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Tasveer Jindgi Ke

The Poet

A complete book : Tasveer Jindgi Ke

This collection of Gazals by Bhojpuri Poet Manoj Bhawuk was awarded the "Bhartiya Bhasha Parishad Samman 2006".

Anjoria is pleased to offer this book as a whole to it's readers.


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गजलकार के उद्गार - 2

स्कूल, कॉलेज आ रंग संस्थान के तरफ से कईगो महत्वपूर्ण टूर के मौका मिलल. हिण्डाल्को मैनेजमेन्ट वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लेबे खातिर पिलानी (राजस्थान), वाराणसी आ सारनाथ, एन.सी.सी.कैडेट का रूप में आगरा आ रंग संस्थान नाटकन के मंचन खातिर राजगीर, गया, हाजीपुर (बिहार), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) आदि कई महत्वपूर्ण स्थानन के टूर करे के अवसर मिलत रहल. एही टूर में यात्रा-वृतान्त का रूप में गद्य लिखे के आदत पड़ल. बाद में पद्य आ तुकबन्दी में ही आनन्द आवे लागल आ अब त बिल्कुल छंद-काव्य लय-काव्य यानि कि गजल.

हालाँकि तुकबंदी के आदत त प्राइमरी स्कूल (महिला मंडल आदर्श शिक्षा निकेतन, रेणुकूट) से ही लाग गइल रहे. जब हम पहिला बेर 'क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात'(हिण्डाल्को आडिटोरियम में मंचित) नाटक में कवि मुखिया जी के रोल कइले रहीं. इकड़ी-दुकड़ी-तिकड़ी बम, करो काम ज्यादा, बोलो कम - हमार कविता रहे. बाद में जब रामलीला परिषद, रेणुकूट ज्वाइन कइनी आ रामलीला में विभिन्न किरदार निभावे लगनी तऽ रामचरित मानस के दोहा-चौपाई से बहुत प्रभावित भइनी. हायर सेकेण्डरी में भी नाटक के मंचन खातिर स्क्रिप्ट चुने के जिम्मेदारी हमरे के सँउपल जाय. हम लाइब्रेरी में किताबन के हींड़ के रख दीं. दर्जनो नाटक पढ़ला का बाद एगो फाइनल करीं. तब जाके मंचन होखे. तब लाइफ बहुत कलरहुल आ आनन्दमय रहे. बाकिर घाटा ई रहे कि तबे से अध्ययन (Study) से विचलन-कोण (angle of deviation)धीरे-धीरे बढ़े लागल रहे. एह दिसाईं हमार गुरुजी लोग हमेशा हमरा के समझावे. गुरु के प्रति हमेशा हमरा श्रद्धा रहल. चाहे ऊ स्लेट पर चॉक से ज्ञान के पहिला अक्षर अ अउर दू दूना