– ओम प्रकाश सिंह
अब एहिजा एह कहाउत के संबंध मियाँ लोग से नइखे. मियाँ के मतलब पतिदेव से, आदमी से बा. मियाँ आ बेगम के इस्तेमाल हमेशा से मरद मेहरारू खातिर होखत आइल बा आ एकरा के सेकूलर कमुनल के नजर से देखला के कवनो जरूरत नइखे. अतना सफाई एहसे देबे के पड़ल कि जमाना बदल गइल बा. कहाउत आ मुहावरो में कुछ लिखत घरी सावधान रहे के पड़ेला. पता ना कब कवन बात केकरा बाउर लाग जाव! अतना सफाई दिहला का बाद लवटत बानी मुद्दा पर.
मान लीं कि कवनो विद्यार्थी बिना तइयारी इम्तिहान देबे चल जाव त ओकर का हाल होखीं कापी पर चिचिर पड़ला आ अन्दाजे कुछ लिखला छोड़ कुछ कर ना पइहें.
स्कूल में पढ़ावल ना जाव, ना त प्राइमरी में, ना मिडिल में, ना मैट्रिक वाला बोर्ड में. पक्का से नइखे मालूम कि इंटर आ ग्रेजुएशन में पढ़ावल जाला कि ना. बाकिर स्नातकोत्तर में भोजपुरी जरूर पढ़ावल जाले आ लोग सीधे भोजपुरी में एमए कर के निकलेला. लिख बोल जतना लेसु बाकिर भोजपुरी पढ़े में पसीना छूटल तय बा. भोजपुरी पढ़ल वइसहुँ मुश्किल होला आ हिन्दी के पढ़ाई कइला का बाद त करीब करीब असंभव हो जाला. हिन्दी वाला उच्चारण भोजपुरी में ना चले आ ओह लोग के एह बारीकि के जानकारी त होला, अनुभव ना. अगर भोजपुरी पढ़ल सहज रहीत त आजु भोजपुरी पत्र पत्रिकन के अइसन हाल ना भइल रहीत. कवनो ना कवनो इलाका में भोजपुरी के अखबार जरूरे निकलत रहीत. पढ़े के शौक आ भोजपुरी से लगाव रहीत त टटका खबर पर रोज आवे के रुटीन बनल रहीत इंटरनेटिया भोजपुरियन के. बाकिर चूंकि पढ़े के आदत नइखे एहसे भोजपुरी पढ़ल ना आवे आ लोग भोजपुरी के वेबसाइटन पर जाव ना जबले कुछ गरमागरम मिले देखे के गुंजाइश मत होखे!
आदमी के सुभाव होला कि तोपल ढाँकल में झाँके के मन कर जाला. जवन बात खुलेआम ना कर सकीं, देख ना सकीं, सुन ना सकीं ओकरा के अपना बंद कमरा में अपना कंप्यूटर लैपटाॅप पर बेफिकिर देख सकीलें. गूगलो के चिन्ता ना रहे. जबकि गूगल कवनो चुप्पा गार्जियन का तरह रउरा हर हरकत पर नजर रखले रहेला, रिकार्ड करत रहेला. ओकरा मालूम होला रउरा का देखल चाहब, का देखल पसन्द करीलें आ जब रउरा भोजपुरी गूगल करीलें त ऊ परोस देला रउरा सोझा गरमागरम, हाॅट, सेक्सी गीत परोसे वाला वेबसाइटन आ लिंकन के. भोजपुरी साहित्य में राउर रुचि नइखे अतना गूगलो के मालूम बा, एहसे उहो कष्ट ना करे रउरा के बतावे के कि भोजपुरी में बहुत कुछ बढ़ियो बा.
दोसरे राह पेड़ा चलत ट्रक, ट्रैक्टर, टैक्सी के ड्राइवर आपन पसन्द के गीत कानफाड़ू आवाज में सुनत रहेलें. रउरा अउरी कुछ त सुनीं ना भोजपुरी में बाकिर ई सब चाहे अनचाहे सुनात रहेला आ रउरो मान बइठिलें कि भोजपुरी में सब फूहड़े होत बा. अरे भाई फूहड़ आदमी सुने देखे पढ़े चली त ऊ फूहड़े नू पसंद करी. ओकरा फूहड़पन के रउरा बहुते चिन्ता हो जाला बाकिर ई ना सोचीं कि भोजपुरी मे जवन सलीकेदार, श्लील, सभ्य बा ओकरा के कइसे सोझा ले आईं समाज का सोझा. अइसन नइखे कि रउरा घरे यज्ञ प्रयोजन ना होला आ ओह मौका पर गीत गवनई ना होखे. त फेरू ओह समय रउरा काहे ना कोशिश करीं कि भोजपुरी के सलीकेदार गीत गवनई बाजे रउरा दुअरा?
