तेरह तारीख के चुनाव परिणाम सुनत एगो बाति दिमाग में घूमे लागल. बंगाल में दीदी जीत गइली, तमिलनाडु में अम्मा. राजनीति में सत्ता के गलियारन तक पहुँचे वाला लोग में कबो कवनो भउजी आइल होखसु से याद नइखे आवत. पिछला हफ्ता बात त पहुँचा, पहुँची, पहुँचल के करे के वादा कइले रहीं बाकिर बाति पर टिकल रहि जाव त भला बतकुच्चन कइसन. आजु भउजी के बात बेसी जरुरी लागल एहसे भउजीए में अझुरा गइनी. हँ, त बात होत रहुवे सत्ता के गलियारा में चहुँपे वाला लोग दीदी हो सकेला, अम्मा हो सकेला बाकिर भउजाई ना, से काहे ? जबकि भउजी शब्द में महतारी जइसन आदर आ प्रेमिका जइसन अपनापन दुनु मिल जाले. आम बोलचालो में देखीले कि लोग कवनो औरत के भाभी त बड़ा आराम से कहि देला बाकिर उहे आदमी ओही महिला के भउजी ना कहे.
सवाल उठल स्वाभाविक बा कि अइसन काहे ? कहीं एह चलते त ना कि भाभी में औपचारिकता वाली ध्वनि झलकेला जबकि भउजी में कहीं ना कहीं अपनापन, स्नेह वाली भावना. आ शायद एही चलते भउजी शब्द बोलचाल में कम होत चल गइल आ भाभी बढ़त गइली. फेर सोचनी कि भाभी का साथे जी जोड़ला बिना आदरसूचक ना बन पावे जबकि भउजी में जी हमेशा से जुड़ल बा. आ बात जब भउजी के चलत बा त इहो बता दिहल सही लागत बा कि बड़ भाई के पत्नी के भउजी भा भउजाई आ छोट भाई के पत्नी के भवे भा भवह कहल जाला. आ एही भ धातु से बनल पार्टी भाजपा से हमार निहोरा बा कि सुषमा स्वराज के अगर सुषमा भउजी का रुप में सामने ले आवल जाव त शायद नवहियन के पार्टी से जोड़े में सुविधा होखी.
अलग बाति बा कि भाजपा हर बात का तरह एहू बाति के निर्देश संघ मुख्यालय से मँगवावे में लाग जाई आ जब ले निर्देश आई तब ले कहीं बहुते देर मत हो जाव. एगारह बीते आ चौदह आवे में देरिये कतना लागे के बा.
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