अँजोरिया के संस्थापक संपादक डॉ राजेन्द्र भारती
काल्हु अचानके देखनी कि हमरा ह्वाट्सअप पर एगो नया सनेसा आइल बा. नंबर अनजान रहुवे बाकिर चेहरा सुपरिचित. अंजोरिया के संस्थापक संपादक डॉ राजेन्द्र भारती के. तुरते फोन लगवनी बिना सोचले कि अब रात हो चलल बा. कुछ देर ले घंटी बाजल त सोचनी कि सूत गइल होखब से दुबारा फोन ना लगवनी. बाकिर कुछे देर में ओने से फोन आ गइल. हम हलो हलो करत रह गइनी ना त हमार आवाज उनुका ले चहुँपत रहल ना उनुकर आवाज हमरा ले. मोबाइल सेवा प्रदाता जतना डींग हाँक लेसु बाकिर सभकर नेटवर्क कमोबेस एके जइसन होखेला. केहू के कवनो टावर से त केहू के कवनो टावर से संपर्क निकहा हो जाई बाकिर हर टावर से आ हर समय संपर्क सहिये हो जाव एकरा ना होखे के गारंटी बा. एही चलते जब हम प्रोफेशन में सक्रिय रहीं तब ले चारो कंपनियन के कनेक्शन राखत रहीं. अब त बस दूइए गो रह गइल बा – जियो आ एयरटेल के. आ दुनू के हालात अइसने बा कि के बड़ छोट कहत अपराधू !
से सनेसा लिख दिहनी कि नेटवर्क का चलते बात नइखे हो पावत से काल्हु सबेरे फोन करब. बाकिर मन बेचैन रहुवे काहे कि एक जमाना बाद भारती जी के नंबर मिलल रहल. आजु सबेरे जइसहीं नेटवर्क सही मिलल हम फोन लगा दिहनी भारती जी के. बाकिर फेरु जबाब ना मिलल. थोड़ देर बाद ओने से फोन आ गइल. ओह बेरा उहां के स्नान करत रहीं. आ जवन बातचीत उहाँ से भइल ओकरा से हमरो मन तनिका थोड़ हो गइल. हमरा पर जवन चाहे अछरंग लगा ले केहू बाकिर हम कृतघ्न ना हईं. जेही हमरा साथे कबो कुछ नीमन कइले होखे ओकरा के हम हमेशा इयाद राखिलें. बाकिर भारती जी के शिकायत कुछ अइसने रहल कि हम बिसरा दिहनी उनुका के. “नजर में सितारे जो चमके जरा बुझाने लगी आरती का दिया.” मनोज कुमार के फिलिम पूरब पश्चिम के ई लोकप्रिय गीत जइसन भाव रहल उहाँ के मन में जवन कुछ देर बाद बात में सामने आ गइल.
शुरुआती बातचीत का बाद भारती जी शिकायत कइनी कि पाती के नयका अंक में हमार जवन लेख छपल बा तवना में हम भारती जी के जिक्र अंजोरिया के संस्थापक संपादक का रुप में ना कर के बस एगो होम्योपैथिक डॉ का रुप मे क के निपटा दिहले बानी. भारती जी बतवनी कि जबसे पाती में हमार लेख छपल बा तब से उहाँ का लगे अनगिन फोन आ गइल बा हमरा लेख ले के. पहिले त खुशी मिलल कि पाती के लोकप्रियता सचहूं बा आ लोग ओहमें लिखल लेख पर गौर कइल करेला. अंजोरिया पर केहू कमेंट करे, ना करे, जबाब दे, ना देव बाकिर आपसी बातचीत में लोग कमेंट करे से हिचकिचाव ना.
हम बतवनी कि पुरनका अंजोरिया पर अबहियों उहां के संपादक का रूप में मिल जाएब. हम उहां के एगो संपादकीय के लेख के लिंको भेज दिहनी कि बता दीं सभका के, जिनका ई शिकायत रहल कि अंजोरिया भुला गइल भारती जी के. भारती जी कहनी कि केकरा केकरा के बतावत चलीं. एह पर उर्दू के एगो नज्म याद आ गइल –
रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ.
आ फिर से मुझे छोड़के जाने के लिए आ.
किस किस को सुनाऊँगा जुदाई का सबब मैं.
तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिए आ.