कउवा कान ले गइल सुन के आपन कान ना देखे आ कउवा का पाछा धावे वाला मूरख का तरह हमनी के अगुओ लोग बिना कवनो तइयारी कूद पड़ल भोजपुरी के 8वीं अनुसूची में शामिल करावे के मांग ले के. बहुते लोग के सपना मन में रहल कि एक बेर मान्यता मिल जाव त भोजपुरी अकदमी, भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, भोजपुरी शिक्षकन वगैरह में कुछ ना कुछ जोगाड़ लागिए जाई.
सभे भुलाइल रहल कि हिन्दी के पहरुआ भोजपुरी के मामिला में अतना पेंच फँसा चुकल बाड़े कि ओकरे के सझुरावे में बरीसन बीत जाई. भोजपुरी के एह हिन्दी प्रेमी दुश्मनन में गैर भोजपुरिए रहलन से बात ना. बहुते नमकहराम भोजपुरिओ रहलन एहमें आजुओ बाड़न. एह नमकहराम भोजपुरियन में उहो लोग शामिल बा जे हमेशा कवनो ना कवनो बहाने भोजपुरी के नीच देखावे बतावे में लागल रहेला.
भोजपुरी के हिन्दी के उपभाषा बना के राख दिहल गइल बा राजभाषा विभाग में जवन देश के भाषा का बारे में सोचेला आ काम करेला. त जब भोजपुरी भासे ना ह त ओकरा के 8वीं अनुसूची में केहु शामिल कइसे करा ली. जनगणना में भोजपुरी के जिक्रे ना होखे दीहल जाई त अनुसूची में शामिल करे के एगो बड़हन शर्ते पूरा ना कर पाई भोजपुरी. ना नौ मन तेल होखी ना राधा के नाचे के पड़ी.
आखिरी जनगणना 2001 के रहुवे जवना में भोजपुरी बोले वालन के गिनल गइल रहुवे. ओह जनगणना में बोलेवालन का लिहाज से देश के आठवीं भाषा रहुवे भोजपुरी! 3 करोड़ से लोग अपना के भोजपुरी भाषी गिनवले रहुवे जबकि हिन्दी वालन के भरपूर कोशिश रहुवे कि भोजपुरी के पहिलका भाषा में ना लिख के दुसरका भाषा में लिखल जाव. धियान दीं कि जनगणना का काम में शिक्षक लोग के भरपूर इस्तेमाल होखेला आ एहलोग में हिन्दी प्रेमियन के संख्या स्वाभाविक रूप से बेसी होला.
अब जब भोजपुरी के भाषा ना माने सरकार, एकर सगरी साहित्य के हिन्दी के उपभाषा के साहित्य में गिन लेले आ एकरा के महज बोली बतावत एकरा के संविधान के 8वीं अनुसूची में शामिल करे जोग ना मनलसि त कवन अचरज. पहिले भोजपुरी के भाषा त मनवा लीं सभे! पहिले एकरा के अन अनुसूचित भाषा में गिनावल बहुते जरूरी बा. भोजपुरीवालन के एह बात का खिलाफ आन्दोलन कइला के जरूरत बा कि भोजपुरी के हिन्दी के उपभाषा मत बतावल जाय. भोजपुरी के उत्पत्ति हिन्दी से पहिले के ह. आ एकर संबंध हिन्दी से ना होके संस्कृत से बा. हिन्दी के ना त व्याकरण चलेला भोजपुरी में ना ओकर बहुते कुछ. भोजपुरी के आपन व्याकरण बा, आपन तरीका बा. तब एकरा के हिन्दी के उपभाषा का सोच के बनावल बतावल गइल? के रहुवे एह षडयंत्र के पीछे?