चार के ज्ञानबोध करावेवाला गाँव के प्राइमरी स्कूल के पंडीजी होखीं या जीव-शास्त्र - हृदय, धमनी. शिरा, नाड़ी आ मस्तिष्क के जटिल से जटिल संरचना के भी बड़ी आसानी आ सरलता से मन मस्तिष्क में स्थापित कर देबेवाली हाई स्कूल के वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती कृष्णा सेठी या कानपुर के गणित प्राध्यापक श्री राजकुमार तिवारी, (जेकरा सानिध्य में हम आपन महत्वपूर्ण दू साल गुजरनी), या आइन्स्टीन के सिद्धान्त E=MC2 से भौतिकी आ दुनिया के बीच के संबंध के व्याख्यायित करे वाला पटना के फेमस भौतिकी प्राध्यापक कौल साहब (श्री ए.के.कौल) होखीं. ...सभे अकेला में हमार क्लास लेबे. हम एक कान से सुनीं आ दोसरा से निकाल दीं. गुरुजी लोद समझावे कि एके साथे कई गो नाव पर सवारी खतरनाकहोला. एकै साधे सब सधै. सेठी मैडम त रेणुलूट से कानपुर गइला के बाद भी चिट्ठी लिख-लिख के समझावस. बाकिर हम कुक्कुर के पूँछ. ....आ...ओह घरी त आउरी कुछ ना बुझाय. काहे कि तब तक कानपुर के मोतीझील हमरा के अपना ओर खींच लेले रहे. बाद में पटना के चिड़ियाघर (आ अब युगाण्डा के विक्टोरिया झील). हालाँकि पटना में आचार्य कपिल जी से परिचय के बाद उहाँ के हमरा अभिभावक के भी भूमिका अदा कइनी. पढ़े-लिखे खातिर बेर-बेर डाँट-डपट करीं. बेर-बेर समझाईं कि 'रंगमंच आ साहित्य से पेट ना भरी. पषाई के नजरअन्दाज क के कुछुओ कइल ठीक नइखे.' हमरा बाबूजी के हमेशा हमरा से शिकायत रहल. घर-परिवार आ हीत-नात का नजर में हम आवारा इलीमेन्ट हो गइल रहीं. हमार प्रतिभावान भाई आ मित्र श्री संजय कुमार सिंह (इंजीनियर, पावर ग्रिड) हमरा गतिविधियन से आजिज आ के पटना से लखनऊ भाग गइलें. हम जस के तस रह गइनी. बिल्कुल ठेंठ के ठेंठ... खाँटी के खाँटी. बाहर से भीतर ले बस एक जइसन. 'हमरा से ना हो सकल झूठ-मूठ के छाव, चेहरा पर हरदम रहल आंतर के ही भाव'. ..बिल्कुल नेचुरल. कवनो हवा-बेयार हमरा के ना बदल सकल. कवनो धार हमरा के अपना दिशा में दहवा ना सकल. हम हमेशा धार के खिलाफ बहत रहनी. कुछ लोग मगरूर कहल त कुछ लोग सनकी. तबो हमरा स्वभाव में कवनो परिवर्तन ना आइल. बाकिर इ स्वभाव बहुत महँगा पड़ल. बहुत कुछ टूट गइल ...बहुत कुछ छूट गइल. बाकिर का करीं?

