– हरेन्द्र कुमार पाण्डेय
अबले जवन पढ़नी ओकरा आगे …)
मुजफ्फरपुर इमलीचट्टी होके ऊ यूनिवर्सिटी पहुंचलन. उहां केमिस्ट्री विभाग में गइलन. विभागाध्यक्ष के कमरा बंद रहे. ऊ अर्दली से पुछलन – ‘डॉ.शाही ?’
अर्दली एगो कागज पर उनकर नाम आ आवे के कारण लिखवा के अन्दर गइल. आके कहलस – ‘सर, रउरा से साढ़े बारह बजे मिलब. हां, एकदम 12.30, माने 12.30 समझनी न?’
जुगेसर एने ओने घूमे लगलन. अहसहूं एह यूनिवर्सिटी में उनका जान-पहचान के खास केहू ना रहे. साढ़े बारह के कुछ पहिलहीं आ गइलन डॉ. शाही के कमरा के सामने. अर्दली बाहरे बइठल रहे. ठीक 12.30 बजे घंटी बाजल. ऊ जुगेसर की ओर देख के मुस्कुरात भीतर गइल. जुगेसर माथा झटक के तैयार हो गइलन.
कमरा के अन्दर घुस के जुगेसर के माथा चकरा गइल. कहां प्रोफेसर चटर्जी के पटना वाला कमरा आ कहां ई. फर्श पर कालीन बिछल रहे. डॉ.शाही के टेबुल तक पहुंचे खातिर उनका चले के पड़ल. एगो बड़ा टेबुल का सामने ऊ बइठल रहस घूमेवाला कुर्सी पर. कमरा के चारों ओर आलमारी में किताब करीना से सजल रहे. डॉ.शाही के सामने पहुंच के जुगेसर कांपत आवाज में कहलन – ‘गुड मार्निंग सर.’
-‘गुड मार्निंग. प्लीज टेक योर सीट.’
डॉ.शाही के आवाजो अलग लागत रहे. प्रो.चटर्जी के दीहल लिफाफा जुगेसर हाथे में रखले रहस. उनका ओर बढ़ा दिहले. टेबुल का दराज से कैंची निकललन डॉ.शाही. सावधानी से लिफाफा के किनारा काट के चिट्ठी निकललन. पढ़ के जुगेसर की ओर देख के कहलन – ‘हैव यू ब्राट द सिनॉप्सिस?’
-‘यस सर.’ कहके जुगेसर आपन बैग खोललन. ओमे से आपन सिनॉप्सिस निकाल के उनका सामने रख दिहलन.
डॉ.शाही ध्यान से पढ़े लगलन. करीब 10 मिनट लागल उनका पढ़े में. एह बीच जुगेसर के दिल के धडक़न बढ़ गइल. आखिर डॉ.शाही सर उठा के बोललन – ‘सो यू आर गोइंग फॉर सिन्थेसिस ऑफ इनआर्गेनिक साल्ट विथ बेंजीन रिंग. गुड! वैरी गुड!! इज इट गोइंग टू हैव एनी मेडिसीनल वैल्यू?’
– ‘दैट इज द फाइलन क्वेस्टर सर.’
– ‘व्हाट इज योर फीड़ बैक?’
– ‘कॉलेज लाइब्रेरी सर.’
– ‘हूं…’
– ‘बट आय डोंट थिंक समस्तीपुर कॉलेज हैज एनी लाइब्रेरी टू वर्थ.’
जुगेसर जवाब ढूंढे लगलन. थोड़ा देर सोच के डॉ.शाही कहलन – ‘योर नेम वुड बी रजिस्टर्ड एंड यूनिवर्सिटी विल पे द बिल फॉर दीज 2 मैगजींस.’
ऊ अपना टेबुल से दू गो पत्रिका जुगेसर के देत-देत कहलन – ‘सेंड द ऑर्डर ऑन बिहाफ ऑफ योर डिपार्टमेंट ऑफ समस्तीपुर कॉलेज. आय शैल सेंड द आफिशियल ऑर्डर. ओ.के..’
जुगेसर का बुझा गइल अब उठे के चाहीं. ऊ खड़ा भइलन. डॉ.शाही खड़ा हो के हाथ बढ़वलन जवना के आशा जुगेसर ना कइले रहस. उनका आपन हाथ बढ़ावे में थोड़ा समय लागल. डॉ.शाही के आवाज उनका कान में जइसे दूर से आवत रहे – ‘आय एम रियली प्लीज्ड विथ योर स्टाइल ऑफ सबमिसन. यू हैव ओरिजनलिटी. मे गॉड ब्लेस यू.’
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दस साल बाद
भारत के सामाजिक परिवर्तन त नइखे मालूम, बिहार के सामाजिक गणित में बहुत बड़ा परिवर्तन हो गइल. भारतीय राजनीति में विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रताप से बिहार के सत्ता एगो खास वर्ग का हाथे आ गइल. जवन आंदोलन के शुरुआत कांग्रेस के ब्यक्तिवाद-परिवारवाद का खिलाफ भइल रहे ओकर खात्मा एगो नया व्यक्तिवादी परिवार का हाथ में चल गइल. बिहार में एकर नंगा रूप दीखल. पुरान सत्ता केन्द्र ताश के महल जइसन ढह गइल. ‘भूरा बाल साफ करो’ नारा देबे वाला ‘माई’ के गोहरा के गद्दी के खानदानी शासन में बदल दिहलस. अराजकता के आलम शिक्षा व्यवस्था के तहस नहस कर दिहलस. हालांकि कहेवाला कहेला कि पहिलहीं कवन अच्छा रहे. एहू बात में कम दम ना रहे. जातिवाद पर फलल-फूलल कॉलेज आ यूनिवर्सिटी के ढांचा एतना कमजोर रहे कि नया तूफान सब कुछ तोड़ मरोड़ के रख दिहलस.
मिथिला विश्वविद्यालय में केमिस्ट्री के हेड डॉ.विनोद पांडेय कइसहूं नार्थ ईस्ट यूनिवर्सिटी में घुस गइलन. बीच में उनकर खबर मिले पीयल बढ़ गइल बा. जवना से बड़ा आश्चर्य भइल. ऊ का दू पीयल बंद कर देले रहस आ ज्योतिष शास्त्र उनकर प्रिय विषय हो गइल रहे. उनकर लिखल एगो लेखो छपल रहे विख्यात ‘नेचर’ पत्रिका में.
ज्योतिष शास्त्र के विज्ञान सम्मत ना शुद्ध विज्ञान साबित करे के चहले रहस. ऊ लेख पढ़ के जुगेसर एगो चिट्ठीओ लिखले रहस लेकिन कवनो जवाब ना आइल. ना जाने उनका पास पहुंचलो रहे कि ना. मिथिला यूनिवर्सिटी में उनकर जगह डॉ. ठाकुर ले लिहलन. डॉ.ठाकुर के नाक त पहिलहीं बड़ रहे. सुने में आइल तत्कालीन शिक्षा मंत्री से बड़ी नजदीकी हो गइल रहे. शिक्षा मंत्री जी का समस्तीपुर कालेज में कवनो रुचि ना रहे. बेशक रविन्द्र भवन में रुचि दिखावत रहस. बतावे वाला त बहुत कुछ बतवले रहे. सत्यकाम जी के खोज खबर लेले रहस. पता चलल ऊ आपन कारोबार समस्तीपुर का, बिहारे से समेट के कवनो दोसरा प्रांत में चल गइल रहस. रविन्द्र भवन के साथ बनल ब्यवसायिक परिसर बेच के अच्छा खासा कमाई भइल रहे उनके. हँ, मिसेज बोस मंत्री जी से मिले जरूर गइल रहस. उनका चल गइला पर अपना पीए के बोला के कहलस – ‘हुजूर छोड़ी ना इ समस्तीपुर आ दरभंगा के कहानी. पटना में त एक से एक कार्यक्रम हो रहल बा.’
– ‘इहे राज सुख ह रे बोकवा. नेताजी एगो पार्टी आफिस दिल्ली में खोलऽताडऩ. पिछला बार स्टाफ के इंटरव्यू लेबे खातिर हमरो के भेजले रहस. ऊ रहे..का नाम ह ओकर? अरे पंजीबी आईएएस बा जवन. दिल्ली पहुंचत-पहुंचत ससुर रंग दिखावे लागल. हम साफ कह दिहनी – देखऽ भाई हमरा रहत तहरा उहे करे के पड़ी जे हम चाहब. प्रजातंत्र में जनप्रतिनिधिए सब कुछ होला. तब जाके होश आइल.’
– ‘कुछ सेवा पानी कइलस कि ना?’
– ‘कहां रे! ऊ त हमार एगो पुरान संघतिया भेटा गइल. शिव नारायण सिंहवा. कस्टम में नोकरी करऽता दिल्ली में. उहे एक दिन ले गइल रहे एगो नाच वाला जगह. का नाम रहे स्टार-वोस्टार. तबीयत खुश हो गइल मां कसम. आ इहां ई बंगालिन हमरा के समुझावत रहल नृत्य केतना तरह के होला?’
