भउजी हो ! ए-सोशल बनावत सोशल मीडिया
भउजी हो !
का बबुआ ?
तू सोशल मीडिया पर काहें ना आव ?
रउरे चलते !
हमरा चलते ?
हँ, रउरे चलते. सोचीं, अगर हमरा लगे मोबाइल रहीत आ ओहमें राउर सोशल मीडियो रहीत, त का होखीत. रोज सबेरे हमहूं उठ के ओहपर सवार हो जइतीं. एने से आइल फोटो ओने, आ ओने से आइल फोटो एने पठावत रहतीं. रउरो भोरे उठिके हमरा के गुड मॉर्निंग आ सूते बेरा गुड नाइट बोलि के पटा जइतीं. हमरा लगे चाय पिए आवे के जरुरते ना रहीत. काहें कि रउरा चाय पिए ना, भेंट करे आइलें. चयवा त कनिअवो हमरा से बढ़िया बनावेले. इहे सब सोचि के हम मोबाइले राखे के झंझट ना रखनी. आ घर में हर सवाङ का लगे त मोबाइल बड़ले बा. केहू ना केहू त हमेशा घर पर रहबे करेला.
ई त बड़ा जोरदार बतवलू.
आ दोसरे एह सोशल मीडिया का चलते आदमी कतना ए-सोशल हो गइल बा. सोचिलें कबो घर में अब बइठका राखले बेकार लागे लागल बा. ना त केहू आवेला, ना केहू किहां जाए के जरुरत लागेला, अब त नेवतो-हकारी लोग सोशले मीडिया का जरिए कर लेता. आ जे केहू आइबो करेला ऊ अपना घरे-परिवार, नाता-रिश्तेदारी के होला. ओह लोग के त सीधे चुहानी ले आ जाए में रोक ना होखे. तब घर में बइठका रखला के का जरुरत ?
ठीक कहलू ह भउजी. हमहूं अब कोशिश करब कि नात-रिश्तेदारी, हित-मीत किहां आवेृ-जाए के सोचब. बाकिर एहि पर एगो पुरान घटना इयाद आ गइल.
कवन ?
कई बरीस से गाँवे जाए के मौका भा जरुरते ना बुझाइल रहे. ओह साल फगुआ का मौका पर हम गाँवे गइल रहीं. चाचा रहलन. भोरे धूर-खेल का बेरा कहनी कि चलीं ना गाँव में घूमल जाव. कहलन कि अब केहू कहीं आवत-जात नइखे. महटिआवऽ. बाकिर हमरा से महटिआवल पार ना लागल. ओह बेरा त ना बाकिर दुपहरिआ में सती स्थान पर चहूँप गइनी. दू तीन लोग ढोलक-झाल लिहले फगुआ गावे के रस्म पूरावत रहल. हमहूं शामिल हो गइनी. कुछ देर में कहनीं कि चलीं ना अब गाँव में घूम लीहल जाव. कहल लोग कि अब गाँव में फगुआ-गोल नइखे घूमत. बाकिर हमरा कहला पर लोग चल दीहल बाति मानि के. गँवे-गँवे लोग शामिल होत गइल आ हमनी के पूरा गाँव के हर घर-दुआर पर घूम लिहनी सँ, बहुते लोग अचरज में पड़ जाव आ असहजो हो जाव लोग. काहें कि केहू किहां गड़ी-छोहाड़ा शरबत के इंतजामे ना रहल. सभे निफिकर रहे कि के आवे वाला बा !
अब त बबुआ गाँव-गाँव के इहे हाल हो गइल बा. सबले बड़का बाति ई बा कि गाँव में अब नवही लउकबे ना करसु, सभे या त पढ़ाई करे भा नौकरी करे बाहर चलि जात बा. गाँव में रह जात बाड़ें कुछ बुढ़वा-बुढ़िया, कुछ औरत आ नन्हका-नन्हकी.  
ठीक कहतारू भउजी. बाकिर अब ई मसला हल नइखे होखे बाला. बेमारी अतना बढ़ि गइल बा कि आगे के सोचिए के मन काँप जात बा.
चलीं. मन मत कँपाईं, चाय पीहिं. आ अब मत पूछब कि हम सोशल मीडिया पर काहें ना आईं.

 

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