हालही में एगो कविता के कुछ लाइन पढ़े के मिलल “मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन / जोगवत जिनिगी ओराइ / सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा / छतिया के अगिया धुँआइ”. पढ़ला का बाद अपना बतकुचनिया सुभाव का चलते मन उचके लागल, सोचे लागल कि भाषा के जोगवत सम्हारत जिनिगी ओराइयो जाई, बाकिर एकर थाह ना लाग पाई. कहले गइल बा कि बड़ बड़ जाना दहाइल जासु, गदहा पूछे कतना पानी ? एह काम में बहुते बड़का विद्वान लागल बाड़न आ थाह नइखन पावत त हमरा जइसन गदहा के का थाह लागी. बाकिर तब बोपदेव के लड़िकाई के ऊ किस्सा मन पड़ गइल कि कइसे अपना असफलता से हारल बोपदेव इनार धरे गइलन त ओहिजा इनार का मुंड़ेर का पत्थर पर पड़ल रसरी के निशान देखि उनुका लागल कि रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान. अगर लगातार अपना निशान, लक्ष्य, का दिसाईं लागल रहीं त देर सबेर ओहिजा चहुँपिये जाएब. हँ त बाति निकलल रहुवे पिरितिया के उझुकुन से. संस्कृत शब्द उचकन भोजपुरी में आ के उचुकुन हो गइल आ उचारन भेद से उछुकुन. उचुकुन भा उछुकुन ओह के कहल जाला जवन कवनो चीज के उचकावे का कामे आवे. खास कर के चुल्हा पर राखल बरतन के उठा के राखे खातिर उचुकुन के इस्तेमाल कइल जाला कि आग के तापि ओकरा नीचे से बहत रहो. अब त ऊ काम गैस स्टोव के ग्रिल करे लागल बा से उचुकुन गाँवे देहात ले रहि गइल. अब उचक के उठे के कोशिश उचकल होला जइसे कि जब कवनो छोटहन लड़िका फरदवाली, चहारदीवारी, के ओह पार ताके खातिर अपना एड़ी उठा के गोड़ का पंजा का सहारे उचक के उठे के कोशिश करेला. आ जब केहू दोसर ओकरा के सहारा देव उचकावे खातिर त ओकरा के उचकावल कहल जाला. वइसे उचका के मतलब अचका भा अचानको होला आ एही से बन गइल उच्चका जे उचका में आ के राउर कवनो चीझ बतुस छीन के, उचक के, ले भागेला. एह बीच रउरा देखले होखब कि उचुकुन में च आ क में छोटकी उ के मात्रा लगावल गइल बा. हिंदी पढ़े का आदत का चलते एह शब्द के जवन उचारन भा उच्चारण होखी से भोजपुरी में ना होखी काहे कि ऊ छोटी उ के मात्रा त ह बाकिर छोटकी छोटी उ के. ह्रस्व ह्रस्व इ के ई उपयोग भोजपुरी के अलगे सुभाव ह. ठीक वइसहीं जइसे कि दीर्घ अ के उचारन. आ एही चलते भोजपुरी लिखे भा बोले में जतना आसान लागो पढ़े में ओह लोग के पसीना छूट जाला जिनका भोजपुरी के उचारन से भेंट नइखे. मास्टर साहब पूछसु कि पढ़बऽ कि ना त विद्यार्थी जवाब दी हँ पढ़ब. एहिजा दुनु तरह के पढ़ब के उचारन दू तरहा होखी आ एहसे कई बार विकारी चिह्न “ऽ” लगा के ओकरा के अलग जतावल जाला. अब एह विकारी चिह्न के इस्तेमाल कुछ विद्वान अधिके कर बइठेले. हर जगहा एह निशान के इस्तेमाल जरूरी ना होखे जइसे कि त, द, ल, ह का साथे बिना विकारी चिह्न लगवलो काम चलावल जा सकेला. हालांकि एहिजा हम माफी चाहब अगर कुछ बेजांय कहत होखीं त, काहे कि हम व्याकरण के जानकार ना हईं. व्याकरणाचार्य लोग हमरा के माफ कर दी काहे कि आम आदमी व्याकरण के ओतना इस्तेमाल ना करे जतना विद्वान लोग करेला आ भोजपुरी आम आदमी के भाषा बेसी ह, विद्वानन के कम. एह बतकही में एकाध बेर उचारन के चरचा भइल त धेयान में आइल कि उचारल भविष्यवाणिओ के कहल जाला. कबो एह उचारन खातिर कागा से उचरे के निहोरा कइल जाला त कबो सड़क किनारे बइठल पंडित जी के तोता से. अब बखरा के बात फेर कबो.
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