– ‘का का भइल सर ऊ ब्लू स्टार में?’
– ‘मत पूछा सिंहवा के देखत भइल कि ओकर मालिक हमनी के एगो अलग-जगह में बइठा के शराब ले आइल भूजल मुर्गा के साथ. ओने स्टेज पर एक से एक लडक़ी आके नाचे लगली. एक से बढ़ के एक. तीन घंटा के प्रोग्राम. जइसन म्यूजिक ओइसने लाइट के चकमक.’
– ‘आउर कुछ, सर.’
– ‘बस अब खतम. तुम आगे का कार्यक्रम देखो.’
मंत्री जी के हिन्दी में बोलला के मतलब पीए का अच्छी तरह मालूम रहे.
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परिवर्तन के एह दौर में जुगेसर के का हासिल भइल, एकर निर्णय पाठक वर्ग करी. हम त सिर्फ कहानी लिखऽतानी. उनको ओह समय के बाकी आशा रहे त परिवर्तन से. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के सपोर्ट में उहो कएक दिन धरना पर बइठल रहस. कालेज का वादविवाद प्रतियोगिता में उनका सेकेंड प्राइजो मिलल रहे. हालांकि उनका विश्वास रहे फर्स्ट होखेवाला के श्रीवास्तव पदवी के योगदान रहे.
ई सबका साथ होला. जीत के कारण पुरुषार्थ आ हार के कारण उनकर जोगाड़ नजर आवेला. परिवर्तन के ई समय कुछ हद तक मेला के भगदड़ जइसन हो गइल रहे. जइसे मेला में हाथी सनक गइल रहे. सभे भागत रहे. केहूके चप्पल छुटल त केहू के सामान. हां, केहू का दोसरो के सामान हाथे लाग गइल. बाकिर जुगेसर के भाग्य अइसन कहां रहे. उनका त अपने मिलल बडक़ा बात रहे.
त उनकर भुला गइल पीएच.डी.. ऊ जब-जब आपन थीसिस के प्रोग्रेस डॉ.शाही के दिखावस, डॉ.शाही आनंद से उछले लागस.
– ‘ब्रेभो. यू विल मेक हिस्ट्री!’
एक-एक लाइन, एक-एक शब्द डॉ. शाही पढ़स. उनके बतावस – ‘लुक, प्रापर वर्ड का यूज बहुत वाइटल है.’
बाकिर, परिवर्तन के झंझावात में डॉ.शाही के अस्तित्वे खत्म हो गइल. उनका अलग दीखे के गुण बहुत शत्रु बना दिहलस. एक दिन खबर आइल कालेज के कुछ छात्र डॉ.शाही के जान से मार दिहलन. कहे वाला त कहेला उनके विषय के कवनो प्रोफेसर के हाथ रहे. बाकिर जुगेसर अपना नुकसान के पूरा ना कर सकलन. ता उम्र जुगेसर घर बंधलन पूजा का साथे. कुछ अइसन परिस्थिति पैदा हो गइल कि पूजा के शादीओ नान इवेंट बन के रह गइल. ऊ एक्सर्टनल एक्जामिनर बन के पटना गइल रहस. सब कुछ सामान्ये रहे. हठात् रात में फोन आइल अर्चना के. ऊ बतवलस कि आपन शादी कवनो हरिजन लडिक़ा से कर लेले बाड़ी. ई खबर बैकुण्ठ जी पर बड़ा भारी पड़ल. तबीयत त अइसहूं खराबे रहत रहे. दवा खाए से ज्यादा खानपान के संयम पर ध्यान रहे उनकर. डॉक्टर के बार-बार कहला के बादो प्रेशर के दवा नियम से ना खास. ओहदिन जुगेसर का अइला के कारण पुरी तलाइल रहे घर में. खाना तनिका बेसिए हो गइल रहे. सुबह-सुबह जब जुगेसर जगलन त बैकुण्ठ जी के हालत खराब हो गइल रहे. ऊ भाग के रिक्सा ले अइलन. बैकुण्ठ जी के कइसहूं बैठा के मेडिकल कॉलेज ले गइलन. शाम के चार बजत-बजत बैकुण्ठ जी संसार त्याग दिहलन.
बांसघाट पहुंच के समस्या भइल आग के दी? अर्चना के खबर देबे खातिर पूजा के मां मना कर दिहली. अंत में जुगेसरे किरिया उठवलन. ओही समय उनका पता चलल कि बैकुण्ठ जी ए ना मुहल्लो के लोग उनका के बैकुण्ठ के दामाद समझत रहे. बिपत्ति जइसे आवेला ओहसहीं चलिओ जाला. सोचला पर लागेला कइसे वहन करी आदमी ओइसन समय. लेकिन जेकरा पर गुजरेला ओकरा के सोचे के समय ना देव. ठीक ओहसहीं जइसे ऑपरेशन थियेटर में बेहोश रोगी के दशा होला. रोगी के शरीर पर काट पीट होला लेकिन ओकर अनुभव ओकरा ना होला. ओसहीं जइसे तइसे हालत सामान्य होखे लागल जुगेसर का वास्तविकता से मुकाबला होखे लागल. कालेज के काम रुटीन जइसन लागे. क्लास लेबे खातिर पढ़हुँ के मन ना करे. कभी महसूसो करस थोड़ा नजर घुमा लेले रहतन त अच्छा होइत. शायद अपना काम से बेइमानी करतारन ई सोच के मन बड़ा दु:खी होखे. समस्तीपुर जवना स्कूल में पहिले पढ़ावे गइल रहस ओकरा सेक्रेटरी से कभीए कभार मुलाकात होखे. एक दिन कॉलेज से निकल के रिक्सा वाला के कहलन – ‘मूलचन्द स्कूल चलऽ.’
स्कूल में घुसत-घुसत अपना पुरान इयादन में डूब गइलन. सीधा प्रधानाध्यापक के कमरा का ओर बढ़े लगलन. इहे ऊ जगह रहे जहां ऊ अपना जिनिगी के दुसरका अध्याय शुरू कइले रहस. चपरासी के ‘प्रणाम सर’ के आवाज से ऊ वर्तमान में लवटलन – ‘कइसन बाड़?’ मुंह से अपने आप निकल गइल.
– ‘रउरा सब के आशीर्वाद बा सर.’
– ‘हेडमास्टर साहब बानी का?’
– ‘जी हां. आज त जैनो साहब आइल बाडऩ.’
जैन जी के नाम सुनके जुगेसर के कान खड़ा हो गइल.
– ‘का बात बा हो? कवनो मिटिंग ओटिंग बा का?’
– ‘ना अइसे त कवनो मिटिंग नइखे. सुनाता स्कूल सब सरकार ले ली. हो सकऽता एकरे बारे में बात होखे.’
जुगेसर का तत्काल ध्यान आइल, हँ, अइसन बात चलत त बा.
हेडमास्टर साहब के कमरा में घुसे का पहिले एक बार पुछलन – ‘अन्दर आ सकऽतानी सर?’
– ‘अरे जुगेसर जी, आइये-आइये.’ हेडमास्टर साहब के साथ-साथ जैन साहबो के आवाज आइल. प्रणामापाती का बाद सभे एक दूसरा के हाल-चाल पूछल. फेर कालेज के हाल-चाल शुरू हो गइल. जुगेसर स्वभावे से अपना विषय से फालतू ज्यादा जानकारी ना राखस. तबहु जैन साहब से बात करे में बड़ा सहज महसूस होखे.
स्कूलन के सरकारीकरण के बात चलल. एह बात से सब कोई राजी रहे कि सरकारी भइला के बाद पढ़ाई-लिखाई उठ जाई. हेडमास्टर साहब कहे के कोशिश करत रहस जे मास्टर लोग का ज्यादा तनख्वाह मिली त काम ज्यादा करी लोग.
उनका मन के बात समझे में जुगेसर का समय ना लागल. सीधा-सीधा पइसा आ सरकारी नौकरी के लालच रहे. ओकरा आगे शिक्षक पेशा के पवित्रता के महत्व गौण हो गइल रहे. जैन जी के पिता जी आपन जमीन देके ई स्कूल बनवले रहस 1944 में. चारों ओर कांग्रेस आ स्वराज के लहर रहे. दूर-दूर से जेही नेता आवस उनकर देखे सुने के दायित्व मूलचंद जैने पर रहे. शहर में सब कारोबार का जद में उनके परिवार रहे. आजादी के बादो ठीके-ठाक चलत रहे. मूलचंद जी के ई दूसरा बेटा रहस. पहिलका के मृत्यु चेचक से हो गइल. एही से जैन के सारा सामाजिक दायित्व सुन्दरेलाल जी पर रहे. उनका खातिर ई स्कूल खानदान के प्रतिष्ठा रहे. शहर में आन-बान के निशानी रहे. बहुत देर तक बातचीत का बाद सुन्दरलाल जी से ब्यक्तिगत प्रश्न पूछ हेडमास्टर साहब अनुमति लेके लघुशंका करे बाहर गइलन. तबहीं सुन्दरलाल जी जुगेसर से सवाल कइलन – ‘प्रसाद जी, एगो सीधा सवाल पूछऽतानी. आशा करऽतानी रउरो सीधा जवाब देहब.’