त सोचनी कि काहे ना एगो पूरा लेखे लिख दीं. भारती जी के शिकायतो दूर हो जाई आ हमहूं अपना मन के बात लिपिबद्ध कर जाएब. अंजोरिया के प्रकाशन करत घरी अतना त अनुभव होइए गइल बा कि साहित्यकार बहुते संवेदनशील होलें. ओह लोग से बहुते सम्हार के बात करे के पड़ेला. एगो बड़का साहित्यकार एहसे अलगा हो गइलन कि हम उनुका के ‘कि’ आ ‘की’ के फरक बतावे के जुर्रत कर लिहनी, एगो साहित्यकार एहले बिलग हो गइलन कि हम जिद्द काहे ठनले बानी कि भोजपुरी में ‘भी’ आ ‘ही’ के प्रयोग ना होखे के चाहीं. उहां के कहनी कि अइसन होइए ना सके. बहुते मौका आवेला जब ‘भी’ भा ‘ही’ के प्रयोग कइला बिना काम ना चल पावे. केहू के ई शिकायत हो जाला कि हम उनुका लेख के मथैला काहे बदल दिहनी भा उनुका लिखलका पर आपन कलम चलावे के जुर्रत कइसे कर बइठनी.
अब आखिर में फेरु संस्थापक संपादक डॉ राजेन्द्र भारती जी के बात पर लवटत बानी. अंजोरिया के शुुरुआत में उहें का संपादक रहनी आ उनही से हमरा दोसरा लिखनिहारन के लिखलका भेंटात रहल अंजोरिया पर प्रकाशित करेला. आ हम हमेशा जबहियों मौका मिलल बा भारती के जिक्र कइला बिना नइखीं रहल. आजुओ पुरनका अंजोरिया पर उहाँ के मौजूदगी मिल जाई. भारती जी के शिकायत रहल कि जब से हम पाती का पाला में चल गइनी तब से हम भुला दिहनी भारती जी के. आ ई बाति हमरा करेजा में धँस गइल. आजु ले केहू हमरा पर ई अछरंग ना लगा सकल कि हम केहू के पाला में बानी. अगर अइसनका रहीत त भोजपुरी संस्था आ सम्मेलनन का सुभाव से हमरो कई गो सम्मान आ पुरस्कार मिल गइल रहीत. हम त ना तीन में ना तेरह में. ऐ छूंछा तोके के पूछा ! आ एहीसे एह लेख का माध्यम से हम एक बेर फेरू रेघरिया दीहल चाहत बानी कि हम ना त एने के हईं ना ओने के. ना त दलित साहित्यकारन के जमात के ना सवर्ण साहित्यकारन के जमात के, ना बाबाजी के ग्रुप के ना बाबू साहब का ग्रुप के, ना श्रीवास्तव ग्रुप के ना पिछड़ा ग्रुप के. हम त कबीर के ओह दोहा के मानेनी कि –
कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी पूछे खैर.
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर.
उमेद करब कि रउरा सभे अंजोरिया के भोजपुरी सेवा खातिर जानब, ना कि कवनो ग्रुप से जुड़ाव का चलते. हमेशा का तरह अंजोरिया पर हर लिखनिहार के स्वागत बा बिना एह भेदभाव कि ऊ कवना ग्रुप के हवे भा कवनो ग्रुप के हवे कि ना. भारती जी शायद ई बात कह दिहनी, बाकी लोग मनही मन राखत होखी ना अंजोरिया के आजु ई हालात ना रहीत कि बाइस बरीस से प्रकाशन में रहला का बावजूद एहिजा आवे वाला पाठक-पाठिकन के भीड़ मौजूद ना मिले, उहो लिखनिहार लोग आपन लेखन ना भेजे जिनकर लिखल पहिलहूं छपत आइल बा. रहल बात भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका पाती से अपना जुड़ाव का बारे में त पाती से हमरा लगातार सामग्री मिलत आइल बा बाकी पाठकन से साझा करत रहे खातिर. आ हमरा लगे त भारती जी के नयका नंबर ना रहुवे बाकिर भारती जी का डायरी में त हमार नंबर हमेशा से मौजूद रहुवे तबे नू ओह डायरी से हमार नंबर निकाल के सनेसा पठा दिहनी.
भारती जी से एक बेर फेरू क्षमायाचना करब कि एह लेख से उहां के कवनो ठेस लागल होखे त माफ करब. अंजोरिया जब ले मौजूद रही, तबले एकरा संस्थापक संपादक का रुप में उनहीं के जिक्र होखल करी. मोदी जी चाहे जतना मशहूर हो जासु भारत के पहिलका प्रधानमंत्री हमेशा जवाहरे लाल कहहिहें.