जब आज ले ना सुधरनी त आगे उम्मीद कमे बा. अइसे हमरा अपना उपनाम के हिसाब से नरम होखे के चाहीं. ...तुरंते पिघल जाये के चाहीं. बाकिर नाम त नाम हऽ. नाम से का होला? एह उपनाम 'भावुक' के भी एगो अलगे कहानी बा. केहू प्यार से दीहल आ हम ले लीहनी. केहू के होंठ से फूटल .. हमरा करेजा मे सटल त आज ले सटले रह गइल. संक्षेप में कानपुर से नाम के साथ जुड़ल गिफ्टेड शब्द "भावुक" पटना में विस्तार लेलस आ महाराष्ट्र में भाऊ (भाई) हो गइल.

मन तऽ मने नू हऽ. जवन सट जाला तवन सट जाला. जवन लाग जाला तवन भीतर ले गहिर घाव क देला. हम का कहीं अपना मन के.

गुजरात के गरबा रास(डांडिया नृत्य) के तरह हमार मन भी कवनो एगो धुन पक्का ना कर सकल. हर घरी लय बदलत रहल. दिशा बदलत रहल. जहाँ आनन्द मिलल, मन ओने सरक गइल. मनबढ़ू हो गइल. मन सहक गइल. केहू कुछू समझावे, केतनो समझावे, मन ना माने. बस खूँटा त ओहीजी गड़ाई, जहाँ हमार मन करी. ...आ ....हमार मन. मन के तऽ शुरू से ताली सुने के आदत पड़ गइल रहे. स्कूल से(हिण्डाल्को स्कूल के) म्च पर चढ़ के लम्बा‍-चौड़ा भाषणबाजी. शायदे कवनो अइसन कार्यक्रम ऋोखे जवन हमरा भाषणबाजी के बगैर संपन्न होखे. ओकरा एवज में का मिले हमरा? ...पाँच-सात हजार स्टूडेन्ट के ताली आ ओकर गड़गड़ाहट. मन लहलहा जाय. ...ई नशा हऽ. ...शराब से भी ज्यादा खतरनाक. नशेड़ी जहाँ जाला नशा के अड्डा ढूंढ़ लेला. .....नशा के बहाना ढूंढ़ लेला. हम जहाँ भि गइनी भाषणबाजी के अड्डाढूंध लेनी. गाँवे गइनी त "कौसड़ के दर्पण"(गाँव के बायोग्राफी) लिखे लगनी. जबकि ओह समय सबसे ज्यादा जरूरत रहे ऋमार आपन बायोग्राफी सुधारे के. पटना घइनी त उहाँ आपन मित्रद्वय अजय अविनाश आ रामनिवास के साथे मिल के समाज सुधारक संघ गठित क लेनी, जबकि ओह घरी हमरे में एक लाख सुधार के गुंजाइश रहे. रोज नाराबाजी, झाडाबाजी, सड़क जाम, डी.एम. वगैरह के घेराव, त मंत्री के निवास पर हो-हल्ला, .....वगैरह-वगैरह. एह से मन ना भरल त रंगमंच ज्वायन कइनी. फेर साहित्य मंच, काव्य मंच वगैरह-वगैरह. हर जगह ताली-पर-ताली. तालियन के बौछार. बाकिर तब तक ई ना बुझाइल रहे कि ताली के भीतर भी गाली छुपल रहेला. लोग खाली रउरा सफलता पर ही ताली ना पीटे. रउरा असफलता पर भी ताली पीटेवालन के एगो लम्बा कतार होला.. ओह कतार के ओर मुड़ के तऽ हम कबो देखलहीं ना रहीं. रउरा कहीं फिसल जाईं, गिर जाईं, लुढ़क जाईं, ढिमिला जाईं त उहवाँ रउरा के संभाल के उठावे वाला भले केहू ना मिले, रउरा उपर थपरी बजावेवाला, ताली पीटेवाला जमात जरूरे मिल जाई.

बाबूजी के रिटायर भइला के बाद हमार आँख खुलल त हम पीछे मुड़ के देखनीं कि हमरा वर्तमान स्थिति पर थपरी पीटेवालन के एगो लंबा कतार बा. तब हम बिल्कुल बिखर गइल रहीं. ....हमार ऊर्जा कई गो क्षेत्र में बँट गइल रहे. ....मन बिखर जाये त ओकरा के समेटल बहुत मुश्किल काम होला.

स्कूलिंग के दौरान गणित हमार प्रिय विषय रहे, बाकिर इंडस्ट्रियल लाइफ से हमरा चिढ़ रहे. मशीनी काम-काज हमरा तनिको ना भावे. हम छोट रहीं तबे से हमरा घरे दमकल(पंपिंग सेट) बा. हमरा इयाद बा जब कबो दमकल बिगड़ जाये आ ओकरा के बनावे खातिर मिस्त्री बोलावल जाय त हम उहाँ से धीरे से टरक जाईं कि हमरा के कवनो काम मत अढ़ावल जाय. इहाँ तक कि जब घर के चाँपाकल बिगड़ जाय नया वाशर लगावे का डरे हम घर से बगइचा में भाग जाईं. लोहा लक्कड़ के कल-पूर्जा मे हमरा कवनो दिलचस्पी ना रहे... ....हँ, आदमी के कल-पूर्जा में दिलचस्पी जरूर रहे. हम गणीत छोड़ के बायोलॉजी चुननी, ....अपना जिद्द पर, बाबूजी के मर्जी के खिलाफ. सैकड़न डिग्री-डिप्लोमाधारी के नौकरी देबेवाला बाबूजी के हमरा से भी इंजीनियरिंग के उम्मीद रहे. पढ़े-लिखे में ठीक रहीं, एह से अइसन उम्मीद भी स्वाभाविक रहे. ...पर हम खूँटा त ओहिजा गड़ाई के सिद्धान्त पर कायम रहनी.