– ‘पूछल जाव.’
– ‘पटना में जेकरा इहां आप रहत रहीं, उनका लडक़ी से रउरा शादी कर तानी त.’
सवाल सुन के एक बार त जुगेसर के माथा चकरा गइल. कुछ सेकेंड बाद मुंह खोललन – ‘करेके ईच्छा त बा. समय के इन्तजार करऽतानी.’
– ‘बड़ अच्छा लागल आपन जबाब सुन के. अब एगो बात जल्दी बतावल जाव..ऊ लडक़ी कहां तक पढ़ल बा?’
– ‘बीएससी कर के बीएड कर रहल बाड़ी.’
– ‘शादी के बाद ऊ त रउरे पास रही ना?’
– ‘बिल्कुल. एमें का शक बा?’
सुन्दर लाल जी, हेडमास्टर साहब का सामने से एगो कागज उठवलन. ओके जुगेसर के देके कहलन – ‘ओकर नाम ठीक से लिखीं त.’
जुगेसर बिना कुछ सोचले कागज के पन्ना पर लिखे लगलन – ‘पूजा प्रसाद पिता श्री बैकुण्ठ प्रसाद, पटना यूनिवर्सिटी.’
हेडमास्टर साहब के आवत देख के ऊ कागज ले लिहलन. अब बात राजनीति पर आ गइल. अंत में सुन्दरलाल जी कहलन – ‘हेडमास्टर साहब. आज स्कूल का बाद मास्टर जी लोग के नियुक्ति वाला फाइल लेके आ जायब.’
जुगेसरो बिदा लिहलन.
असली बात पता चले में बहुत दिन लागल. अइसे दूसरे दिन सुबह-सुबह उनका घरे हेडमास्टर साहब आइल रहस. जुगेसर से एने ओने के बात करके अंत में असली बात पर अइलन. अपना दामाद के स्कूल में रखवावे खातिर जैन जी के पीछे लागल बाडऩ. स्कूलन के सरकारी होखे में अब तनिको देर नइखे. मंत्री जी कह दिहले बाडऩ. खैर बहुत घुमा फिरा के अंत में बतवलन कि पूजा के स्कूल में रखे के आदेश देले बाडऩ. आ इहे बतावे ऊ सबेरे सबेरे आइल बड़ुअन. ई खबर सुन के जुगेसर हंसस कि रोवस समझ ना पवलन. खाली इहे पूछलन – ‘कब से?’
मास्टरजी कहलन – ‘हो सके त आजुए से.’
कुछ सोच के जुगेसर कहलन – ‘आज त ना लेकिन हम एतवार के पटना जाके पूजा के ला सकीला.’
– ‘सुन्दर-सुन्दर. सोमवार से हम उनका के क्लास दे दे तानी.’
कह के जाए खातिर उठलन हेडमास्टर साहब. थोड़ा सहम के कहलन – ‘देखल जाई सर. जैन जी से मिलला पर थोड़ा हमरा दामाद के बारे में कहब.’
– ‘निश्चिंत रहीं सर. राउर काम जरूर होई.’ न जाने जुगेसर के मुंह से ई बात कइसे निकल गइल.
पटना जाए के पहिले ऊ सुन्दर लाल जी से मिलल मुनासिब समझलन. सुन्दरलाल जी दुकाने पर रहस. उनका के देख के अन्दर आफिस में गइलन. आफिस के दीवाल पर दू गो मर्द आ दूगो औरत के तैलचित्र रंगल रहे. ओकरे ओर ईशारा कर के सुन्दरलाल जी कहलन – ‘हमार दादा-दादी आ बाबूजी माँ के तस्वीर ह. ओही लोग का आशीर्वाद से त इ संसार पार होखे के ह.’ तब तक नौकर दू गो प्लेट में दू गिलास पानी ले आइल. जुगेसर का ओर पानी बढ़ा के सुन्दरलाल जी कहलन – ‘का लिहल जाई सर?’
– ‘ना-ना, कुछ ना.’
– ‘ई कइसे होई. चाय कि ठंडा.’
जुगेसर हिचकत-हिचकत कहलन – ‘चलीं चाय मंगावल जाव.’
नौकर चल गइल.
सुन्दरेलाल बात बढ़वलन – ‘देखीं ऊ हेडमास्टर से हम परेशान बानी. उनकर दामादो के हम देखले हईं, बिल्कुल पैदल समझीं. तबहिओ हम ओके राख लेब.’
अब स्कूल पर हमार त कवनो कंट्रोल रहे के नइखे. एही से सोचत रनी ह. कम से कम चार-पांच गो बढिय़ा शिक्षक हो जाइत त कुछ दिन त स्कूल के नाम इज्जत बचल रहित. अब मुश्किल बा कि सबकर एप्रोच आ रहल बा. सुनले हईं पइसो रुपिया देबे खातिर तैयार बा लोग. सबका बैकडेट में पे रोल पर होखे के चाहीं. ईश्वर के कृपा से हमरा रोटी के अभाव नइखे. आप पूजा के ले आइल जाव. हम समझतानी बिना शादी कइले अपना पास रखल ठीक ना होई. हम उहो सोचले हईं. अपना घर में ऊपर एगो कमरा बा. ओह में रह सकेली जब तक आपके शादी नइखे होत.
जैन जी के इहां से निकल के जुगेसर सोच ना पावत रहस कि ई सपना ह कि वास्तव में होता. खैर छ: महीना बाद दूनो जाना के ब्याह हो गइल. बारात पटना गइल समस्तीएपुर से. गांव से केवल जगमोहन आइल रहस. प्रोफेसर कालोनी के ओही घर में जुगेसर आ पूजा नया संसार शुरू कइलस लोग.
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पूजे के कहला पर जुगेसर उनका के आपन गांव देखावे खातिर तईयार भइलन. एगो गाड़ी ठीक भइल. सुबह पांच बजे निकल गइल लोग. मुजफ्फरपुर बाइपास से निकल के एगो ढाबा पर नास्ता कइल लोग. दही-चूड़ा. पूजा खातिर ई सब कुछ नया रहे. पटना में जनम भइल रहे. ओहीजे बड़ भइल रहली. रास्ता का दूनो ओर लहलहात खेत देख के उनकर मन खुशी से पागल हो गइल रहे. लीची के छोट-छोट गाछन के बगीचा जनाय कि काट के सजावल गइल बा. बीच-बीच में पानी के जमाव. जुगेसर बतावत रहस ई सब जगह सालो भर पानी रहेला. बरसात में त कहे लायक ना रहे. दूर-दूर तक गांव ना लउके. बीच-बीच में छोट-छोट बाजार मिले. करीब बारह बजे जुगेसर बतवले अब उनकर गांव आवे वाला बा. उनका मुंह पर तनाव साफ लउकत रहे. पूजो मुँह पोंछ के आंचर ठीक कर लिहली. जुगेसर उनका ओरी देखके कहलन – ‘अबहीं आधा घंटा आउर लागी. घबड़ा मत.’
गाड़ी बड़ रास्ता छोड़ के कच्ची में घुसल. कुछ दूर तक ईंट बिछल रहे. फेर त एकदम कच्ची. ड्राइवर बुदबुदाए लागल. मुश्किल त तब भइल जब सामने के बैलगाड़ी के बैल गाड़ी के हार्न सुनके भडक़ गइलन स. ओकनी के फेर से रास्ता पर ले जावे में गाड़ीवान का 10-15 मिनट लागल. पूजा गाड़ी से उतर के हाथ-गोड़ ठीक करे लगली. तबही दोसरा ओर से एगो बडक़ा सांप दिखल. ऊ – ‘माई रे’ कहके चिल्ला पड़ली. जुगेसर हंसे लगलन. ससुराल में आके पहिलहीं सांप दीखल कहेला लोग बड़ा शुभ होला. लेकिन पूजा के हाथ गोड़ अबहींओ कांपत रहे.
गाड़ी आगे बढ़ल. गांव का बीच से जब गाड़ी निकलल त पीछे-पीछे लडिक़ा दउड़े लागऽसन. एक बार पूजा का सुनाइल – ‘ए कनिया जा ता.’
ऊ कनिये त रहस. सामने एगो गांव देख के जुगेसर कहलन – ‘आवऽता तहार ससुराल.’
