(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)
सतरहवाँ कड़ी में रउरा पढ़त रहलीं मीनू का बारे में. कि कइसे ओकरा गवनई का स्टाइल में लोग आपन आपा भुला जाव. अब ओहसे आगा पढ़ीं…..
एक बेर त अजबे हो गइल. कुछ बांका अतना बऊरा गइलें कि मीनू के मादक डांस पर अइसे हवाई फायरिंग करे लगले जइसे कि फायरिंग ना संगत करत होखसु. फायरिंग करत-करत ऊ बांका मंचो पर चढ़े लगलें त पुलिस दखल दिहलसि. पुलिसो मंच पर चढ़ गइल आ सभकर हथियार कब्जा में ले के ओह बांकन के मंच से नीचे उतार दिहलसि. तबहियों अफरा तफरी मचल रहल. डांसर मीनू के मंच पर एगो दारोगा भीड़ से बचवलसि. बचावते-बचावत आखिर में ऊ खुदही मीनू पर स्टार्ट हो गइल. हिप, ब्रेस्ट, गाल, बाल सभ पर रियाज मारे लागल. आ जब मीनू के लाग गइल कि भीड़ कुछ करे भा ना करे, इई दारोगा एही मंचे पर, जहां ऊ अबही-अबही नचले रहे, ओकरा के जरुरे नंगा कर देही, त ऊ अफनाईल अकुताइल अचके जोर से चिचियाइल, भाई लोग एह दारोगा से हमरा के बचावऽ. फेर त बउखल भीड़ ओह दारोगा पर पिल पड़ल. मीनू तो बाच गइली ओह सार्वजनिक अपमान से बाकिर दारोगा के बड़ दुर्गति हो गइल. पहिलका राउंड में ओकर बिल्ला, बैज, टोपी गइल. फेर रिवाल्वर गइल आ आखिर में ओकरा देह से वर्दी से लगाइत बनियान तकले नोचा-चोथा के गायब हो गइल. अब ऊ रहल आ ओकर कच्छा, जवन ओकरा देह के तोपले रहुवे. तबहियो ऊ मुसुकात रहुवे. अइसे कि कवनो सिकंदर होखे. एहले कि ऊ खूब पियले रहुवे. ओकरा वर्दी, रिवाल्वर, बैज, बिल्ला, टोपी वगैरह के यादे ना रहल. काहे कि ऊ त मीनू के मादक देह छू के मने मन नहाइल मुसुकात अइसे खाड़ रहुवे जइसे कि ऊ जियत जागत आदमी ना कवनो मूर्ति होखे.
एहिजा रिहर्सल में मीनू संगे लोक कविओ लगभग उहे करत रहले जवन मंच पर तब दारोगा कइले रहल. बाकिर मीनू ना त एहिजा अफनाइल लउकत रही, ना अकुताइल. खीझ आ खुशी के मिलल जुलल लकीर उनका चेहरा पर मौजूद रहल. एहु में खीझ कम रहे आ खुशी ज्यादा.
खुशी ग्लैमर आ पइसा के जवन लोक कवि के कृपे से ओकरा मयस्सर भइल रहे. हालां कि ई खुशी, पइसा आ ग्लैमर ओकरा ओकर कला के चलते ना, कला के दुरुपयोग के बल पर मिलल रहे. लोक कवि के टीम के ई “स्टार” अश्लील अउर कामुक डांस के रोजे नया नया कीर्तिमान रचत जात रहुवे. एतना कि ऊ अब औरत से डांसर, डांसर से सेक्स बम में बदल चलल रहुवे. एह हालात में ऊ खुद के ओह घुटन में घसीटत बाहर-बाहर चहचहात रहत रहे. चहचहाव आ जब तब चिहुंक पड़े. चिहुंके तब जब ओकरा अपना बेटा के याद आ जाव. बेटा के याद में कबो-कबो त ऊ बिलबिला के रोवे लागे. लोग बहुते समुझावे, चुप करावे बाकिर ऊ कवनो बढ़ियाइल नदी जइसन बहत जाव. ऊ मरद, परिवार सब कुछ भूल भुला जाव बाकिर बेटा के ले के बेबस रहे. भूला ना पावे.
ई खुशी, पइसा अउर ग्लैमर मीनू बेटा से बिछड़ला के कीमत पर बिटोरले रहुवे.
बिछड़ल त ऊ मरदो से रहुवे बाकिर मरद के कमी, ख़ास क के देह के स्तर पर पूरावे वाला मरद ढेरहन रहले मीनू का लगे. हालां कि मरद पति वाला भावनात्मक सुरक्षा के कमीओ ओकरा अखरत रहे, एतना कि कबो-कबो त ऊ बउराहिन जइसन हो जाव. तबहियो देह में शराब भर के ऊ ओह कमी, अभाव के पूरा करे के कोशिश करे. कवनो -कवनो कार्यक्रम का बीच कभी-कभार ई तनाव अधिका हो जाव, शराब अधिका हो जाव, अधिका चढ़ जाव त ऊ होटल के अपना कमरा से छटपटात बाहर आ जाव आ डारमेट्री में जा के खुले आम कवनो “भुखाइल” साथी कलाकार के पकड़ बइठे. कहे, “हमरा के कस के रगड़ द, जवन चाहे क ल, जइसे चाह क ल बाकिर हमरा कोठरी में चलऽ!”
तबहियो ओकर देह के तोष ना मिले. ऊ दोसर, तिसर साथी खोजे. भावनात्मक सुरक्षा के सुख तबहियो ना मिल पावे. ऊ खोजत रहत रहे लगातार. बाकिर ना त देह के नेह पावे, ना मन के मेह. एगो अवसाद के दंश ओकरा के डाहत रहे.