पटना आ के तितर-बितर हो गइनी. 'अर्जुन के मछली के आँख' वाली दृष्टि खतम हो गइल.कॉकरोच के आँख की दृष्टि पनपे लागल. एगो चीज के टुकड़ा-टुकड़ा में देखे भा एके साथे कई गो चीज पर दृष्टिपात करे के रोग लाग गइल. रेशम के कीड़ा के तरह अपने ऊपर जंजाल के जाल बुनाये लागल. एजुकेशन के दौरान ही रंगमंच, साहित्य आ काव्य मंच, समाज सुधारक संघ, रेडियो-दूरदर्शन आ अब एगो कोचिंग इंस्टीट्यूट के भी स्थापना हो गइल. सिंह-भावुक कोचिंग. पढ़ावे में परमानन्द आवे लागल. एह से बढ़िया भाषणबाजी के मंच दोसर होइये नइखे सकत. हम केमिस्ट्री आ फिजिक्स पढ़ावत-पढ़ावत जीवन-दर्शन, प्यार, रंगमंच आ साहित्य में उतर जाईं. केमिस्ट्री के अधिकांश फार्मूला के पोएट्री बन गइल रहे. ह,रा हरेक स्टूडेन्ट के आवर्त-सारणी के सारा तत्व आ इलेक्ट्रोकेमिकल सिरिज जुबानी याद रहत रहे. ई सब पोएट्री (कविता) के कमाल रहे. .....हमरा आउर का चाहीं. भोरे-भोरे भर पेट 'प्रणाम' मिले. हम ओही में गच्च रहीं.भावुक सर. ...भावुक सरके अनुगूँज से मन प्रफ्फुलित रहे लागल. स्टूडेन्ट के बूढ़ बाप जब अपना बेटा-बेटी के उज्जवल भविष्य खातिर सामने हाथ जोड़ के खड़ा हो जाय तब पूछहीं के का रहे. हमरा बुझाइल जे हम भविष्य-निर्माता हो गइनीं (जबकि हमरा खुद के भविष्य के कवनो ठीके ना रहे). चार साल के अध्यापन के दौरान हमार कई गो स्टूडेन्ट मेडिकल कम्पीट कइलें. (ऊ आज भी मेल भा फोन से कान्टेक्ट में बाड़न). हमरा ओही में आनन्द आवे लागल. उनके उज्जवल भविष्य देख के हमरा चेहरा पर चमक आवे लागल. अपना भविष्य के कवनो ख्याले ना रहे. हम अपना के सुबह से रात तक एतना ना व्यस्त क लेनी कि अपना बारे में सोचे के फुर्सते ना रहे..... ना होश. कोचिंग-कॉलेज-रंगमंच-साहित्य-शूटिंग दिनचर्या बन गइल रहे.

शुतुरमुर्ग के तरह आवेवाला खतरा से मुँह मोड़ के ओने पीठ क देले रहीं, हम. बाकिर का खतरा से मुँह मोड़ लेला से खतरा टल जाई ? खतरा आइल.... बाबूजी के रिटायरमेन्ट के बाद नौकरी के जरूरत महसूस भइल. संयोग अच्छा रहे कि तब तक हमार चयन सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट आफ इंजिनयरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी में हो गइल रहे. कोर्स कम्प्लीट भइला के बाद नौकरी के तलाश शुरू हो गइल.

जवना इंडस्ट्रियल लाइफ से चिढ़ रहे हमरा, ओही में इन्ट्री खातिर छटपटाहट शुरू हो गइल. एकरे के कहल जाला, वक्त के मार आ मजबूरी.

मजबूरी पटना से दिल्ली आ दिल्ली से मुंबई खींच ले आइल आ अब अफ्रीका.

पटना छोड़ल भी आसान ना रहे हमरा खातिर. दिल्ली के नौकरी कॉन्फर्म भइला का बाद भी दू महीना लाग गइल पटना छोड़े में. तब दू-दू गो धारावाहिक 'तहरे से घर बसाइब' आ 'जिनिगी के राह' के स्क्रिप्ट पर काम करत रहीं. कई गो सिरियल के शूटिंग बाकी रहे. अनिल मुखर्जी जयन्ती पर नाटक के मंचन करे के रहे. कोचिंग के कोर्स पूरा करावे के रहे. दिन-रात एक क के सब काम निपटइनी आ फेर आपन संत-आठ साल पुरान (सन् ई. १९९३-२००१) पटनहिया खोंता उजाड़ के चल देनी जीवन के नया अध्याय शुरू करे.

नया सबेरा के शुरुआत भइल दिल्ली में. हालाँकि दुइये-तीन महीना रहनी बाकिर उहाँ के कई गो प्रसंग हमरा बड़ा इयाद आवेला. डा.रमाशंकर श्रीवास्तव जी के देख-रेख में आयोजित महामूर्ख सम्मेलन आ जलपान में ठेकुआ आ कटहर के तरकारी के इयाद हर फगुआ में ताजा हो जाला.

