसन आइल काल.

पढ़ल लिखल रोवत फिरस, गुण्डा बा सरताज.
अन्यायी बा रंग में, आइल कइसन राज.

सिधुआ जब सीधा रहल, खइलसि सब के लात.
बाहुबली जब से बनल, कइलसि सब के मात.

साधू, सज्जन, संत जन, पावसु अब अपमान.
दुरजन के पूजा मिले, सभे करे सनमान.

पइसा पइसा सब करे, पइसा पर बा शान.
पइसा पर जब बिकी रहल, मान, जान, ईमान.


चौधरी टोला, डुमराँव, बक्सर – 802 119


ई रचना अंजोरिया के शुरुआत में अगस्त २००३ में प्रकाशित भइल रहे.

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