मीनू मध्य प्रदेश से चल के लखनऊ आइल रहल. पिता ओकर बरीसन से लापता रहन. बड़ भाई पहिले लुक्कड़ भइल, फेर पियक्कड़ हो गइल. हार थाक के महतारी तरकारी बेचल शुरू कइलसि बाकिर मीनू के कलाकार बने के धुन ना गइल. ऊ रेडियो, टी.वी. में कार्यक्रम पावे ख़ातिर चक्कर काटत-काटते एगो “कल्चरल ग्रुप” के हत्थे चढ़ गइल. ई कल्चरल ग्रुपो अजब रहल. सरकारी आयोजनन में एके साथ डांडिया, कुमायूंनी, गढ़वाली, मणिपुरी, संथाली नाच का साथे-साथ भजन, गजल, कौव्वाली जइसनो कार्यक्रम के डिमांड होखे तुरते परोस देत रहे. त ऊ संस्था मीनूओ के अपना “मीनू” में शुमार कर लिहलसि. ऊ जब-तब एह संस्था के कार्यक्रमन में बुक होखे लागल. बुक होत-होत ऊ उमेश के फेरा में आवत-आवत ओकरा अंकवारी में दुबके लागल. बाँह में दुबकत-दुबकत ओकरा साथे कब सुतहु लागल ई ऊ अपनहु ना नोट कर पवलसि. बाकिर ई जरूर रहल कि उमेश, जे ओह संस्था में गिटार बजावे, अब गिटार के संगे-संगे मीनूओ के साधे लागल. मीनू के उ बिछिलाइल कवनो पहिला बिछलाइल ना रहुवे. उमेश ओकरा जिनिगी में तिसरका आ कि चउथका रहल. तिसरका कि चउथा ऊ एह नाते तय ना कर पावे कि पहिला बेर जेकरा मोहपाश में ऊ बन्हाइल उ साचहु ओकर प्यार रहल. पहिले आंखें मिलल फेर उहो दुनु मिले लगले बाकिर कबो संभोग के स्तर तक ना गइले. चूमे चाटी तक रह गइले दुनु. अइसन ना कि संभोग मीनू खातिर कवनो वरजना रहल भा ऊ चाहत ना रहल. बलुक ऊ त आतुर रहल. बाकिर स्त्री सुलभ संकोच में कुछ कह ना पवलस आ उहो संकोची रहल. फेर कवनो जगहो ना भेंटाइल दुनु के एहसे ऊ देह का स्तर पर ना मिल पवले. मने का स्तर पर मिलते रह गइल. फेर ऊ “नौकरी” करे मुंबई चल गइल आ मीनू बिछुड़ के लखनऊ मे रह गइल. से ओकरे के ऊ अपना जिनिगी में आइल मरदन मानत रहुवे आ नाहियो. दुसरका मरद ओकरा जिनिगी में आकाशवाणी के एगो पैक्स रहल जे ओकरा के ओहिजा ऑडीशन में पास हो के गावे के मौका दिहलसि. बाद में ऊ ओकर आर्थिको मदद करे लागल आ बदलइन में ओकरा देह के दुहे लागल. नियम से. एही बीच ऊ दु हाली गाभिनो भइल. दुनु हाली ओकरा एबॉर्शन करवावे पड़ल आ तकलीफ, तानो भुगते पड़ल से अलगा. बाद में ऊ पैक्से ओकरा के कापर टी लगवा लेबे के तजवीज दिहलसि. पहिले त ऊ ना नुकुर कइलस बाकिर बाद में मान गइल.
कापर टी लगवा लिहलसि.
शुरू में कुछ दिक्कत भइल बाकिर बाद में एह सुविधा के निश्चिंतता ओकरा के छुटुवा बना दिहलसि आ दूरदर्शनो में ऊ एही “दरवाजे” बतौर गायिका एंट्री ले लिहलसि. एहिजा एगो असिस्टेंट डायरेक्टर ओकर शोषक-पोषक बनल. लेकिन दूरदर्शन पर दू गो कार्यक्रम का बाद ओकर मार्केट रेट ठीक हो गइल कार्यक्रमन में. आ ऊ टी॰वी॰ आर्टिस्ट कहाए लागल से अलग. बाद में एह असिस्टेंट डायरेक्टर के तबादला हो गइल त ऊ दूरदर्शन में अनाथ हो गइल. आकाशवाणी के क्रेज पहिलही खतम हो चुकल रहुवे से ऊ एह कल्चरल ग्रुप के हत्थे चढ़ गइल. आ एह कल्चरल ग्रुपो में ऊ अब उमेश से दिल आ देह दुनु निभावत रहे. कापर टी के साथ कबो दिक्कत ना होखे देव. तबहियो ऊ सपना ना जोड़े. देह सुख से अउरियो तेज सुख का आगा सपना जोड़ल ओकरा मने में ना आइल. उमेश हमउमरिया रहल, सुखो भरपूर देव. देह सुख में गोता ऊ पहिलहु लगा चुकल रहुवे बाकिर आकाशवाणी के ऊ पैक्स आ दूरदर्शन के ऊ असिस्टेंट डायरेक्टर ओकरा देह में नेह ना भर पावत रहलें, दोसरा ओकरा हरदम इहे लागे कि ई दुनु ओकरा के चूसत बाड़ें, ओकरा मजबूरी के फायदा उठावत बाड़ें. तिसर, ऊ दुनु ओकरा से उमिर में डेढ़ा दुगुना रहलें, अघाइल रहलें, से ओहनी में खुदहु देह के उ ललक भा भूख ना रहुवे, त ऊ मीनू के भूख कहां से मिटवते? ऊ त ओहनी ला खाना में सलाद, अचार के कवनो एगो टुकड़ा जइसन रहल. बस ! फेर ऊ दुनु ओकरा के भोगे में समयो बहुत बरबाद करसु. मूड बनावे आ खड़ा होखही में ऊ अधिका समय लगा द सँ जब कि मीनू के जल्दी रहत रहे. बाकिर प्रोग्राम आ पइसा के ललक में ऊ ओहनी के बर्दाश्त कर लेव. लेकिन उमेश संगे अइसन ना रहल, ओकरा साथे ऊ कवनो स्वार्थ भा मजबूरी नाजियत रहुवे. हमउम्रिया त ऊ रहबे कइल से ओकरा ना मूड बनावे के पड़े, ना खड़ा होखे के फजीहत रहल. चांदिए चांदी रहल मीनू के. बाकिर हो ई गइल रहे कि मीनू के उमेश संगे रपटल देख अउरियो कई जने ओकर फेरा मारल शुरू कर दिहले रहन. उमेश के ई नागवार गुजरे. बाकिर उमेश के नागवार गुजरे भर से त केहु माने वाला रहल ना. दू चार लोग से एह फेर में ओकरा से कहासुनिओ हो गइल, तबहियो बात थमल ना. ऊ हार गइल आ मीनू के केहु दोसरो चाहे ई ओकरा मंजूर ना रहल. तब ऊ गनो गावल करे, “तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, गैर के दिल को सराहोगी तो मुश्किल होगी.” बाकिर मीनू त रहले रहल खिलंदड़ आ दिलफेंक. तवना पर ओकर हुस्न, ओकर नजाकत, ओकर उमिर केहुओ के ओकरा लगे खींच ले आवे. ओकर कटोरा जइसन कजरारी मादक आंखि केहुओ के दीवाना बना देव आ ऊ हर कवनो दीवाना के लिफ्ट दे देव. साथे बइठ जाव, हंसे-बतियावे लागे. उमेश के गावल “गैर के दिल को सराहोगी तो मुश्किल होगी.” ओकरा कान मे ना समाव.