गांव में घुसे का पहिले एगो मंदिर रहे. गाड़ी रोक के जुगेसर आ पूजा दूनो जाना उतरल लोग. मंदिर पर ऊ कब आइल रहस याद ना रहे लेकिन ई उनका लडिक़ाई वाला मंदिर ना रहे. बदल गइल रहे. सुन्दर अस गुबंद रहे. अबही पूरा तरह पक्का ना भइल रहे लेकिन सुन्दर लागत रहे. दूनो जाना मंदिर के अंदर गइल लोग तब तक लडिक़न के झुण्ड जमा हो गइल. ओमे एगो थोड़ा चालाक किस्म के रहे. ऊ पुछलस – ‘कहां जाए के बा?’
जुगेसर कहलन – ‘एही गांव में?’
ऊ फेर सवाल कइलस – ‘केकरा इहां?’
जुगेसर ओकरा सवाल के का जवाब देस, ठीक ना समझ पवलन. का बतावस केकरा इहां जाये के बा? उल्टे ओकरे से पुछलन – ‘तू केकर बेटा हव?’
– ‘हम श्री जगमोहन प्रसाद के लडिक़ा हईं.’ जगमोहन के नाम सुन के जुगेसर के मन पर एगो अलग प्रसन्नता फैल गइल. कहलन – ‘त बबुआ, जा के अपना बाबूजी से बतावऽ जुगेसर चाचा आइल बाडऩ.’
ऊ लडिक़ा एकदम से दौड़ के भागल. सगरी गांव में बात फइल गइल – ‘जुगेसर चाचा आइल बाडऩ.’
उनका अपना घर ले गाड़ी जाए के जगह ना रहे. रास्ता पर गाड़ी खड़ा कर के ऊ उतरलन. पूजा के कहलन घूंघट उठा लेबे के. ऊ लोग आगे बढ़लन कि लडिक़ा-लडिक़ी के झुण्ड ऊ लोग के पीछे-पीछे चले लागल. कवनो का पता ना रहे का करऽता. आ सब के लागे जइसे कवनो नया चीज बा. दुआर पर पहुंचत भइल कि चाची निकल के अइली. जुगेसर का इशारा कइला पर पूजा का उनका पैर छुअला पर आपन पैर झटक दिहली. कइसहूं अस्पष्ट आवाज में कहली – ‘काहे अइल ह एजा? हम त तहरा से संतोष कइ लेहले बानी.’
फेर घर छोड़ के चल दिहली. जुगेसर के त ठकुआ मार दिहलसि. ऊ खड़ा रहस तबले जगमोहन आ गइले. साथ में उनकर बेटो रहे. आवते कहलन – ‘का हो, खबर क दिहले रहत आवे के.’
– ‘हठात हो गइल प्रोग्राम.’
– ‘बाबूजी कहां गइलहन.’
– ‘रहले ह दुआरे पर. हमरा के देख के न जाने केने चल गइलन.’
– ‘तहार नाम सुने के तइयार नइखन.’
जगमोहन ‘चाची-चाची’ आवाज दिहलन.
चाची अइली त कहलन – ‘का खिआव तारू बेटा पतोह के?’
– ‘अरे का खिआइब. इ त बिजुली जइसन परगट भइल बा लोग. पतोह कहतारी आजुए लौट जाये के.’
– ‘अच्छा हमरा घरे दही बा. मंगा दे तानी. बाकी तइयार करऽ.’ कहके जगमोहन बेटा के दही ले आवे खातिर भेजलन. जुगेसर से एने ओने के बात करे लगलन. मंदिर का बारे में पुछलन जे के खर्च करऽता. उनका के पॉकेट से एक हजार रुपया निकाल के दे के कहलन – ‘हमरा ओर से मंदिर में लगवा दीहऽ. तबही चाची एगो कटोरा में दही लेके अइली. चम्मच देबे के सवाले ना रहे. जुगेसर हाथ से दही खाये लगलन. हाथ धोके चाची से कहलन – ‘चाची पतोह कइसन लागल हिय?’
– ‘परी बा परी.’ ऊ कहली – ‘लेकिन इहां आके रही थोड़े.’
– ‘रही ना लेकिन आवत जात त रही.’ तबही बाबूजी के उहे भिनभिनाइल आवाज आइल – ‘कवनो जरूरत नइखे इहां आवे के. हमरा इज्जत के टांगे में आउर का बाकी रहल जे तू आ गइलऽ ह. चलऽ जल्दी निकल जा.’
जुगेसर देखलन केवाड़ी का पीछे पूजा खड़ा रहस. पत्नी का सामने पति के बेइज्जती सहल पत्नी खातिर बड़ा कठिन होला. ऊ अपना के संभाल ना पवलन – ‘ठीक बा. हम चल जात बानी. एह जिन्दगी में कबहीं ना आइब एजा.’ कह के – ‘चलऽ पूजा’ आवाज देके चल पड़लन. साथे-साथे जगमोहन. केहू कुछ ना बोलल. आ के सीधे गाड़ी में बइठलन. जगमोहन पूजा के देखे चल गइलन.
चाची पूजा के खोंइछा में दू मुट्ठी चावल देले रहस. ओके संभालत जब ऊ घर से निकलली त बाबूजी पर नजर पड़ल. उनकर आंख डबडबाइल रहे. पूजा के प्रणाम के जवाब में उ मुंह फिरा लिहलन.
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तीन साल के अन्तर में दू गो लडिक़ी हो गइल जुगेसर का. नाम रखले रहस आकृति आ सुकृति. आकृति स्कूलो जाए लागल. आकृति के जनम पटना ननिहाले में भइल रहे. सुकृति के समय नानी समस्तीपुर आ गइल रहस. तबहीं से ऊ इंहे रहस. उनको उमिर भइल जात रहे. पटना वाला घर किराया पर लगा दिहले रहे लोग. दूनो लडिक़ियन का पीछे कब समय निकल जाव पते ना चले.
जुगेसरो आपन थीसिस पूरा करे खातिर कोशिश करे लगलन. मुश्किल तब होखे जब कहीं जास. पिछला पंद्रह साल में जइसे भाषे बदल गइल समाज के. बहुते अटपटा लागे. उनका मुंह पर त कोई ना कहे लेकिन अन्य पुरुष के रूप में सब जगे सेटिंग-जुगाड़ के बात सुनाव.
छोट-बड़ सब का खातिर दलाल हो गइल रहस. आ उहो के कवना लेबल के बा कहल मुश्किल रहे. कॉलेज के नया चपरासी जब एक दिन उनका से कहलस – ‘सर लागता रउरा नाम का आगा डॉक्टर ना लिखाई.’ ओह दिन उनका से रात में खाइल ना गइल. इहे सामाजिक उत्थान ह शायद. एह से त ऊहे जमाना ठीक रहे जब एगो अनपढ़ पंडित सत्यनारायण के कथा हिन्दी में बांच के दक्षिणा ले जास. आ ऊ दक्षिणो का – ‘यथा इच्छा!’
सत्यनारायण भगवान के खयाल अइला से लडिक़ाई के बहुत बात याद आ गइल हठात्. गांव में केहू का कुछ होखे कथा रखाव. राम दुलार पंडित आवस कथा बांचे. प्रसाद बने-खीरा, ककड़ी, शकरकंद, अमरूद काट के दउरी-दउरा में रखा जाव. पंडित जी के प्रत्येक शंख के आवाज गिनी सं बाहर बइठ के. जब सातवां बार शंख बाजे त होखे आरती. आरती के एगो लाइन अबहीं ले याद रहे जुगेसर का – ‘जो राजाराम जी की आरती गावे. बैठ बैकुण्ठ परम फल पावे.’
उहे फलन के दू चार गो टुकड़ा प्रसाद खातिर गांव भर के बच्चा बूढ़ा सभे घंटन बइठे. सामाजिक क्रांति का बाद न जाने गांव में पूजा होखतो बा कि ना. इ सोच के जुगेसर का आंख से आंसू के कएगो बूंद टपक गइल.
खरचो ना जाने कहां से बढ़ल जात रहे. दू-दू आदमी के महीना घर में आवत रहे. पूजा कब से कहत रहस एगो स्कूटर खरीदे के. जुगेसर अगिला महीना अगिला महीना कह के टरले जास. आखिर एक दिन बैंक के पासबुक देखली पूजा – ‘देखीं सत्रह हजार बा. अब त खरीदा सकऽता स्कूटर.’
जुगेसर का मन स्कूटर खरीदे के ना रहे. एगो अलग किस्म के झमेला मने होखे. का बढिय़ां त रिक्सा से चल जाला लोग जहां मन होला. पूजा के मन दोसरा ओर हटावे खातिर कलहन – ‘हमरा त बुझाता कि पहिले एगो घर बनावल जाव.’
‘घर’ अइसन बिषय होला जवना खातिर कवनो नारी कुछुओ करे खातिर तइयार रहेली. अब त एगो नया विषय मिल गइल ओ लोग का. जान पहचान का लोग से जमीन के खबर लेबे लागल लोग.
