बड़ा कठिन बा जमाना के संगे चलल

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमा नंद के दुअरा पर सबेरहीं पहुंचले रामचेला. बाबा मालगोरू के नादे पर बान्ह के जब फुरसताह भइले तऽ रामचेला के लगे आ के बइठले. रामचेला पूछले कि बाबा हो! ई जमाना के साथ कइसे चलल जाउ. लोगवा कहऽ ता कि जमाना के साथ चलऽ. आखिर कइसे चलीं जमाना के साथ ?

बाबा कहले, जमाना के साथ चलल बड़ा कठिन काम हऽ. सड़कन पर जाम जे देखऽ तारऽ उहो जमाना के संगे चले के कोशिश हऽ. शरद पवार जी जे कहले कि भले अनाज गोदामन में सरि जाई लेकिन गरीबन में मुफ्त ना बंटाई. हां ई हऽ जमाना के संगे चले के कोशिश. तूं तऽ जानते बाड़ऽ रामचेला कि जमाना अइसन खराब आ गइल बा कि कवनो चीज मुफ्त नइखे मिलत. ऊ तऽ सरकार आ कोर्ट मिल के कानून बना के आ फैसला दे कवनो- कवनो चीज मुफ्त देवे के कोशिश कऽ रहल बा. जइसे पब्लिक इस्कूलन में आ बड़हन- बड़हन अस्पतालन में गरीबन खातिर कुछ सीट मुफ्त देवे के नियम बनल बाकिर नियम अपना घर में रहेला आ केहु ना देला कुछऊ गरीबन के. काहे कि जमाना बाजार के हऽ.

एगो ऊ जमाना रहे जब राजनीतिक पार्टी वोट के खातिर कई गो चीज मुफ्त देवे के वादा करे आ चुनाव जीतला पर ओकरा वादा पूरा करे के पड़ो. सरकार के मददगार अर्थशास्त्री कुढ़त रहऽ सन कि ई सब तऽ ना अच्छा अर्थशास्त्र हऽ ना अच्छा राजनीति. पहिला जमाना में गरीबन बेघरवालन के खातिर जमीन देवे के वादा कइल जाव, राशन कार्ड बनो आ दलालन के दलाली खूब चमको. राशन मिलो ना आ कार्ड ले के घूमत रहे लोग, जमीन के सपना आंखि में लिहले मरि जाउ लोग. अब तऽ रोड पर घूमलको मुफ्त नइखे. जगहि जगहि टॉल टैक्स के बोर्ड लागल बा. कहीं जाये में जेतना के पेट्रोल जरेला ओकरा से बेसी के टेक्स लाग जाला. पहिले पनशाला रहे. लोग पियासन के पानी पिया के धरम कमावे. अब तऽ पानी बोतल में जा ढुकल आ ओकरा से पइसा कमाए लागल बा लोग. अब अइसन हालत में जब कोर्ट कहलस कि अनाज सड़े देवे से अच्छा बा कि अनाज गरीबन में बांट दिहल जाउ, तऽ कृषि मंत्री कहले कि ई ना होई. जमाना मुफ्त के ना हऽ. जमाना बजार के हऽ. आ बजार के शरद पवार से बढ़िया के समुझी ? ऊ बाजार के सबसे बढिय़ा ढंग से बूझेले एहि से तऽ क्रिकेट के बेताज बादशाह हो गइले. उनका का मालूम कि सुप्रीम कोर्ट एह जमाना में पुराना जमाना वाला बात कहऽ ता. ऊ ना बुझले आ कोर्ट से डंटइले. बड़ा कठिन बा हो जमाना के संगे चलल.

अब अपने बात लऽ. लोग कहऽ ता कि तूं जमाना के साथ चलऽ. तूं चाहे हम काहे नइखीं सन चल पावत? काहे कि आज के जमाना हमनीं के संगे चले से इंकार कऽ देता.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    बाबा लस्टमा नंद आ रामचेला के बातकुचन बहुत नीमन लागल .
    जयंती पांडेय जी बहुत -बहुत धन्यवाद !
    गीतकार
    ओ.पी .अमृतांशु