आ उमेश पगला जाव.
आखिर एक दिन ऊ मीनू से शादी करे के प्रस्ताव रख दिहलसि. प्रस्ताव सुनते मीनू हकबका गइल. बात मम्मी पर डाल के टाले चहलसि. बाकिर उमेश मीनू को ले के ओकरा महतारिओ से मिलल आ मिलत-मिलत बात आखि़र बनिए गइल. मीनूओ उमेश के चाहत रहे बाकिर शादी तुरते एहले ना चाहत रहुवे कि अबही ऊ कवनो बन्हन में बन्हाइल ना चाहत रहे. आजादी के थोड़िका दिन ऊ अउरी जियल चाहत रहुवे. ऊ जानत रहे कि आजु चाहे जतना दीवाना होखे उमेश ओकर, शादी का बाद त ई खुमारी टूटी आ जरुरे टूटी. अबहीं ई प्रेमी बा त आसमान से सितारा तूड़त बा, काल्हु मरद बनते ऊ ढेरे बन्हन में बान्हत ई आसमानो छीन ली. सितारा कहीं तड़प-तड़प के दम तूड़ दीहें.
बाकिर उ सोचल सिर्फ ओकरा मन में रहल.
जमीनी सचाई ई रहे कि ओकरा शादी करे के रहे. ओकर महतारी राजी रहल. आ जल्दिओ दू कारन से रहल. कि एक त ई शादी बिना लेन देन के रहे. दोसरे, मीनू से तीन साल छोट ओकर एगो बहिन अउर रहे बीनू, ओकरो शादी के चिंता ओकरा महतारी के करे के रहल. मीनू त कलाकार हो गइल रहे, चार पैसे जइसहु सही कमात रहल, बाकिर बीनू ना त कमात रहे, ना कलाकार रहल से ओकरा महतारी के मीनू से अधिका चिन्ता बीनू के रहल.
से तुरते फुरत मीनू आ उमेश के बिआह हो गइल. उमेश के छोटका भाई दिनेशो शादी में आइल आ बीनू पर लट्टू हो गइल. जल्दिए बीनू आ दिनेशो के बिआह हो गइल.
शादी के बाद दिनेशो उमेश आ मीनू संगे प्रोग्राम में जाए लागल. उमेश गिटार बजावत रहे, दिनेशो धीरे-धीरे बैंजो बजावे लागल. माइक, साउंड बाक्स के साज सम्हार, साउंड कंट्रोल वगैरहो समय बेसमय ऊ कर लेव. कुछ समय बाद ऊ बीनूओ के प्रोग्राम में ले जाए के शुरू कइलसि. बीनूओ कोरस में गावे लागल, समूह में नाचे लागल. लेकिन मीनू वाली लय, ललक, लोच आ लौ बीनू में नदारद रहे. सुरो ऊ ठीक से ना लगा पावे. तबहियों कुछ पइसा मिल जाव से ऊ प्रोग्रामन में जा के कुल्हा मटका के ठुमके लगा आवे. इहो अजब इत्तफाक रहल कि मीनू और बीनू के शक्ल त जरूरत से अधिका एख जइसन लगबे करे, उमेश आ दिनेशो के शक्ल आपस में बहुते मिलत जुलत रहुवे. एतना कि तनिका दूर से ई दुनु भाईओ एह दुनु बहिनन के देख के तय कइल कठिन पावत रहलें कि कौन वाली उनकर ह. इहे हाल मीनू आ बीनू उमेश दिनेश के तनिका दूर से देखसु त हो जाव. एह सब से सबले बेसी नुकसान मीनू के होखे. काहे कि कई हाली बीनू के पेश कइल लचर डांस मीनू का खाता में दर्ज हो जाव. मीनू के एहसे अपना इमेज के चिंता त होखे बाकिर ऊ अनसाव तनिको ना.
अबही इ सब चलते रहल कि मीनू के दिन चढ़ गइल.