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औरत में एगो विशेष गुण होला. मां बने के अनुभव ओकरा खातिर बड़ा महत्वपूर्ण होला. पूजा के जब डॉक्टर मुस्कुरा के बतवलस त उनका खुशी के ठिकाना ना रहे. आपन बोल के त अम्मा छोड़ के कोई ना रहे. सबसे पहिले उनके फोन लगवली. ई सुन के अम्मा के खुशी के ठिकाना ना रहल. सैकड़ों किस्म के सावधानी बता दिहली एक सांस में. उन कर उमंग देख के जुगेसर से ना रहल गइल. पूछलन – ‘बड़ा खुश बाडू़ का बात बा?’
– ‘बताईं.’ होठ निकाल के आंख चमकावत पूजा कहली.
‘हमके ना बतवला से का बताइब.’
पूजा उमंग में उनकर नाक पकड़ के कहली – ‘अरे हमार बुद्ध स्वामी जी, रउरा पापा बने वाला बानी.’
– ‘साचहूं.’ कहके जुगेसर उछल पड़लन. जिन्दगी के तीसरा चक्र के सूचना हो गइल. अब घर बनावे वाला विषय के साथ-साथ आवे वाला मेहमानो के चर्चा चले लागल.
पांचवां महीना से केहू के कहे के ना पड़े. पूजा के देख के कवनो अनाडिय़ो बता सकत रहे. अइसने स्थिति मातृत्व के महान बनावेला. पूजा ओइसन शरीर लेके सब काम करस.
नउवां महीना में अम्मा के बुला लीहल लोग. बैकुण्ठ जी के गुजरला के बाद ऊ आउर मजबूत दीखत रहस. अइसहूं अकेले भइला पर आदमी में बाचे के इच्छा शक्ति बढ़ जाला. जुगेसर त बहुत दिन उनके देखले रहस लेकिन अबकी बार अम्मा एगो दोसरे महिला दीखस. पूजा के हमेशा डांटत रहस. बीच-बीच में दामादो के ना बकसस. उनका मन के खिलाफ पूजा के अस्पताल में भरती कइल गइल. नाम के अस्पताल रहे. असल में डॉ.विमला के घर ही अस्पताल बनल रहे प्रसव खातिर. अम्मा एगो बात पर अड़ल रहस आपरेशन कर के बच्चा ना होई. पूजो मानसिक रूप से तइयार रहस. ई मानसिक प्रस्तुतिए असली होला. अपना समय से बच्चा भइल. अम्मा का अच्छा ना लागल, लडिक़ी रहे. उनका बड़ी आशा रहे लडिक़ा के लेकिन जुगेसर प्रसन्न रहस. उनका कवनो बहिन ना रहे. उहे नाम रखलन सोनी. बच्चा देख के ना लागे केकरा अइसन बा. जे देखे आवे अपना तरह से कहे – ‘बाप जइसन बा. बड़ी भाग्यशाली होई.’
भाग्यशाली साबितो हो गइल. घर बने के काम ओही साल शुरू हो गइल. आगे वाला दू साल कइसे बीतल पता ना चलल. दूनो जाना के काम रुटीन जइसन चलत गइल. ‘ना ऊधो के देना ना माधो के लेना.’
स्कूल सरकारी हो गइला से एके गो फायदा भइल, महीना बढ़ गइल. जुगेसर आ पूजा दूनो जाना के मुट्ठी बंधल रहे. कवनो फालतू खरचा ना करे लोग. समस्तीपुर जइसन छोट जगह में फालतू खरच करे के कुछ रहलो ना रहे. उनका इहां केहू आवहु जाए वाला त ना रहे. बड़ा जोर होखे त छुट्टी में कबो पटना चल जाव लोग.
नया घर बसावल कठिन त होला बाकिर एमें आनंदो कम ना मिले. जहां एगो कुछ दीखे ले आवे खातिर पूजा उनका पीछे पड़ जास. उनकर हजार बहानो पूजा के रोक ना पावे. एहीतरे धीरे-धीरे घर भरे लागल. सोनीओ चले फिरे लागल. ओकर बोली सुने खातिर जुगेसर के मन कालेज में बिल्कुल ना लागे. अइसहूं अब कालेज रुटीन हो गइल रहे. उहे क्लास, उहे बिषय दोहरावे के रहे.
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आदमी कतनो व्यस्त रहे पिछला याद साथ ना छोड़े. जुगेसरो के गांव पीछा ना छोड़त रहे. ओह दिन छुट्टी रहे. जाड़ा के दिन. खा के रजाई में घुसलन त नींद आ गइल. सपना में बुझाइल अबहीं सात क्लास में पढ़े जात बाडऩ. मिडिल स्कूल जाए में खेताखेती जाए के पड़े. रास्ता अइसहूं ना रहे. ओह दिन कवनो साथीओ ना रह सन. दूनो ओर माथ भर आईल अरहर के खेत रहे. ओकरा बीच के पगडण्डी पकड़ जात रहस अपना मने. हठात सामने से चार गो लोग कान्ह पर मुर्दा लिहले सामने पड़ गइल. तेज-तेज डेग से ऊ आदमी बढ़त आवत रहस. पीछे आवे वाला लोगो साथे रहे. जुगेसर हड़बड़ा के पास के खेत में अंदर चल गइलन. उनका सामने से ऊ लोग निकल गइल. उनकर पैर कांपे लागल. बड़ी देर तक जाए वाला लोग के दिशा में देखत रहलन. खड़ा होखे में असुविधा बुझात रहे. दम घूंटे लागल जइसे. नींद टुटला के बादो जुगेसर डेराइल रहस. कइएक मिनट लागल वर्तमान में लौटे में. पेट में मरोड़ बुझाइल. धीरे-धीरे सारा ध्यान पेट पर आ गइल. हँ, पेट गड़गड़ करत रहे.
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मृत्यु के समाचार ठीक पहुंच जाला. कलकत्तावाला चाचा के मरला के खबर मिलला पर जुगेसर के मन विचलित हो गइल. जवना घर गांव में जनमल रहस ऊ ओजा के आदर्श रहस चाचा. लडिक़ाई में उनका अइला पर घर में उत्सव जइसन माहौल हो जाव. चाचा जुगेसर के लेके बाजार का दिन करीब कोसभर के गांव जास. ओजा से मछली ठीक से लेके आवस. जुगेसर मने-मने ठीक कइले रहस भविष्य में उहो चाचा जइसन धोती-कुर्ता पहिनिहन. चाचा के एके गो बेटा रहस रवीन्दर. उनका साथ जुगेसर खेलस. रवीन्दर के कपड़ा त रहले रहे हाथ गोड़ो मुलायम दिखे. जबकि जुगेसर के हाथ पैर सूखल सूखल दीखे. लेकिन जब तक दूनो जाना बच्चा रहस कवनो भेदभाव ना रहे. दूनो के एक साथ देख के चाचा आ बाबूजी लोग बड़ा प्रसन्न होखे. सब गड़बड़ हो गइल जब रवीन्दर का मैट्रिक में सेकेंड डिवीजन मिलल. चाचा अपना मुंह से कहलन – ‘अरे बिहार के फर्स्ट डिवीजन बंगाल के थर्ड डिवीजन के बराबर होला. लेकिन तभी से चाचा के प्यार जुगेसर आ घर के प्रति कमे लागल रहे.
शादी-ब्याह वाला मामला के बाद त पूरा तरह सम्बंध विच्छेदे हो गइल रहे. जुगेसर के मन भइल एही बहाने सम्बंध जोड़े के. पूजा से अपना मन के बात कहलन. पूजा संगे-संगे तैयार हो गइली. अब ई सम्बंध बनावे खातिर रहे कि कलकत्ता घूमे खातिर, ना कि दूनो खातिर कहल मुश्किल बा. चाचा रहत रहस बासद्रोनी. टालीगंज से गडिय़ा वाला रास्ता में. सातू बाबू मोड़ से उतर के पैदल जाए के पड़े. एगो नाला पड़े जवना के पार करे खातिर लाइन लागल रहे सब समय. जुगेसर आइल रहस एक बार जब उनकर पटना एडमीशन भइल रहे. माथा छिलवा के रवींदर बइठल रहस. बड़ा खुश भइलन जुगेसर के देख के. दूनो जाना गला मिलके बड़ी देर तक रुंधल गला से रोवल लोग. सोनी के गोदी में उठवलन त ऊ रोवे लागल.
बहुत बात भइल, आ जवना बात से समस्या रहल ऊ रवीन्दर ना उठवलन. ई गांव त रहे ना. श्राद्ध का नाम पर बाबूघाट गंगा के किनारे जाके कामक्रिया कर आइल रहस रवीन्दर. ओकरा दोसरा दिन आस-पास के परिवार के खियावल गइल. करीब पचास आदमी होइहन सब मिला के.