दिल्ली के एगो आउर प्रसंग संस्मरण बन गइल बा. फगुआ के दिने रात के बारह बजे हमरा दाँया नाक से ब्लीडिंग शुरू भइल त रुके के नामे ना लेत रहे. हमार इंडस्टरियल मित्र सुनील राय (क्वालिटी कंट्रोल इंजिनियर) आ राजेश कुमार उर्फ दीपू (फैशन डिजाइनर) हमरा के लाद-लूद के कॉलरा हास्पीटल में डाल दीहल लोग. दू दिन में डाक्टर १५ हजार रुपिया चूस गइल बाकिर कुच लाभ ना मिलल.

बाद में डा.प्रभुनाथ सिंह जी हमरा के उमेशजी का साथे डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल भेज देनी. कुछ ना रहे. नाक के झिल्ली सूख के नखोरा गइल रहे.

अस्पताल से तालकटोरा वाला रेजिडेन्स पर वापस अइनीं तऽ डा. प्रभुनाथ सिंह जी पूछनीं - का हो उमेश, का कहलऽ सऽ डाक्टर. उमेश जी मजाक कइलन - कहलऽ सऽ कि नाक के हड्डी टेढ़ हो गइल बा. एह पर डा. प्रभुनाथ सिंह जी कहनीं कि ...ऐ भावुक. देखऽ ... नाक के हड्डी टेढ़ हो जाय, कवनो बात बइखे, ...नाक से खून बहे, कवनो बात नइखे, ...इहाँ तक कि नाक टूट जाय कवनो बात नइखे. बाकिर नाक कटे के ना चाहीं. इहे भोजपुरिया स्वभाव हऽ.

ई स्वभाव लेके हम अफ्रिका आ गइनी. एकरा के फार्मूला बना लेनी. 'हाथ में करिखा (मोबिल, आयल, ग्रीस) कवनो बात नइखे ... बाकिर मुँह मे करिखा ना लागे के चाहीँ.' केहू हमरा पर अंगुरी मत उठावे. ई सिद्धान्त जीवन-दर्शन बन के हरेक पग पर हमार मदद कर रहल बा. फलतः जवना इंडस्ट्री के नामे से हम थर-थर काँपी, उहाँ साँढ़ आ भँईसा से भी खतरनाक युगण्डन के ऊपर हाथ फेर के चुचकार-पुचकार रहल बानी आ कंपनी के दू-दू गो प्लान्ट के सिफ्ट इंचार्ज के भार अपना कमजोर कान्ह पर ढो रहल बानी. वक्त सब सिखा देला, ए भाई ...पेट सब पढ़ा देला.

देखीं...... 'बात पर बात' बढ़ल जा रहल बा. अभी एकर अवसर नइखे. का करीं. भाषणबाजी के आदत से लाचार बानी. जाये दीं, हम अपना वाचालता खातिर माफी मांगत फेरू वापस लौटत बानी गजल आ गजल-संग्रह के परिधि का भीतर आ आपन बात समेटत बानीं.

हँ तऽ गजल के दूसरा हिस्सा के सृजन महाड़ (महाराष्ट्र) में भइल बा. छत्रपति शिवाजी महाराज के जन्मस्थली रायगढ़ (महाड़) के प्राकृतिक सुन्दरता ...नदी, झील, झरनामन केबड़ा सकून देले बा आ हर घरी मन में कवनो-ना-कवनो धन गूँजत रहल बा. ...हमार भोजपुरिया मित्र आ रूम-मेट वेदप्रकाश यादव (इलेक्ट्रिकल इंजीनियर) हमरा के बहुत बर्दाश्त कइले बाड़न. हालाँकि बेर-बेर मुंबई जाये खातिर उहे उकसावस भी - 'घर में हाथ-प-हाथ ध के बइठला से कुछ ना होई, ए भावुक जी, ... कुछ पावे खातिर लड़े के पड़ेला.' उनका खोदला-खोदियवला से हमार मुंबई जाये के आवृति (frequency) बढ़ गइल. मुंबई में हम अपना तेज-तर्रार समाजसेवी मित्र डा. ओमप्रकाश दूबे (दूबे इस्टेट नालासोपारा के मालिक) के पास ठहरीं. दूबेजी से हमरा अनुजवत् स्नेह आ सहयोग मिले. बहुत कुछ हासिल भइल. छोट भाई धर्मेन्द्र मुंबई में पार्श्वगायन खातिर संघर्षरत रहलें. हमरा बुझाइल जे हमहूँ मुंबई सिफ्ट क जाएब. कई गो हिन्दी आ भोजपुरी के फि्ल्म में अभिनय करे आ गीत लिखे के आफर मिलल. बालाजी टेलीफिल्म्स के धारावाहिक 'कसौटी जिन्दगी की' में भी काम मिलल. बाकिर अफ्रीका के मोट पइसा आ पइसा के जरुरत अपना ओर खींच के सब काम चौपट क देलस. सब मेहनत डाँर गइल.