अइसन समय अमूमन औरत खुश होखेली सँ बाकिर मीनू उदास हो गइल. ओकरा अपना ग्लैमर समेत कैरियर डूबत लउकल. ऊ उमेश के तानो दिहलसि कि काहे ओकर कापर टी निकलवा दिहलसि ? फेर सीधे एबॉर्शन करवावे ला साथे चले के कहे लागल. बाकिर उमेश एबॉर्शन करवावे पर सख़्त ऐतराज कइलसि. लगभग फरमान जारी करत कहलसि कि “बहुत हो चुकल नाचल गावल. अब घर गिरहस्थी सम्हारऽ !” तबहियो मीनू बहुते बवाल कइलसि. बाकिर मुद्दा अइसन रहल कि ओकर महतारी से लगाइत सासुओ के एह पर ओकर खि़लाफत कइल. बेबस मीनू के चुप लगावे पड़ल. तबहियो ऊ प्रोग्रामन में गइल ना छोड़लसि. उलटी वगैरह बंद होखते ऊ जाए लागल. झूम के नाचल अब ऊ छोड़ दिहलसि. एहतियातन. ऊ हलुके से दू चार गो ठुमका लगावे आ बाकी काम ब्रेस्ट के अदा आ आँखिन के इसरार से चला लेव आ “मोरा बलमा आइल नैनीताल से” जइसन गाना झूम के गावे.
ऊ महतारी बने वाली बिया ई बात ऊ जाने, ओकर परिवार जाने. बाकी बाहर केहु ना.
बाकिर जब पेट बाहर लउके लागल त ऊ चोली घाघरा पहिरे लागल आ पेट पर ओढ़नी डाल लेव. लेकिन इ तरकीबो अधिका दिन ले ना चल पावल. फेर ऊ बइठ के गावे लागल आ आखिर में घरे बइठ गइल.
ओकरा बेटा पैदा भइल.
अब ऊ खुश ना, बेहद खुश रहुवे. बेटा जनमावल ओकरा के गुरूर दे गइल. अब ऊ उमेशो के डांटे-डपटे लागल. जब-तब. बेटा के संगे ऊ आपन ग्लैमर, प्रोग्राम सब कुछ भूल भाल गइल. बेसुध ओकरे में भुलाइल रहे. ओकर टट्टी-पेशाब, दूध पिआवल, मालिश, ओकरा के खिआवल, ओकरा से बतियावल, दुलरावले ओकर दुनिया रहे. गावल ओकर अबहियो ना छुटल रहे. अब ऊ बेटा ला लोरी गावे.
अब ऊ समपुरन महतारी रहल, दिलफेंक आ ग्लैमरस मेहरारू ना.
केहु देख के विश्वास ना करे कि ई उहे मीनू हिय. बाकिर इहो भरम जल्दिए टूटल. बेटा जसहीं साल भर के भइल ऊ प्रोग्रामन में पेंग मारल शुरू कर दिहलसि. अब ऐतराज सास क ओर से शुरू भइल बाकिर उमेश एह पर ध्यान ना दिहलसि. एहि बीच मीनू का देह पर तनिका चर्बी आ गइल बाकिर चेहरा पर दमक आ लाली निखार पर रहे. नाचत गात देह के चर्बीओ छंटे लागल बाकिर बेटा के दूध पिअवला से छाती ढरक गइल. एकर इलाज ऊ ब्यूटी क्लीनिक जा के इक्सरसाइज करे आ रबर पैड वाला ब्रा से कर लिहलसि. गरज ई रहे कि गंवे-गंवे ऊ फार्म पर आवत रहे. एही बीच ओकर “कल्चरल ग्रुप” चलावे वाला कर्ता धर्ता से ठन गइल.
ऊ पहिला बेर सड़क पर रहल. बिना प्रोग्राम के.
ऊ फेरू दूरदर्शन आ आकाशवाणी के फेरा मारे लागल. एक दिन दूरदर्शन गइल त लोक कवि आपन प्रोग्राम रिकार्ड करवा के स्टूडियो से निकलत रहलें. मीन जब जनलस कि इहे लोक कवि हउवें त ऊ लपक के उनुका से मिलल आ आपन परिचय दे के उनुका से उनुकर ग्रुप ज्वाइन करे के इरादा जतवलसि. लोक कवि ओकरा के टारत कहलन, “बाहर ई सब बात ना करीलें. हमरा अड्डा पर आवऽ. फुरसत से बतियाइब. अबहीं जल्दी में बानी.”
लोक कवि के अड्डा पर ऊ ओही साँझ चहुँप गइल. लोक कवि पहिले बातचीत में “अजमवलन” फेर ओकर नाच गाना देखलन. महीना भर तबहियों दउड़वलन. आ आखिरकार एक दिन लोक कवि ओकरा पर सिर्फ पसीजिए ना गइलन बलुक ओकरा पर न्यौछावर हो गइलन. ओकरा के लेटवलन, चूमलन-चटलन आ संभोग सुख लूटला का बाद ओकरा से कहलन, “आवत रहऽ, मिलत रहऽ !” फेर ओकरा के अँकवारी में लेत चूमलन आ ओकरा कान में फुसफुसइलन, “तोरा के स्टार बना देब.” फेर जोड़लन, “बहुत सुख देलु, अइसहीं देत रहीहऽ.” फेर त लोक कवि किहाँ आवत-जात मीनू उनुका म्यूजिकल पार्टीओ में आ गइल आ गँवे-गँवे साचहुं ऊ उनुका टीम के स्टार कलाकार बन गइल. टीम के बाकी औरत, लड़िकी ओकरा से जरे लगलीं. बाकिर चूंकि ओकरा लोक कवि के “आशीर्वाद” प्राप्त रहे से सभकर जरतवाही भितरे भीतर रहे, मुखरित ना होखे. सिलसिला चलत रहल. एह बीच बीच लोक कवि ओकरा के शराबीओ बना दिहलन. शुरू-शुरू में जब लोक कवि एक रात सुरूर में ओकरा के शराब पिअवलन त पहिले त ऊ ना ना करत रहल. कहत रहल, “हम मेहरारू हईं. हमार शराब पियल शोभा ना दी.”
“का बेवकूफी बतियावत बाड़ू ?” लोक कवि मनुहार करत बोलले, “अब तू मेहरारू आर्टिस्ट हउ. स्टार आर्टिस्ट” ऊ ओकरा के चूमत जोड़लें, “आ फेर शराब ना पियबू त आर्टिस्ट कइसे बनबू ?” कह के ओज रात ओकरा के जबरदस्ती दू पेग पिआ दिहलें. जवना के बाद में मीनू उलटी क के बाहर निकाल दिहली. ओह रात ऊ घरे ना गइली. लोक कवि के अँकवारी में बेसुध पड़ल रहली. ओह रात जब लोक कवि ओकरा योनि के जब अपना जीभ से नवजलन त ऊ एगो नया सुखलोक में चहुंप गइल.