बात-बात में आपन पेट वाला तकलीफ कहलन जुगेसर. रवीन्दर सलाह दिहलन होमियोपैथिक दवा खाए के. एक दिन उहे जुगेसर के लेके धर्मतल्ला अइलन. डॉ.कांजीलाल नाम रहे डॉक्टर के. बडक़ा लाइन रहे. जुगेसर के नम्बर आइल त रवीन्दरो साथे गइलन. डॉ.कांजीलाल जोर से चिलइलन – ‘दूटो केनो?’
रवीन्दर कहलन -‘ए आमार भाई. बिहारे थाके. बांग्ला जाने ना बोले साथे एस छि.’
डॉक्टर के सुर एकदम बदल गइल – ‘हाम हिन्दी बोलने सकता है. तुमी एबार बाहिरे जाव.’
रवीन्दर का निकल गइला का बाद जुगेसर से करीब आधा घंटा सवाल करत रह गइलन डॉक्टर. अइसन-अइसन सवाल केहू से पूछल जा सकेला जुगेसर सपनों में ना सोचले रहस.
डॉक्टर का जब बुझाइल जे सामने वाला रोगी प्रोफेसर ह त अंग्रेजी बोले के कोशिश करे में आउर अपना तरह से हिन्दी ब्यवहार करे लगलन. जुगेसर का जे समझ में आइल ओकर माने रहे – ‘एह बेमारी के डॉक्टरी भाषा में इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम (आईबीएस) कहल जाला. एकर उत्पत्ति ग्लायडीन नामक रसायन के कारण होला. ई रसायन गेहूं से शरीर में आवेला. ई पाचन तंत्र के प्रतिरोध क्षमता के प्रभावित करेला. जवना से पेट के गड़बड़ी पैदा होला.’
डॉक्टर एक महीना के दवाई दिहलन आ बतवलन कि हरेक महीना ऊ आपन हाल-चाल आ दवा के पइसा भेजत रहिहन. डॉक्टर आपन सलाह आ दवा भेज दीहन. छ: महीना बाद ऊ आके एक बार फिर जांच करवा जइहन. हां, खाए में रोटी ना खाइले अच्छा होई, डॉक्टर सलाह दिहलन.
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देखत-देखत सोनी चार साल के हो गइलस. समस्तीपुर के सबसे नामी अंग्रेजी स्कूली में केजी में ओकर नाम लिखावल लोग. स्कूल के रिक्सा ले जाव आ ले आवे. एही समय हाई स्कूल के शिक्षक लोग के जिला से बाहर बदली होखे के खबर आइल. जाने वाला कहत रहे – ‘ई खाली बहाना बा. सब रुपया खाए के धंधा ह सरकार के.’ आ ऊहे भइल. हरेक शिक्षक के पास कोई ना कोई पहुंच गइल. खरचा कइला पर बदली पासे में होई. अपना जिला के बार्डरो पर हो सक ता आ कहीं दूर-दराज जगहो हो सकऽता. जतना गूड़ डलबऽ ओतने मीठ होई.’
जुगेसर के मति-गति पूजा का अच्छा तरह मालूम रहे. ठीके सोचली कि उनके बिना बतलवलही काम करवाइब. पति के ना बता के ऊ पहिला बार कवनो काम करे गइल रहस. एक बार त मन कचोटलस लेकिन चारों ओर जइसे मार-काट मचल रहे देख के निश्चय कइली – कोशिश करेके.
जिला कार्यालय में पहुंचे के देखली मारे मास्टर के रमरमा रहे. ऊ कइसहूं अफसर का कमरा में घुसली. सामने कुर्सी पर बइठल सज्जन का मुंह में पान भरल रहे. कइसहूं कहलन – ‘कहल जाव.’
– ‘हम पूजा प्रसाद हईं. समस्तीपुर जैन स्कूल में साइंस टीचर. ट्रांसफर खातिर आपसे रिक्वेस्ट करे आइल बानी. एगो बच्चा बा आ घर में कोई बा ना.’
– ‘आप प्रोफेसर योगेश्वर प्रसाद के घरवाली हईं ना.’
– ‘हां, हां.’ पूजा का बुझाइल काम बने वाला बा. पुछली – ‘चिन्ही ले का उनके?’
– ‘बिल्कुल चिन्हीला. लेकिन देखल जाव. हमरा ई कुर्सी पर रहे खातिर मंत्री जी के टार्गेट पूरा करे के बा. हम मजबूर बानी. आप यदि कम से कम दस हजार के ब्यवस्था करीं त कुछ करे के कोशिश करब.’
– ‘ठीक बा, हम काल्ह फेर आइब. धन्यवाद.’
कह के ऊ उठ गइली. तबहीं उनकर आवाज सुन के मुड़ली. ऊ हाथ जोड़ के कहत रहस – ‘आ देखीं ई बात प्रोफेसर साहब के मत बताइब. कम से कम एक आदमी के त अपना आदर्श में जीये के अधिकार मिले के चाहीं.’
पूजा ई बात के ठीक-ठीक अर्थ ना समझ पवली. खैर दूसरा दिन ऊ बैंक से दस हजार रुपया लेके उहां सीधा पहुंचली, ऊ अधिकारी एगो कागज पर आंख गड़वले रहस. एक बार तकलन. पूजा बैग से रुपया के गड्डी निकाल के दिहली. ऊ ड्रावर में रख के कहलन – ‘आपके सेवा पंजी में होम डिस्ट्रिक्ट पटना लिखल बा. साथ में आप पिछड़ा वर्ग के बानी. ई बात के मद्देनजर आपके समस्तीपुर में ही राखल जाई.’
पूजा का मुंह से निकलल – ‘धन्यवाद.’
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बदली त रुक गइल लेकिन एगो नया समस्या आ गइल. पता चलल कि पैर फेरू भारी हो गइल बा. एक बार त ठीक कइली खराब करेके. जुगेसर से कहली त ऊ खिसिया गइले. ठीक भइल ई ले आइल जाव लेकिन एगो शर्त पर कि बच्चा भइला के साथे-साथे ऑपरेशन करवा लीहल जाई. चाहे लडक़ा हो या लडक़ी.
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सन 1999
केन्द्र में सरकार बदल गइल रहे लेकिन बिहार में ना. केन्द्र सरकार में बिहार के हिस्सेदारी अच्छा खासा रहे. आजादी के बाद पहिला बार बिहार में कुछ परिवर्तन के आशा दीखे लागल. लेकिन, बिहार के शासक दल के जड़ता सब प्रयास पर पानी फेर देव. जुगेसर अब एगो ना दूगो लडक़ी के बाप रहस. बडक़ी सोनी त अब पांचवीं में पहुंच गइल रहे. छोटकी मोनीओ (मोनिका) केजी पास होके एक में पढ़े लागल रहे. जुगेसर का त ना लेकिन पूजा का आंख पर चश्मा चढ़ गइल रहे.
जुगेसर अइसे त ठीके रहस लेकिन बीच-बीच में पेट के शिकायत से परेशान हो जास. कलकत्ता वाला होम्योपैथी दवा करीब साल भर चलल लेकिन ओकरा से कवनो अन्तर ना बुझाव. बंद कर दिहलन. पेट में बीमारी के सबसे बड़ा समस्या होला शरीर के कमजोरी. जुगेसर त खाए पी॓ए में संयमी रहले रहस, पेट के असुविधा भइला से ज्यादा से ज्यादा बरावे लागस. एकरा कारण जरूरी प्रोटीन आ ऊर्जा के कमी साफ दीखे लागल रहे. शरीर कमजोर भइला के साथ-साथ पढ़हु लिखे में मन ना लागे. बीच में कएक गो डॉक्टर बदललन. दवा बदलला पर कुछ दिन ठीक रहे आ फिर पहिलहीं वाला हालत हो जाव.
पूजा के मां आके रहस. बीच-बीच में सब लोग पटना जाव. गर्मी के छुट्टी में सभे पटना गइल रहे. मेडिकल कालेज में कवनो सेमिनार रहे. हठात एक दिन अर्चना अपना पति के साथ हाजिर हो गइली.
अर्चना से मुलाकात करीब बारह साल पर होत रहे पूजा का. अपनापन के अहसास आंधी के तरह होला जवना में सब शिकवा गिला उड़ जाला. करीब दू मिनट तक दूनो बहिन एक दूसरा से लिपट के सिसकत रहस. मां आके खड़ा रहली उनका पर नजर पड़ल त अर्चना उनका के पकड़ लिहली. औरत में न जाने अइसन का होला कि आपन दुख सुख दूनो के बयान रोइए के करेली.
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अर्चना अपना पति से परिचय करवली. जात त केहू के चेहरा पर लिखल ना रहे. अइसहुं डॉ.अभिषेक के देख के केहू कम से कम हरिजन त नहिए कह सके. ऊ मां के पैर छुअलन. जुगेसर से हाथ मिलवलन. सोनी-मोनी पैर छुए लगली स त दूनो के गोदी में बइठा लिहलन अभिषेक.