हम दुविधा में पड़ गइनीं. ओही समय पटना से दूगो पोस्टकार्ड आइल. नाटककार सुरेश काँटक जी लिकले रहीं - 'का कहले रहीं हम तोहरा के, उगता हुआ सूरज ... हमरा पूरा उम्मीद बा भाई कि तू मुंबई में भी आपन पैर जमा लेबऽ'. दूसरा चिट्ठी लोकगायक ब्रजकिशोर दूबे जी के रहे -'हमरा पूरा विश्वास बाकि तू पटना से दिल्ली, आ दिल्ली से मुंबईये ना, विदेशो जइबऽ'. एह दूनो चिट्ठी के बीच के अन्तर अब साचहूँ हमरा सामने एगो जटिल सवाल बन के खाड़ हो गइल रहे.

हम अफ्रीका चल अइनी. सब कुछ छोड़ के. साहित्य, रंगमंच, फिल्म, घर-परिवार, माई-बाप. अफ्रीका के एह जंगल में रास-रंग से भरल ऊ दिन टीस बनके कबो-कबो बहुत परेशान करे. अनायासे गीत के बोल कुलबुलाये लागे. एगो हिन्दी फीचर फिल्म खातिर आइटम गीत लिखले रहीं - 'सब आँखे चार करते हैं, मैं आँखे आठ करता हूँ. मैं चश्मेवाला हूँ, चश्मेवाली से प्यार करता हूँ', ई गिट पर्ल पॉलिमर्स लिमिटेड के हर स्टॉफ के जुबान पर रहे. हर पार्टी में गवाय. 'दिल से यूँ न भुला देना'...'जिनसे नजरें बचाते रहे हम' आ भोजपुरी गीत 'दिल के गली में अचके गुलजार हो गइल बा, मोहे प्यार हो गइल बा, तोहे प्यार हो गइल बा'. ...जइसन तमाम फिल्मी गीतन के रचना ओही मौसम आ मिजाज में भइल.

बाकिर भारत से युगाण्डा अइला पर सब कुछ ठप्प हो गइल. हम सांचहूँ मशीन के साथे मशीन हो गइनी. बाकिर एक दिन अचके internet पर search करत में हमरा Bhojpuri Website लउक गइल. बस हम फेर सक्रिय हो गइनी. हमार गीत-गजल website पर लउके लागल. हम धन्यवाद दीहल चाहब Bhojpuri Website के Moderator आ MECON Limited, Ranchi के Senior Structural Engineer श्री विनय कुमार पाण्डेय जी के, जे अतना महत्वपूर्ण आ जरूरी काम के अंजाम दीहलें. विश्व के मानस-पटल पर भोजपुरी के स्थापित करे उनकर प्रयास एक दिन जरूर रंग ले आई. साथ ही साथ हम Bihari Website के Administrator श्रीमती ज्योति अंजनी झा (जे कि Boston, USA में कार्यरत बाड़ी) के भी शुक्रगुजार बानी, जे हमरा के पसन्द कइली आ अपना साइट पर आमन्त्रित कइली. आज हमरा गीत-गजल पर USA, जर्मनी, जापान, मारीशस, फिजी, गुयाना, टोक्यो, सुरीनाम आ विश्व भर में फइलल भोजपुरियन के प्रतिक्रिया आ रहल बा.हम साँचहूँ में भाव विभोर बानी.