दोसरा भोर जब ऊ घरे चहुंपल त उमेश रात में लोक कवि के अड्डा पर रुकला पर बड़हन ऐतराज जतवलसि बाकिर मीनू ओह ऐतराज के कवनो खास नोटिस ना लिहली. कहली, “तबीयत ख़राब हो गइल त का करतीं ?”
फेर रात भर के जागल उ सूत गइल.
अब ले मीनू ना सिरिफ लोक कवि के म्यूजिक पार्टी के स्टार हो गइल रही. बलुक लोक कवि के आडियो कैसेटन के जाकेटो पर ओकर फोटो प्रमुखता से छपे लागल रहे. अब ऊ स्टेज आ कैसेट दुनु बाजारमें रहल आ जाहिर बा कि बाजार में रहल त पइसो के कमी ना रह गइल रहे ओकरा लगे. रात-बिरात कबहियो लोक कवि ओकरा के रोक लेसु आ ऊ बिना ना नुकुर कइले मुसुका के रुक जाव. कई बेर लोक कवि मीनू का साथे-साथ कवनो अउरीओ लड़िकी के साथे सूता लेसु तबो ऊ खराब ना माने. उलटे “कोआपेरट” करे. ओकरा एह “कोआपरेट” के जिकिर लोक कवि खुदऊ कभी कभार मूड में कर जासु. एह तहर कवनो ना कवनो बहाने मीनू पर लोक कवि के “उपकार” बढ़त जाव. लोक कवि के एह उपकारन से मीनू के घर में समृद्धि आ गइल रहे बाकिर साथही ओकरा दांपत्य में ना सिरिफ खटासे आ गइल रहे, बलुक ओकर चूरो हिल गइल रहुवे. हार के उमेश सोचलसि कि एगो अउर बच्चा पैदा कराईए के मीनू के गोड़ बान्हल जा सकेला. से एगो अउरी बच्चे के इच्छा जतावत मीनू से कापर टी निकलवावे के बात कवनो भावुक क्षण में उमेश कह दिहलसि त मीनू भड़क गइल. बोलल, “एगो बेटा बा त.”
“बाकिर अब ऊ पांच छः साल के हो गइल बा.”
“त ?”
“अम्मो चाहत बाड़ी कि एगो बच्चा हो जाव जइसे दिनेश के दू गो बा, बइसहीं.”
“त अपना अम्मे से कहऽ कि अपना साथे तोरा के सुता लेसु फेरू एगो बच्चा अउर जनमा लेसु ?”
“का बकत बाड़ू ?” कहत उमेश ओकरा के एगो जोर के झाँपड़ मरलसि. बोलल, “एतना बत्तमीज हो गइल बाड़ू !”
“एहमें बत्तमीजी के कवन बाति बा ?” पासा पलटत मीनू नरम आ भावुक हो के बोलल, “तूं अपना अम्मा के बच्चा ना हउव ? आ उनुका साथे सूत जइबऽ त बच्चा ना रहबऽ ?”
“तूं तब इहे कहत रहलू ?” उमेश बौखलाहट काबू करत बोलल.
“अउर नाहीं त का ?” ऊ कहलसि, “बात समुझलऽ ना आ झपड़िया दिहलऽ. आइंदा कबो हमरा पर हाथ जनि उठइहऽ. बता देत बानी.” आंख तरेर के ऊ कहलसि आ बैग उठा के चलत-चलत बोलल, “रिहर्सल में जात बानी.”
लेकिन उमेश ओह दिने कवनो घवाहिल शेर का तरह गांठ बान्ह लिहलसि कि मीनू के एक ना एक दिन लोक कवि का टीम से निकालिए के ऊ दम ली. चाहे जइसे. अनेके तरकीब, शिकायत ऊ भिड़वलसि बाकिर कामयाब ना भइल. कामयाब होखीत त भला कइसे ? लोक कवि किहां मीनू के गोट अइसन सेट रहे कि कवनो शिकायत, कवनो राजनीति, ओकर कवनो खोटो लोक कवि के ना लउके. लउकीत भला कइसे ?
ऊ त एह घरी लोक कवि के पटरानी बन इतरात फिरे.
ऊ त घरहुं ना जाइत. बाकिर हार के जाए त सिरिफ बेटा के मोहे. बेटा ला. आ एही से ऊ दोसर बच्चा ना चाहत रहे कि फेरू फंसे के पड़ी, फेरू बन्हाए के पड़ी. ई ग्लैमर, ई पइसा फेर लवटि के मिले ना मिले का जाने ? ऊ सोचे आ दोसरका बच्चा के सवाल आ ख़याल के टार जाव. बाकिर उमेश ई ख़याल ना टरले रहे. एक रात चरम सुख लूटला का बाद ऊ आखि़र फेरू ई बात धीरही-धीरे सही फेरू चला दिहलसि. पहिले त मीनू एह बाति के बिना कुछ बोलले अनसुन कर दिहलसि. तबहियो उमेश लगातार, “सुनत बाड़ू, सुनत बाड़ू” के संपुट का साथे बच्चा के पहाड़ा रटे लागल त ऊ अँउजा गइल. तबहियो बात टारत धीरे से बुदबुदाइल, “सूत जा, नीन लागत बा.”
“जबे कवनो जरूरी बात करीले तोहरा नीन आवे लागेला.”
“चलऽ सबेरे बतियाइब.” ऊ अलसात बुदबुदाइल.
“सबेरे ना, अबहीं बात करे के बा.” ऊ लगभग फैसला देत बोलल, “सबेरे त डाक्टर किहाँ चले के बा.”
“सबेरे हमरा हावड़ा पकड़े के बा प्रोग्राम में जाए के बा.” ऊ फेर बुदबुदाइल.
