गउँवा गउँईं त गईंया भेंटइले (बतकुच्चन – 191)

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भोजपुरी के खासियत ह कि एकरा में नया शब्द गढ़े के अपार बेंवत मौजूद बा आ इहे एकर कमजोरियो साबित हो जाले कई बेर. हिन्दी के विद्वान लोग जब भोजपुरी लिखे चलेला त अकसरहाँ ओह लोग के संस्कृतनिष्ठ हिन्दी आ व्याकरण बोध हावी रहेला आ फरक पड़ेला त बस क्रिया रूपन में. एहसे कई बेर लोग अपना हिन्दिए लिखलका के भोजपुरिया देला ओकर क्रिया रूप बदल के. आया गया के आइल गइल, अइनी गइनी वगैरह क के. बाकिर एह अइनी गइनी के एगो अउर रूप मिल जाला अँउई-गँउई का रूप में. हम ओहिजा गँउई त देखुईं कि बहुते भीड़ लागल बा. पहिले त सोंचुईं कि कवनो तर-तमाशा होखत होखी बाकिर भीड़ में ढुँकुईं त देखुईं कि सभे इहे देखे ला भीड़ लगवले बा कि भीड़ का देखे ला लागल बा! महानगरन में अइसन आएदिन होत रहेला. कवनो भीड़-भाड़ वाला जगहि पर रुक के ताके लागीं कुछ देर. गँवे-गँवे बाकिओ कुछ लोग देखे लागी कि का देखत बानी आ फेर भीड़ से रउरा धीरे से फरका निकल के तमाशा देखत रहीं. भीड़ देर ले बनल रही बस भीड़ के लोग बदलत रही.

बतकुच्चनो में हम अइसने भीड़ लगावे के फेरा में रहीलें. कुछ चरचा चला दिहल जाव त कुछ अउरी लोग एह पर अपना तरह से चरचा करे लागी आ एह तरह से एगो बड़हन दायरा में चरचा के शुरुआत हो सकेला. अब अइसन होखत बा कि ना से त पता ना चले काहे कि लोग पढ़ेला आ पढ़ के सरक लेला दोसरा पन्ना पर, दोसरा पाठ पर. केहू के अतना फुरसत ना रहे कि एह पर आपन टिप्पणी अखबार के संपादक का लगे भा बतकुच्चन करे वाला लगे करो. बाकिर हम रउरा सभे के अनदेखी का चलते आपन काम कइसे छोड़ दीं. से हम त आपन बतकुच्चन करत रहब.

आज गँउई के चरचा करे लगनी त धियान में आइल कि गँउवा आ गँईआ के तुक एह से मिलत बा आ ओहू पर चरचा कइल जा सकेला. गँउवा अपना गाँव का बारे में कहीं भा अपना गाँव के कवनो आदमी के बारे में. राह पेड़ा में भेंटाइल अपना कवनो गँउवा से अपना गँउवा के चरचा करे मे आनन्द अउरी बढ़ जाला अगर ऊ गँउवा आपन गँईआ रहल होखे. गाँव आ गाँव वाला का बारे में गँउवा के इस्तेमाल होखेला आ अपना गोल में आपन साथी रहेवाला ला गँईआ के. गँईआ माने टीम में साथी. अब टीम कवनो खेल के होखे भा कवनो दोसरा बात के. बाकिर गईंआ खेल के साथी खिलाड़ी ला अधिका कहल जाला. दोसरा टीम के खिलाड़ी गँईआ ना होखे राउर.

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