आज हमार कलम फेर सक्रिय हो उठल बा. हम फेर कुछ ना कुछ लिखे लागल बानी. अइसना में अपना गुरुद्वय आचार्य कपिल आ कविवर जगन्नाथ जी के बहुत याद आ रहल बा. 'कठिन से कठिन परिस्थिति में भी रचनाशीलता आपन राह ढूंढ़ लेले. एह से एह विषय में चिन्ता करे के जरूरत नइखे. तू अकेले नइखऽ. भगवान हमेशा साथे रहेलें. हमनी के आशीर्वाद तहरा साथे बा. तू जीवन के हरेक क्षेत्र में सफल होखबऽ.' एही आशीर्वचन से हमार विदाई भइल रहे इण्डिया से.

आज हम आपन गजल-संग्रह मन से आ सरधा से अपना एह गुरुद्वय के समर्पित कर रहल बानी. हमरा एह संग्रह के प्रकाशन के सारा श्रेय - श्रीगणेश से पूर्णाहुति तक के सारा श्रेय - भोजपुरी साहित्य के एही दूनो महान कवि के जात बा.

एह सब के बावजूद बहुत संकोच हो रहल बा. गजल जइसन छान्दिक अनुशासन के माँग करेवाली आ नजाकत से भरल विधा में डुबकी लगावल हमरा जइसन बेतैराक खातिर बड़ा कठिन काम बा. .....अपने सभे के पीठ ठोकला आ तारीफ कइला से उत्साहित होके हिम्मत कर रहल बानी. ...अउर ... आज आपन पहिला प्रयास अपने के सोझा रख रहल बानी, इहे सोच के कि एह दू-ढाई बरस के अध्ययन के बाद (सन् ई. २००० से २००२) 'तस्वीर जिन्दगी के' के रूप में एगो गजल के विद्यार्थी के परीक्षा हो रहल बा. रउरा सभे परीक्षक बानी आ हम परीक्षार्थी.

अब पास करीं भा फेल.

हमरा पास ना तऽ जिनिगी के पोढ़ अनुभव बा, ना दूरदर्शिता आ ना ही निर्तर अभ्यास के फुर्सत. बस चिचरी पारत-पारत कुछ लिखा गइल बा. रियाज करत-करत कुछ सुर सध गइल बा. बल्कि साँच कहीं तऽ जब-जब दुख-तकलीफ या हँसी-खुशी गुनगुनाहट के रास्ता से बाहर निकलल बा, त ऊ गीत बन गइल बा. हमार अधिकांश गजल अइसने असामान्य परिस्थिति के उपज हईं सन. एह उपज के एको गो शेर यदि रउरा मरम के छूवे, मन के उद्वेगे, आ साँस में गूँजे त हमरा रचनाकार के बहुत खुशी होई. बड़ा सकून मिली. खामी भी बताएब त नया दिशा मिली, एह से एकर भी स्वागत रही, इंतजार रही.

ओह खामी के दूर क के हम अउर बुलन्द-संग्रह देबे के प्रयास करब. आजकल पता ना काहे हमार मन पहिले से ज्यादा गुलाबी आ चटखार गजलन के रचना करे में सक्रिय हो गइल बा. पता ना, ई हमरा जर्मन फ्रेण्ड तन्या केप्के के लगातार आ रहल भाव-भरल मेल के प्रभाव हऽ, या कि विश्व के सबसे बड़ा मीठ पानी के झील (विक्टोरिया झील) में झिझरी खेलला के असर, या कि बिआह के डेट खातिर अंगुरी पर दिन गिनत साथी के इण्डिया से लगातार आ रहल प्रेम-पत्र के जादू, या कि साथ में कार्यरत मराठी मित्र आ रूम मेट सुनील आनन्दमाली के पियानो से निकलत तरह-तरह के धुन पर आपन सुर साधे के प्रयास. ..... उम्मीद बा अगिला संग्रह ज्यादा र्गीन आ जीवंत होई.

फिलहाल एह संग्रह के प्रकाशन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जेकर भी सहयोग मिलल बा, हम सबका प्रति हार्दिक आभार पव्यक्त करत बानीं. खास क के भोजपुरी-हिन्दी के ओह पत्र-पत्रिकन के प्रति, आकाशवाणी, दूरदर्शन आ काव्य-मंच के प्रति जे हमरा के पाठक, श्रोता भा दर्शक से जोड़लस.