“हावड़ा नइखे पकड़े के, कवनो प्रोग्राम में नइखे जाए के.”
“काहें ?”
“डाक्टर किहाँ चले के बा.”
“डाक्टर किहाँ तू अकेहली हो अइहऽ.”
“अकेले काहें ? काम ते तोहार बा.”
“हमरा कवनो बेमारी नइखे. हम का करब डाक्टर किहाँ जा के ?” अबकी ऊ तनिका जोर से बोलल.
“बेमारी बा तोहरा.” उमेश पूरा कड़ेर हो के बोलल.
“कवन बेमारी?” अब ले मीनूओ के आवाज कड़ेर हो गइल रहे.
“कापर टी के बेमारी.”
“का ?”
“हँ !” उमेश बोलल, “उहे काल्हु सबेरे डाक्टर किहां निकलवावे के बा.”
“काहें ?” ऊ तड़क के बोलल, “का फेरु दोसरा बच्चा के सपना लउक गइल ?”
“हँ, आ हमरा ई सपना पूरावे के बा.”
“काहें ?” ऊ पूछलसि, “केकरा दम पर?”
“तोहार पति होखे का दम पर!”
“कवना बात के पति?” ऊ गरजल, “कमा के ना ले आईं त तोहरा घर में दुनु बेरा चूल्हा ना जरी, आ हई कूलर, फ्रिज, कालीन, सोफा, डबल बेड इहाँ ले कि तोहार मोटर साइकिलो ना लउकी !”
“काहें ? हमहुँ कमाइलें.”
“जेतना कमालऽ ओतना तुहुं जाने लऽ.”
“एने-ओने गइला से तोहार बोली आ आदत अधिके बिगड़ गइल बा.”
“काहें ना जाईं ?” ऊ चमक के बोलल, “तोहरा वश के त अब हमहुं नइखीं. महीना में दू चार हाली आ जालऽ कांखत-पादत त समुझेलऽ क बड़ा भारी मरद हउव. आ बोलेल कि पति हउअ.” ऊ रुकल ना बोलत रहल, “सुख हमके दे ना सकऽ, चूल्हा चउका चला ना सकऽ आ कहेलऽ कि पति हउअ. कवना बात के पति हउव जी ?” ऊ बोलल, “तोहार शराबो हमरे कमाई से चलेले. आउर का का कहीं ? का-का उलटीं-उघाड़ीं ?”
“लोक कवि तोरा के छिनार बना दिहले बा. काल्हु से तोहार ओकरा किहां गइल बन्द !”
“काहें बंद? कवना बात ला बंद? फेर तू हउव के हमार कहीं आइल गइल बंद करे वाला ?”
“तोहार पति !”
“तूं कतना हमार पति हउव, तनिका अपना दिल पर हाथ राख के पूछऽ.”
“का कहल चाहत बाड़ू तू आखिर ?” उमेश बिगड़ के बोलल.
“इहे कि आपन गिटार बजावऽ. कहऽ त गुरु जी से कहि के उनुका टीम में फेरू रखवा दीं. चार पइसा मिलबे करी. आ तनिका अपना शराब पर काबू कर लऽ !”
“हमार नइखे जाए के तोहरा ओह भड़ुँआ गुरुजी किहां जे अफसरान आ नेतवन के लौड़िया सप्लाई करेला. जवन सार हमार जिनिगी नरक कर दिहलसि. तोहरा के हमरा से छीन लिहलसि.”
“हमनी के जिनिगी नरक नइखे कइलन गुरु जी. हमनी के जिनगी बनवले बाड़न. ई कहऽ.”
“ई तूहीं कहऽ !”
“काहे ना कहब.” ऊ भावुक होखत बोलल, “हमरा त ई शोहरत, ई पइसा उनुके बदौलत मिलल बा. गुरु जी हमरा के कलाकार से स्टार कलाकार बना दिहलें.”
“स्टार कलाकार ना, स्टार रंडी बनवले बा.” उमेश गरजल, “उ कहऽ ना! कहऽ ना कि स्टार रखैल बनवले बा तोहरा के !”
“अपना जबान पर कंट्रोल करऽ !” मीनूओ गरजल, “का-का अनाप शनाप बकत जात बाड़ऽ ?”
“बकत नइखीं, ठीक कहत बानीं.”
“त तूं हमरा के रंडी, रखैल कहबऽ ?”
“हँ, रंडी, रखैल हऊ त कहब.”
“हम तोहार बीबी हईं.” ऊ घाहिल भाव से बोलल, “तोहरा अइसन कहत लाज नइखे लागत ?”
“आवत बा. तबहिए नू कहत बानी.” ओ कहलसि, “आ फेर केकरा-केकरा के लाज दिअइबू ? केकर-केकर मुंह बंद करइबू ?”
“तू बहुते गिरल आदमी हउवऽ.”
“हँ, हईं.” ओ कहलसि, “गिर त ओही दिन गइल रहीं जहिया तोहरा से शादी कइनी.”
“त तोहरा हमरा से बिआह करे के पछतावा बा ?”
“बिलकुल बा.”
“त छोड़ काहें नइखऽ देत ?”
“बेटा रोक लेता, ना त छोड़ देतीं.”
“फेर कवनो पूछबो करी ?”
“हजारन बाड़ी सँ पूछे वाली?”
“अच्छा?”
“त?”
“तबहियों हमरा के रंडी कहत बाड़ऽ.”
“कहत बानी.”
“कुकुर हउवऽ.”
“तें कुतिया हई.” ऊ बोलल, “बेटा के चिंता ना रहीत रत एही छन छोड़ देतीं तोरा के.”
“बेटा के बहुते चिंता बा?”
“आखि़र हमार बेटा ह ?”
“ई कवन कुत्ता कह दिहलसि कि ई तोहर बेटा ह ?”
“दुनिया जानत बिया कि हमार बेटा ह.”
“बेटा तू जनमवलऽ कि हम ?” ऊ कहलसि, “त हम जानब कि एकर बाप के हऽ कि तूं?”