पता चलल डॉ.अभिषेक गैस्ट्रेलॉजी में एम.डी. कइले बाडऩ. उनकर पिता जी बुलंदशहर में कहीं सरकारी नौकरी करत रहस. अब रिटायर होके गांवे में रहेलन. जुगेसर के मन में कहीं ना कहीं महसूस भइल – ‘हां बेटा, रिजर्वेशन के बल पर डॉक्टरी में एडमीशन भइल होई.’
पूजा चाय बना ले अइली. अभिषेक के कहला पर सभे एक साथे बइठ के चाय पीए लागल लोग. बात-बात में जुगेसर के पेट के शिकायत वाला बात निकल गइल. अइसहूं डॉक्टर देख के बीमारी ही याद पड़ेला.
सुनत-सुनत अभिषेक गंभीर हो गइलन. अंत में कहलन – ‘आप एक बार दिल्ली चलतीं त डिटेल्स एक्जामिन हो जाइत.’
जुगेसर कहलन – ‘अरे पेट के बीमारी में अइसन का हो सकऽता. सब त ठीके ठाक बा.’
अभिषेक कहे लगलन – ‘देखीं. एगो डॉक्टर के हैसियत से बिना टेस्ट के कुछ कहल ठीक नइखे तबो एतना कह सकऽतानी कि पेट अवाइड करे वाला अंग नइखे. एकर महत्व कवनो तरह से हार्ट भा किडनी से कम नइखे. आ एकरा के हम सब निगलेक्ट करी ला. सब से दुर्भाग्यपूर्ण बा कि अधिकांश लोग पेट के सिंक का तरह उपयोग करेला.’
थोड़ा दम लेके फिर कहलन – ‘हमरा समझ से एक बार टेस्ट करावल जरूरी बा. अइसे अंदाज से दवा दीहल ठीक नइखे.’
जुगेसर बात बदले खातिर कहलन – ‘हम करतानी प्रोग्राम दिल्ली आवे के.’
अर्चना बड़ी देर से चुप रहली. कहली – ‘ई नु भइल बात. देखीं अब रउरा हमार ‘सर’ नइखीं, बहनोई बानी.’
सब लोग मुस्कुरा पड़ल.
अर्चना आ अभिषेक रुकल ना. रात में डिनर रहे होटले में. सुबहे में फ्लाइट रहे. आपन आपन पता आ टेलीफोन नम्बर देहल लोग. रात में करीब दस बजे फेर फोन आइल अभिषेक के. बतवलन पटना मेडिकल कालेज के डॉ. कृष्ण गोपाल तिवारी से एक बार मिले के.
पूजा ना मनली. जोर कर के जुगेसर के डॉ.के.जी, तिवारी के पास ले गइली. करीब बीस मिनट तक डॉ.तिवारी उनका के देखत रहलन. अपना जूनियर डॉक्टर के कुछ टेस्ट के निर्देश देके उनका के दू दिन बाद आवे के कहलन.
ओह दिन सबसे पहिले जुगेसर के खुद गैस्ट्रोस्कोपी कइलन डॉ.तिवारी. खून के रिपोर्ट देख के कुछ दवा लिखलन आ बतवलन तीन महीना तक ई दवा खाये के बा. जुगेसर पुछलन – ‘डॉ. साहब, कुछ सिरियस बा का?’
– ‘देखीं हम डॉक्टर हईं. बहुत कुछ कहल हमरा खातिर उचित नइखे. फिर भी आप के सावधानी रखल जरूरी बा. तीन महीना दवा चलला के बादे कहल जा सकेला कि का हो सकऽता.’
दवा के दुकान पर डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन ठीक से पढ़लन जुगेसर. लिखल रहे केयर आफ आईबीएस प्रोबेबल कोक्स एब्डोमन (आंत में टीबी क बीमारी के अनेसा). उनका याद पड़ल. डॉ. कांजीलालो कहले रहस इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम. प्रोबेबल कोक्स एब्डोमन पर ध्यान ना गइल उनकर.
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जून का अंत में समस्तीपुर लवटल लोग. मां ना अइली. कहीं ना कहीं उनका पटना वाला घर से लगाव रहे. कभी-कभी कहबो करस – ‘शादी कर के एही जा ले आइल रहनी तोहार बाबूजी. हमार इच्छा बा एहिजे से घाटे जाईं.’ नारी मन के थाह लगावलो मुश्किल बा. समस्तीपुर अइला पर फिर से रोजनामचा शुरू हो गइल. एक बार फिर से जुगेसर पढ़ल लिखल शुरू कइलन. नेचर पत्रिका में एगो आर्टिकल छपल रहे – ‘सिंथसीज आफ एस हेट्रोसाइकल्स.’ उनका रिसर्च के इहे विषय रहे. पिछला दस साल में एह पर कतना रिसर्च हो चुकल बा सोच के उनका आश्चर्य भइल.
एक बार फेर से अपना अतीत में खो गइलन ऊ. अतीत के भूलल कठिन ना असंभव बा. अतीत ऊ लटाई क तरह बा जवना के पतंग से सम्बंध विच्छेद डोरा टूटले पर हो सकेला. शायद एही से ‘जीवन डोर’ कहाला.
बाहर बरखा होत रहे. न जाने कब नींद आ गइल जुगेसर का. बहुरा रहे. चारों ओर पानी भरल रहे. अपना उम्र के चार-पाच गो लडिक़न का साथ जुगेसर पोखरा में नहाये गइल रहस. रास्ता में पंडित जी का खेत में तिल लागल रहे. लडिकियन के देखा देखी सब लडिक़ो तिल के पत्ता नोंच ले अइलन स. तिल के पत्ता सर के बाल में लगवला पर फेनाव. आज के सैम्पू जइसन. आकर्षण के केन्द्र लडि़किये रहस हालांकि कवनो लडिक़ा के साहस ना रहे ओकनी के कुछ कहे के. बस ओकनी के दूर से देखले आनंद से सराबोर करे लडिक़न के.
जुगेसर का जइसे साफ-साफ दीखे लागल सब लड़कियन के चेहरा – बमनटोली के लडक़ी, हजाम के एगो लडक़ी, बढ़ईटोला के दूगो. एही तरे परिचय देब सब लड़िकियन क बारे में. नाम त शायदे केहू जाने. उनका चेहरा पर एगो शान्त मुस्कान फैलल रहे. तबहीं पूजा चाय लेके अइली. उनका कान्ह पर हाथ रखके हिलावत कहली – ‘का भइल, सूत गइनी का? चाय लेके आइल बानी.’
ऊ अचकचा के उठलन. फिर कहे लगलन – ‘देख ना नींद आ गइल रल. सपना देखे लागल रहनी ह.’
– ‘कवनो लडक़ी के सपना रहल ह का?’ पूजा हंसी कइली. बरसात के मौसम रहे. आ एमें त सबकर मन रससिक्त हो जाला. जुगेसर के जइसे चोरी पकड़ा गइल. कहलन – ‘अरे हमरा जिन्दगी में पूजा रानी छोड़ के दोसर लडक़ी कहां मिलल.’ पूजो पास का कुर्सी पर बैठ गइली. जुगेसर का दिमाग से अबहीं ले गांव गइल ना रहे. कहलन – ‘देखऽ ना बरसात में गांव याद आ जाला. लडिक़ाई के 16-17 साल के उमिर भुलाव ना.’
– ‘कवनो खबर मिलल बा का?’
– ‘कहां मिलऽता. सुनाता कि गांवन में फोन लागी. तब कहीं बातचीत कइल जा सकऽता लेकिन का होई? के बा जे हमनी के खबर ली.’
– ‘काहें रउरो त क सकीले. आउर ना त जगमोहन भैया के चिट्ठी लिख के हाल-चाल ले ही सकीले.’
तबहीं फोन के घंटी बाजल. पूजा का उठावे के पहिलहीं सोनी उठा लेले रहे. ऊ चिल्लाइल – ‘मम्मी नानी का फोन है.’
पूजा जाके फोन लिहली.
विश्वविद्यालय से खबर आइल यू.जी.सी, दरभंगा में वार्षिक विज्ञान सम्मेलन करावे वाला बा. चूंकि समस्तीपुर कॉलेज विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेज रहे. एकर हिस्सेदारी आवश्यक रहे. विभाग प्रमुख डॉ.ठाकुर बड़ी ब्यस्त दीखत रहस. जुगेसर अपना स्वभाव के कारण कुछ जाने के कोशिश ना करस. एक दिन डॉ.ठाकुर उनका के बुलवलन. जुगेसर का समझ में ना आवत रहे आखिर डॉ.ठाकुर चेहरा पर मुस्कुराहट लाके कहलन – ‘अरे प्रसाद जी. जानते हैं चीफ गेस्ट कौन हैं विज्ञान सम्मेलन के?’