'कविता' के अंक-८ में खास कवि बना के आ सन् ई. २००३ में प्रकाशित गजल-संग्रह 'समय के राग' में भोजपुरी के स्वनामधन्य १६ गो गजलकार का साथे यानी कि सेव, संतरा, मोसम्मी आ आम, अंगूर, लीची से भरल बाग में एह रेड़ी के पेड़ के भी शामिल कर के कविवर जगन्नाथ जी हमार मन आ मान दूणो बढ़ा देले बानी. हमरा गजल के उछाले में 'कविता' के बाद 'भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका'(पाण्डेय कपिल), पाती (डा.अशोक द्विवेदी), पनघट (जवाहर लाल 'बेकस'), महाभोजपुर (विनोद देव), भोजपुरिया संसार आ पूर्वांकुर (डा. रमाशंकर श्रीवास्तव), भोजपुरी लोक (डा. राजेश्वरी शाण्डिल्य), खोईंछा (डा. दिनेश प्रसाद शर्मा), रैन बसेरा (अहमदाबाद), आनन्द डाइजेस्ट आ दैनिक आज, पटना आदि के प्रमुख हाथ रहल बा. हम एह सब पत्र-पत्रिकन के फले-फूले आ मोटाये-गोटाये के कामना करत बानीं.

भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ब्रजकिशोर, डा. शंभुशरण, श्री बरमेश्वर सिंह, आचार्य ऽिश्वनाथ सिंह, डा. गजाधर सिंह, श्री कन्हैया प्रसाद सिंह, निर्भीक जी, पराग जी, श्री कृष्णानन्द कृष्ण, प्रो. हरिकिशोर पाण्डेय, दक्ष निरंजन शम्भु, कथाकार भास्कर जी, सत्यनारायण सिंह, कवियत्री सुभद्रा वीरेन्द्र, भगवती प्रसाद द्विवेदी, हास्य कवि विचित्र जी, पत्रकार - रविरंजन सिन्हा, राकेश प्रवीर, आलोक रंजन, संजय त्रिपाठी, प्रमोद कुमार सिंह, श्रीमती अंजीता सिन्हा, श्रीमती रूबी अरुण, संजय कुमार, आ युवा सहित्यकार भाई साकेत रंजन प्रवीर, जीतेन्द्र वर्मा, जयकांत सिंह 'जय' आ अंबदत्त हुंजन आदि विद्वान साहित्यकार से जफन स्नेह, सहयोग आ प्रोत्साहन मिलल बा,ओकर एगो अलगे महत्व बा.

हम बहुत-बुत आभारी बानी आदरणीय कविद्वय श्री सत्यनारायण जी आ श्री माहेश्वर तिवारी जी के, जे एह संग्रह के भूमिका लिख के एकर मान बढ़ा देले बा.

अब हमरा अपना गजलन के बारे में कुछ नइखे कहे के. अपना दही के खट्टा के कहेला? .....असली स्वाद त रउरा बताएब. हम त बस अतने निहोरा करब कि अपने खाली छाल्ही मत खाएब .....खँखोरी ले जाएब ....... तब असली स्वाद मिली.

हमरा बेसब्री से इन्तजार रही अपने सभे के स्वाद के, बेशकीमती टिप्पणी के, स्पष्ट प्रतिक्रिया के आ बेबाक समालोचना के.

बस, बहुत हो गइल. ......अब हम आपन बकबक अपना चंद शेर के साथ बंद कर रहल बानी -

हिन्दू मुस्लिम ना, ईसाई ना सिक्ख ए भाई
अपना औलाद के इन्सान बनावल जाये

जेमें भगवान, खुदा, गॉड सभे साथ रहे
एह तरह से एगो देवास बनावल जाये

लाख रस्ता हो कठिन, लाख मंजिल दूर हो
आस के फूल ही अँखियन में उगावल जाये

आम मउरल बा, जिया गंध से पागल बाटे
ए सखी, ए सखी, 'भावुक' के बोलावल जाय

- मनोज भावुक

१४ नवम्बर २००३
कापाला, युगाण्डा
(पूर्वी अफ्रिका)


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