“का बकत बाड़ीस ?”
“ठीक बकत बानी.”
“का ?”
“हँ, ई तोर बेटा ना हऽ.” ऊ बोलल, “तू एकर बाप ना हइस.”
“रे माधरचोद, त ई केकर पाप ह, जवन हमरा कपारे थोप दिहले ?” कहि के उमेश ओकरा पर कवनो गिद्ध अस टूट पड़ा. ओकर झोंटा पकड़ के खींचत लतियावे जूतिवाए लागल. जवाब में मीनूओ हाथ गोड़ चलवलसि बाकिर उमेश का आगे ऊ पासंगो ना पड़ल आ बहुते पिटा गइल. पति से तू-तड़ाम कइल मीनू के बहुते पड़ल. एह मार पीट से ओकर मुंह सूज गइल, होंठ से खून बहे लागल. हाथो गोड़ छिला गइल आ अउर त अउर ओही रात ओकरा घरो छोड़े पड़ गइल. आपन थोड़ बहुत कपड़ा लत्ता बिटोरलसि, ब्रीफकेस में भरलसि, रिक्शा लिहलसि. मेन रोड पर आ के रिक्शा छोड़ टेंपो धइलसि आ चहुँप गइल लोक कवि का कैंप रेजीडेंस पर. कई बेर काल बेल बजवला पर लोक कवि के नौकर बहादुर दरवाजा खोललसि. मीनू के देखते चिहुँकल. बोलल, “अरे आप भी आ गईं?”
“काहें ?” मरद के सगरी खीसि बहादुरे पर उतारत मीनू गरजल.
“अरे नहीं, हम तो इश लिए बोला कि दो मेमशाब लोग पहले ही से भीतर हैं।” मीनू का गरजला से सहम के बहादुर बोलल.
“त का भइल ?” तनिका मेहरात मीनू बहादुर से गँवे से पूछलसि, “के-के बा ?”
“शबनम मेमशाब और कपूर मेमशाब.” बहादुर खुसफुसा के बोलल.
“कवनो बात ना.” ब्रीफकेस बरामदा में पटकत मीनू बोलल.
“कवन ह रे बहादुर!” अपना कोठरिए से लोक कवि चिल्ला के पूछलन, “बहुते खड़बड़ मचवले बाड़ीस ?”
“हम हईं गुरु जी!” मीनू कोठरी के दरवाजा लगे जा के गँवे से बोलल.
“के ?” औरत के आवाज सुन लोक कवि अचकचइले. ई सोच के कहीं उनुकर श्रीमति जी त ना आ गइली ? फेर सोचलन कि उनकर आवाज त बहुते कर्कश ह आ ई आवाज त कर्कश नइखे. ऊ अभी उहचुह में पड़ल इहे सब सोचत रहलन कि तबे ऊ फेर गँवे से बोलल, “हम हईं, मीनू, गुरु जी!”
“मीनू?” लोक कवि फेरू अचकचइले आ कहलें, “तूँ आ अतना रात के ?”
“हँ, गुरु जी.” ऊ दोष भाव से बोलल, “माफ करीं गुरु जी.”
“अकेले बाड़ू कि केहु अउरो बा ?”
“अकेलहीं बानी गुरु जी.”
“अच्छा रुकऽ अबहींए आवत बानी.” कह के लोक कवि जांघिया खोजे लगलन. अन्हार में. ना मिलल त बड़बड़इलन, “ए शबनम! लाइट जराव !”
बाकिर शबनम मुख मैथुन का बाद उनुका गोड़तरिया लेटल पड़ल रहे. लेटले-लेटल मूड़ी हिलवलसि. बाकिर उठल ना. लोक कवि फेर भुनभुनइलें, “सुनत नइखू का ? अरे, उठ शबनम! देख मीनू आइल बाड़ी. बहरी खड़ा बाड़ी. लागत बा ओकरा पर कवनो आफत आइल बा !” शबनम लेकिन अधिके नशा में रहुवे से ऊ उठल ना. कुनमुना के रह गइल. आखिरकार लोक कवि ओकरा के एक तरफ हटावत उठलन कि उनकर एक गोड़ नीता कपूर पर पड़ गइल. ऊ चिकरल, “हाय राम !” बाकिर गँवे से. लोक कवि फेर बड़बड़इले, “तू अबहियो एहिजे बाड़ू ? तू त कहत रहलू कि चल जाएब.”
“ना गुरु जी का करीं. अलसा गइनी. ना गइनी. अब भोरे जाएब.” ऊ अलसाइले बोलल.
“अच्छा चलऽ उठऽ!” लोक कवि कहले, “लाइट जराव !”
“काहें ?”
“मीनू आइल बाड़ी. बहरी खाड़ बाड़ी !”
“मीनूओ के बोलवले रहीं ?” नीता पूछलसि, “अब आप कुछ करिओ पाएब ?”
“का जद-बद बकत रहेलु.” ऊ कहले, “बोलवले ना रहीं, अपने से आइल बाड़ी. लागत बा कुछ झंझट में बाड़ी !”
“ते एही बिछऽना पर उहो सूतीहें का ?” नीता कपूर भुनभुनइली, “जगहा कहां बा ?”
“लाइट नइखे जरावत रंडी, तबे से बकबक-बकबक बहस करत बिया !” कहत लोक कवि भड़भड़ा के उठलन आ लाइट जरा दिहलन. लाइट जरावते दुनु लड़िकी कुनमुनइली बाकिर नंग धडंग पटाइल रहली.
लोक कवि दुनु का देह पर चादर डललन, जांघिया ना मिलल त अंगवछा लपेटलन, कुरता पहिरलन आ कोठरी के दरवाजा खोललन. मीनू के देखते ऊ सन्न हो गइले. बोलले, “ई चेहरा कइसे सूज गइल ? कहीं चोट लागल कि कतहीं गिर गइलू ?”
“ना गुरु जी!” कहत मीनू रोआइन हो गइल.