बतावल जात बा कि कवनो भाषा के 8वीं अनुसूची के मान्यता मिले से पहिले ओकरा में ई गुण होखल जरूरी बा :
1) पिछला तीन गो जनगणना में ओह भाषा के कम से कम पाँच लाख बोलत होखे.
भोजपुरी बोलेवालन के गिनिती पिछला जनगणना में सामने नइखे आइल. पता ना गिनाइलो रहुवे कि ना. बाकिर ओकरा से पहिले के हर जनगणना में भोजपुरी बोलेवालन के गिनिती करोड़न में रहत आइल बा.
2) कम से कम स्कूली शिक्षा के माध्यम का रूप में एकर इस्तेमाल होखत होखे.
भोजपुरी के कर्णधार एह पर कबो धियाने ना दिहलें आ हिन्दी वाले एकरा के होखे ना दिहलें.
3) लिखे वाली भाषा के रूप में पचास साल से एकर मौजूदगी के प्रमाण होखे.
एह शर्त के भोजपुरी पूरा करत बिया.
4) साहित्य अकादमी ओकरा साहित्य के प्रचार-प्रसार करत होखे.
साहित्य अकादमी में हिन्दीवालन के वर्चस्व बा एहसे भोजपुरी के कबो प्रचार प्रसार ना कइलें बाकिर कुछ गलती भा अनदेखल हाल में कुछ भोजपुरी साहित्यकारन के प्रचार प्रसार जरूरे भइल बा बाकिर ओकरा के देखावल बतावल भोजपुरी के कर्णधारन का नजर में कबो जरूरी ना लागल.
5) जनगणना का हिसाब से ई अगलो बगल का इलाका में दोसरकी भाषा का रूप में इस्तेमाल होखत होखे.
जब भोजपुरी के भाषे ना माने राजभाषा विभाग त एह शर्त के पूरा कइसे कइल जाव?
6) नयका बनल राज्यन में ओह भाषा के राजभाषा के दर्जा मिलल होखे.
भोजपुरी के कवनो राज्य अपना राजभाषा का रूप में ना माने आ भोजपुरियन के कवनो राज्य बने नइखे दीहल जात, पूर्वांचल बन जाव त शायद एह दिसाईं कुछ कइल जा सको.
7) देश के बंटवारा का पहिले कवनो राज्य में बोलल जात होखो आ बादो में कवनो ना कवनो राज्य में बोलल जात होखो.
भोजपुरी देश के कम से कम पाँच गो राज्य के कुछ भा भरपूर हिस्सा में बोलल जाले. जइसे कि बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, छतीसगढ़, आ मध्यप्रदेश. एकरा अलावे दुनिया के अनेके देश में भोजपुरी बोले वालन के गिनिती गिने जोग बा.
अब एह हालात में भोजपुरी के मान्यता देबे के शर्त पूरा होखत बा बाकिर हिन्दी वालन के षडयंत्र एकरा राह में बड़हन बाधा बन के खड़ा बा.
आखिर में हम फेरू दोहराएब कि मिले मियां के मांड़ ना, बिरयानी के फरमाईश!
पहिले भोजपुरी के भाषा मनवाईं.
फेरू भोजपुरी इलाका के प्राईमरी स्कूलन में ओहिजा के राज्य सरकारन से एकरा के शिक्षा देबे के माध्यम बनवाईं.
तब गँवे गँवे मिडिल स्कूल आ हाई स्कूल में एकर शिक्षा करवाईं.
बोर्ड के इम्तिहान होखे तब जा के 8वीं अनुसूची के बात करीं.
हिन्दी के पुरोधा भोजपुरी का राह में अतना काँटकुश बिछा गइल बाड़ें कि ओहसे पार पावल आसान नइखे. बाकिर का भोजपुरी के मठाधीशन का लगे अतना समय बा कि अगिला पीढ़ी खातिर काम करो. एहिजा त तुरते फुरत माल काटे के मनसा बा.
अगर हमार बात केहु के बाउर लागल होखो त बात सही निशाना पर गइल बा. काहे कि हमार मनसा भोजपुरी के मठाधीशन के खरकोंचही के बा. भोजपुरी के संस्था चलावे वाला लोग आपन काम काज भोजपुरी में करसु, भोजपुरी के पत्र पत्रिका किताब अखबार छपवावे के जोगाड़ बनावसु तब जा के 8वीं अनुसूची के बात करो!
प्रकाशक – संपादक,
अंजोरिया समूह
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