– ‘नहीं, मुझे कैसे पता चलेगा.’
– ‘वही आपके बड़े भाई साहब पाण्डेय जी.’
डॉ.ठाकुर के आवाज में ब्यंग्य के पुट रहे. जुगेसर त जइसे खुशी के मारे उछल पड़लन – ‘विनोद भैया.
– ‘हां, हां. तभी तो आपके नाम यूनिवर्सिटी हेड ने अलग से निमंत्रण भेजा है.’
कहत-कहत एगो लिफाफा जुगेसर क ओर बढ़ा दिहलन डॉ.ठाकुर. उत्साह में जुगेसर लिफाफा खोल के कार्ड निकललन. लिखल रहे – ‘अखिल भारतीय विज्ञान सम्मेलन 1999 में एलएन मिथिला विश्वविद्यालय आपकी उपस्थिति की कामना करता है. कार्यक्रम 17-10-1999, 11.30 पूर्वाह्न
उद्घाटन डॉ.विनोद पाण्डेय डीएस (एमआईटीयूएसए) के कर कमलों द्वारा.
नीचे अलग-अलग सेमिनार में हिस्सा लेबे वाला विद्वान लोग के नाम रहे. अन्त में लिखल रहे – ‘कृपया समय से पधार कर एंट्री पास एकत्र करें.’
बरीसन बाद जुगेसर एतना खुशी अनुभव कइले. हर दिन हिसाब करस कब 17 अक्टूबर आई.
अपना समय से 17 अक्टूबर आ गइल. जुगेसर आपन सबसे प्रिय ड्रेस में दसे बजे विश्वविद्यालय परिसर में पहुंच गइलन गेटे पर निमंत्रण पत्र देखा के इंट्री पास लेके अंदर घुसलन. अबहीं इक्के दुक्का लोग आइल रहे. कोशिश करिओ के आपन कौतुहल ना दबा पवलन. एगो आदमी से साहस कर के पुछलन डॉ.पाण्डेय आ गइल बाडऩ का? ऊ आदमी आपन जानकारी फटाफट बतवलस – ‘हँ, हँ, वीसी के कमरा में बइठल हंवन.’
जुगेसर के मन ना मानल. सोचलन कोशिश करे में का असुबिधा बा. वीसी के क्वार्टर क ओर गइलन. उहां गेट पर अर्दली से एगो कागज पर आपन नाम लिख के कहलन भाई एक बार डॉ.पाण्डेय के हाथ में दे आवऽ. अर्दली उनका के दू एक बार देख के भीतर गइल. जल्दिए निकल के आइल आ उनके हाथ देके कमरा के अंदर जाए के कहलस. कमरा के अन्दर 3-4 आदमी बइठल रहे. एकरा पहिले कि जुगेसर विनोद पाण्डेय के पहचान पवतन, ऊ खुद उठ के जुगेसर के अंकवारी में भर लिहलन.
– ‘अरे ई का हालत बना लिहले बाड़ऽ योगेश्वर?’ उनकर पहिलका सवाल रहे.
– ‘बस अइसहीं.’ अतने बोल सकलन जुगेसर.
साल २०११
विनोद जी धोती कुर्ता वाला आदमी के तरफ मुखातिब होके कहलन – ‘देखिये, सत्यकाम जी. इमानदारी की यही इज्जत है आपके यहां.’
अब कहीं जाके सत्यकाम जी के पहचान पवलन जुगेसर. बाल बिल्कुल सफेद हो गइल रहे. लेकिन चेहरा आउर खिलल-खिलल लागत रहे.
विनोद जी बाकी लोग से उनकर परिचय करवलन. अंत में कहलन-‘जानतानी सभे. इहे बंदा ह जेकरा कारण हम आज एजा बानी. एगो समय रहे कि हम जिन्दगी से पूरा तरह ऊब गइल रहनी. इहे आदमी आपन विषय हमरा के देके आगे बढ़वलस.’
कहत कहत उनकर आंख डबडबा गइल. चश्मा उतार के रुमाल से आंख पोंछलन. जुगेसर के गला भर आइल.
थोड़ देर बाद विनोद जी एक-एक करके सबकर हाल पूछे लगलन. बैकुण्ठ जी के परिवार से लेके जुगेसर के परिवार तक. जुगेसर जब सोनी मोनी के बार में बतवलन त विनोद जी अपना बैग से दूगो पेन निकाल के उनके देके कहलन – ‘हमरा दूनो भतिजियन के दीहऽ.’
भरत मिलाप के दृश्य ना जाने कब तक चलत रहित यदि वीसी समय के सूचना ना दीतन.
विनोद जी ओह दिने लौट गइलन आ जुगेसरो.
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जुगेसर के खुशी ज्यादा देर नसीब ना रहे. घरे आ के बइठले रहस कि सोनी एगो चिट्ठी ला के दिहलस. पोस्टकार्ड रहे. खोले के झंझट ना रहे.
प्रणामापाती के बाद लिखल रहे – ‘तहरा चाची के मृत्यु हो गइल 11 तारीख के. बाबूएजी आग दिहले बाडऩ. 24-25 के काम होई. हम तहरा के आवे के त नहियें कह सकीले. तबहियो हमरा लागल ह कि तहरा के बता दीं.
चिट्ठी पढक़े जुगेसर के दिमाग एकबारगी जइसे खाली हो गइल. आपन लाचारी व्यक्त करे के कवनो उपाय आदमी के नइखे मिलल सिवाय भीतरे-भीतर कुहूके के.
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सर्दी आ गइल रहे. स्कूल कालेज बंद होखे वाला रहे लेकिन पूजा के पास कुछ लडक़ी ट्यूशन ल स. एही से कहीं बाहर जाये के प्रोग्राम ना बनत रहे. दूनो बच्ची रोज कहऽ स जुगेसर के – ‘कम से कम पटना ही चलिए न पापा.’
ऊ हँ-हाँ कह के टकसावत रहस. कइएक दिन से पेट फूल जात रहे. जेलुसिल खाइओ के आराम ना मिले. बार-बार बाथरूम जास लेकिन कवनो फायदा ना होखे. भरसक चाहस ना पूजा के बतावे के. लेकिन पत्नी से कहां तक छुपा पावस. आखिर पूजे कहली – ‘चलीं एक बार फेर से पटना देखावल जाव.’
23 दिसम्बर रहे. घर बंद करके पूरा परिवार रवाना भइल पटना खातिर. रिक्सा पर बइठ के जुगेसर एकबार निहरलन घर का ओर. ना जाने कइसे उनका लडिक़ाई में पंडित जी के कहल वाक्य याद पड़ गइल – ‘बीयफे के दक्खिन करे पयाना, फिर नहीं समझो ताके आना.’
आज बीयफही रहे. उनका कइसन विचित्र अनुभव होत रहे.
पटना पहुंचत-पहुंचत रात हो गइल. पेट त फूलले रहे बुखारो लागत रहे. दोसरा दिन सुबह-सुबह मेडिकल कालेज में ले गइली पूजा उनके. इमरजेंसी वाला डॉक्टर तीन चार गो दवा देके टरकावत रहे तबहीं दूर से आवत डॉ.तिवारी दीख गइलन.
पूजा दौड़ के उनका पास गइली आ एकदम से उनका के धरे लिहली. एके सांस में का-का कह भइली उनको पता ना रहे. डॉ.अभिषेक के नाम सुनके डॉ.तिवारी का जइसे कुछ याद पड़ल. ऊ कहले – ‘कहां बा पेशेंट?’
– ‘इमरजेंसी में.’
डॉ.तिवारी इमरजेंसी के ओर मुड़ले.
जुगेसर के भर्ती क लिहले डॉ.तिवारी. साथ-साथ जूनियर डॉक्टर के कुछ टेस्ट करावे के बता के निकल गइले. एक बार भर्ती हो गइल त पूजा घरे गइली. पापा के साथे ना देख के बच्चा पूछे लगलन स. पूजा के आंख से टप-टप आंसू टपके लागल.
मां के अइला पर त पूजा के आंख से जैसे नदी के धार बहे लागल. रोवला से कुछ शांति मिलल त मां कहली – ‘एक बेर अर्चना के फोन कर ना. उहो त डॉक्टर बीया.’
(बाकी फेर अगिला कड़ी में)
आपन बात
भोजपुरी में लिखे खातिर हमार आपन स्वार्थ निहित बा. हमरा दूसरा कवनो भाषा में लिखे में हमेशा डर लागल रहेला. आ भोजपुरी माई के गोद जइसन बा. हम जानतानी कि भले माई से दूर बानी, बहुत दूर, लेकिन उनके पास जाइब त ऊ हमरा के डटीहन ना, हमार गलती माफ कर दीहन.
– हरेन्द्र कुमार
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