“त केहु मारल ह का ?”
लोक कवि पूछलन त मीनू बोलल ना बाकिर मूड़ी हिला के सकार लिहलसि. त लोक कवि बोलले, “के ? का तोर मरद ?” मीनू अबकी फेरू ना बोलली, मूड़ीओ ना हिलवली आ फफके लगली. रोवते-रोवत लोक कवि से लपेटा गइली. रोवते-रोवत बतवली, “बहुते मरलसि.”
“कवना बात पर?”
“हमरा के रंडी कहऽता.” ऊ बोलल, “कहऽता कि राउर रखैल हईं.” बोलते-बोलत ओकर गर अझूरा गइल आ ऊ फेर फफके लागल.
“बहुते लंठ बा.” लोक कवि बिदकत बोलले. फेर ओकर घाव देखलन, ओकर बार सहलवलन, तोस दिहलन आ कहलन कि, “अब कवनो दवाई त एहिजा बा ना. घाव के शराब से धो देत बानी आ तूं दू तीन पेग पी ल, दरद कुछ कम हो जाई, नीन आ जाई. काल्हु दिन में डाक्टर से देखा लीहऽ. बहादुर के साथे ले लीहऽ.” ऊ कहले, “हमनी का त सबेरे गाड़ी पकड़ के पोरोगराम में चल जाएब.”
“हमहु आप के साथे चलब.”
“अब ई सूजल फुटहा मुंह ले कर कहां चलबू ?” लोक कवि बोलले, “भद्द पिटाई. एहिजे आराम करऽ. पोरोगराम से वापिस आएब त बतियाएब.” कह के ऊ शराब क बोतल उठा ले अइले आ मीनू के घाव शराब से धोवे लगले.
“गुरु जी, अब हम कुछ दिन एहिजे रुकब, जबले कवनो अउर इंतजाम नइखे हो जात.” ऊ तनी मेहराइल जबान बोलली.
लोक कवि कुछ ना कहले. ओकर बात लगभग पी गइले.
“रउरा कवनो ऐतराज त नइखे गुरु जी?”
“हमरा काहें ऐतराज होखी?” लोक कवि बोलले, “ऐतराज तोहरा मरद के होखी.”
“ऊ त हमरा के राउर रखैल कहते बा.”
“का बेवकूफी बतियावत बाड़ू ?”
“हम कहत बानी कि रउरा हमरा के आपन रखैल बना लीं.”
“तोहार दिमाग ख़राब हो गइल बा.”
“काहें ?”
“काहें का ? हम केकरा-केकरा के रखैल बनावत चलब.” ऊ बोलले, “लखनऊ में रहीलें त एकर का मतलब कि हम वाजिद अली शाह हईं ?” ऊ कहले, “हरम थोड़े बनावे क बा. अइसहीं आत-जात रहऽ इहे ठीक बा. आज तोहरा के राख लीं, काल्हु ई दुनु जवन पटाइल बाड़ी स, एकनी के राख लीं, परसों अउरी राख लीं फेर त हम बरबाद हो जाएब. हम नवाब ना नू हईं. मजूर हईं. गा बजा के मजूरी करीले. आपन पेट चलाइले आ तोहनीओ लोग के. हँ तनिका मौजो मजा कर लीले त एकर मतलब ई थोड़े ह कि….?” सवाल अधूरा सुना के लोक कवि चुपा गइले.
“त एहीजा ना रहे देब हमरा के ?” मीनू लगभग गिड़गिड़ाइल.
“रहे के के मना कइल ?” ऊ बोलले, “तूं त रखैल बने के कहत रहू.”
“हम ना गुरु जी, हमार मरद कहऽता त हम कहनी कि रखैल बनिए जाईं.”
“फालतू बात छोड़ऽ.” लोक कवि बोलले, “कुछ दिन एहिजा रहि ल. फेर हो सके त अपना मरद से पटरी बइठा ल. ना त कतहीं अउर किराया पर कोठरी दिआ देब. सामान, बिस्तर करा देब. बाकिर एहिजा परमामिंट नइखे रहे के.”
“ठीक बा गुरु जी! जइसन रउरा कहीं.” मीनू बोलली, “बाकिर अब ओह हरामी का लगे ना जाएब.”
“चलऽ सूत जा! सबेरे ट्रेन पकड़े के बा.” कहके लोक कवि खुद बिस्तर पर पसर गइले. बोलले, “तुहुं एहिजे कहीं पसर जा आ बिजली बंद क द.”
लाइट बुता गइल लोक कवि के एह कैंप रेजीडेंस की।
लेखक परिचय
अपना कहानी आ उपन्यासन का मार्फत लगातार चरचा में रहे वाला दयानंद पांडेय के जन्म ३० जनवरी १९५८ के गोरखपुर जिला के बेदौली गाँव में भइल रहे. हिन्दी में एम॰ए॰ कइला से पहिलही ऊ पत्रकारिता में आ गइले. ३३ साल हो गइल बा उनका पत्रकारिता करत, उनकर उपन्यास आ कहानियन के करीब पंद्रह गो किताब प्रकाशित हो चुकल बा. एह उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं” खातिर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनका के प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित कइले बा आ “एक जीनियस की विवादास्पद मौत” खातिर यशपाल सम्मान से.
वे जो हारे हुये, हारमोनियम के हजार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाजे, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास, बर्फ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एगो जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह, सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां, प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित, आ सुनील गावस्कर के मशहूर किताब “माई आइडल्स” के हिन्दी अनुवाद “मेरे प्रिय खिलाड़ी” नाम से प्रकाशित. बांसगांव की मुनमुन (उपन्यास) आ हमन इश्क मस्ताना बहुतेरे (संस्मरण) जल्दिये प्रकाशित होखे वाला बा. बाकिर अबही ले भोजपुरी में कवनो किताब प्रकाशित नइखे. बाकिर उनका लेखन में भोजपुरी जनमानस हमेशा मौजूद रहल बा जवना के बानगी बा ई उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं”.
दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com
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