भारती जी के एगो प्रशंसक गरदा उड़ा दिहले बाड़न फेसबुक पर. बाकिर अतनो ध्यान ना रख सकलन कि वेबसाइट के नाम सही से लिख सकसु. उनुका एह पोस्ट पर बहुते लोग के प्रतिक्रिया आइल बा. सभकर प्रतिक्रिया एहिजा दीहल संभव नइखे. रउरा एह लिंक पर जा के देख पढ़ सकीलें –
https://www.facebook.com/story.php?story_fbid=9168042346634031&id=100002850697608&rdid=u2ODs0A8fhsgJuye
एगो सवाल –
भारती जी संपादक रहलन आ ओह समय बहुते लिखनिहार के लेखन से अंजोरिया के समृद्ध कइलन एहसे इंकार नइखे. अइसन नइखे कि भारती जी के नाम हम हटा दिहले बानी. आजुओ उनुकर लिखल संपादकीय पुरनका अंजोरिया पर आ एकाध गो नयको संस्करण पर मिल जाई.
सुनील जी के पोस्ट के एगो हिस्सा एहिजा उद्धृत करत बानी –
“डॉ ओ पी सिंह सर का आलेख पढ़ने के बाद मैं तुरंत भारती सर के पास गया और अंजोरिया के 2003, 2004 के कुछ शुरुआती अंक खोजकर देखा तो पाया कि फोटो सहित भारती सर का संपादक के तौर पर नाम है और उन्होंने संपादकीय भी लिखा है ।
चर्चा में उन्होंने बताया था कि कैसे इस वेबसाइट को शुरू करने में शुरुआती परेशानियों का सामना करना पड़ा था । देश में इंटरनेट क्रांति का वह शुरुआती दौर था । जाहिर सी बात है, सब कुछ इतना आसान नहीं रहा होगा ।
अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि डॉ ओ पी सर ने अपने लेख में सब कुछ लिखा मगर भारती सर के संपादक होने की बात क्यों नहीं लिखी । भूलवश छूट गया हो, ऐसा मैं नहीं मानता । निःसंदेह किसी स्तर पर गलती हुई है । क्योंकि पत्रिका छोड़िए अंजोरिया की वेबसाइट पर भी संस्थापक, संपादक के तौर पर डॉ राजेंद्र भारती सर का नाम नहीं है । ”
सुनील जी ने भारती जी के संंपादकीयन के जिक्रो कइले बानी आ एक तरह से सकार लिहले बानी कि आजु ले भारती जी के नाम अंजोरिया पर मौजूद बा. बाकिर सुनील जी के अंजोरिया वेबसाइट के नाम मालूम होखो तब नू खोजतन. लिखले बाड़न कि –
डॉक्टर साहब ने अपने लेख में भोजपुरी की पहली वेबसाइट अंजोरिया डॉट कॉम ( anjoriya.com ) का जिक्र किया है । डॉक्टर साहब लिखते है कि कैसे 2003 से लेकर अब तक इस वेबसाइट को लेकर वे लगातार काम कर रहे है ।
जबकि अंजोरिया डॉटकॉम के पता anjoria.com हवे. अब anjoriya.com वाला कहे कि उनुका वेबसाइट के गलत जिक्र काहे भइल त गलत ना कहाई. त गलती त होईये सकेला. एक बेर anjoria.com पर आ के खोज लिहले रहतन त अतना कुछ लिखे के जरुरत ना रहीत.
मान लीं कि एगो आदमी अपना खरचा से अपना जमीन पर एगो मकान बनवलसि आ ओकर साजसज्जा के काम खातिर एगो इंटिरियर डेकोरेटर राख लिहलसि. बाद में ओकर रंगाई पोताई साज सज्जा वगैरह सभ में पुरनका डेकोरेटर के कवनो योगदान ना रहल त मकान मालिक के का तबहियों मकान पर पट्टा लटकवले राखे के चाहीं कि फलनवा एकर संस्थापक डेकोरेटर रहलन.
भारती जी के योगदान बस अतने रहल कि ऊ अनेके लिखनिहार के रचना अंजोरिया पर प्रकाशित करे ला उपलब्ध करा दिहलन. बाद में जब अउरिओ जगह से रचना के उपलब्धता होखे लागल त भारती जी के योगदान के जरुरतो ना रहल. बाकिर तबहियों एह बात से हम कबो इंकार नइखीं कइले कि अंजोरिया के संस्थापक संपादक राजेन्द्र भारती रहलन. पाती में छपल ओह लेख में ध्यान दिहला बिना उनुका नाम का साथे संस्थापक सदस्य के नाम दे पवनी त अतना बवाल !
चलीं कम से कम एही बहाने अंजोरिया के चरचा त भइल. धन्यवाद सुनील जी रउरा प्रयास खातिर. बहुते साधुवाद रउरा के. आशा रही कि आगहूं अंजोरिया पर आपन कृपादृष्टि बनवले राखब आ हमरा गलतियन के गरदा उड़ावत रहब. बहुत बहुत आभार सुनील जी.
– संपादक, अंजोरिया डॉटकॉम.
(पुनश्च : वर्तमान संपादक लिखे के चाहत रहे का ?)