आनन्द सन्धिदूत – जीवन परिचय

आनन्द सन्धिदूत (आनन्द कुमार श्रीवास्तव)

जन्म – 27 अक्टूबर 1949 , अवसान – 27 मई 2023

गाँव – गहमर जिला – गाजीपुर ( उ0 प्र0)

बाद में स्थायी निवास आ कर्म-क्षेत्र — मिर्जापुर ( उ0 प्र0 )

माता – श्रीमती सुदामा देवी,
पिता – गहमर निवासी स्व0प्रसिद्ध नारायण लाल कलकत्ता में मुख्य लाइब्रेरियन पद पर नौकरी करत रहलन. साहित्यिक रुझान आ संस्कार उनुका से मिलल. पढ़ाई लिखाई का बाद, आनन्द के नोकरी बैंकिंग सेवा वाला रहे, जवन उनुका भावुक मन वाला
साहित्यिक रुझान का बिपरीत रहे, बाकि नोकरी जीवन निबाह के जरूरत रहे. ऊ इलाहाबाद बैंक मिर्जापुर में सेवा करत सन् 2011 में रिटायर भइलन. मिर्जापुर में, वासलीगंज में उनकर निजी आवास रहल, जहाँ सन् 2023 में 27 मई 2023 का दिने उनकर देहावसान हो गइल.

प्रकाशित साहित्य —

कृति — एक कड़ी गीत के , शक्ति गीत (लघु पुस्तिका) , बजरंग निहोरा (लघु पुस्तिका) , सतमेझरा ( निबन्ध, कहानी, संस्मरण के संकलन.
अनुवाद — रोशनी के द्वीप , सन्देशरासक, कुरल कवितावली.
सम्पादन — त्रिविधा ( मिर्जापुर के रचनाकारन के संकलन), भोजपुरी के अस्मिता चिन्तन, श्रीकृष्ण सुधा.
अन्य — भोजपुरी के मुख्य पत्र-पत्रिकन ( उरेह , सम्मेलन पत्रिका, पाती , समकालीन भोज0साहित्य आदि में बहुते रचना प्रकाशित.

पुरस्कार सम्मान—

रामनगीना राय पुरस्कार (अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन), ‘‘पाती’’ अक्षर सम्मान (बलिया), विद्याश्री न्यास वाराणसी से ‘‘लोक कवि’’ सम्मान, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान से भिखारी ठाकुर सर्जना पुरस्कार

सम्मति…

आनन्द सन्धिदूत भोजपुरी के समसामयिक गीत-लेखन के एगो महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के नाम हवे. मानवीय संवेदना से लबालब, इनका
गीतन में जिनिगी के सुख-दुख आ राग-विराग के विभिन्न भाव-मुद्रा, जवना जीयत-जागत आ चलत-फिरत तस्वीरन में उरेहल गइल बा, ऊ
बहुते मर्मस्पर्शी बा. हाव से भरल एह तस्वीरन में साँस लेत जिनिगी के गतिमयता आ उसाँस भरल जिनिगी के ऊष्मा बा. गहन
अनुभूतियन में मातल इनका रचनन में, रह-रह के भक् से बरे वाला लुत्ती जइसन उक्तियन अँजोर इनका कवि-प्रतिभा के उजियार
कइले बा.
आनन्द सन्धिदूत के रचना संसार आ रचना -शैली इनकर आपन बा. इनका शब्दन का प्रयोग में, अर्थवत्ता में, उक्तियन में, छन्दन में, गीतन का लय विधान में कुछ अइसन बा,जवन इनका के, अपना सहधर्मा लोगन से अलग करत बा.

– पाण्डेय कपिल
अध्यक्ष , भोजपुरी संस्थान ,08 फरवरी 1992

‘एक कड़ी गीत के’ काव्य संग्रह मैंने पढ़ा और मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि इसका लय-विधान और उक्ति -विधान ठेठ भोजपुरी है और इसीलिए इसमें सहज सोंधापन और ऊष्मा है.

– डा0 विद्यानिवास मिश्र

आनन्द सन्धिदूत कवि-प्रतिभा से संपन्न, निपुन रचनाधर्मी रहलन. उनका लेखन में संबेदनशीलता, रचनाशील भावप्रवणता त रहबे
कइल, ओमें एगो पोढ़ चिन्तन-दृष्टियो समाहित रहे. एकर उदाहरन आ प्रमाण उनका निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र आ आलोचनात्मक
लेखन में मिलेला. ऊ अपना गाँव गहमर (गाजीपुर) पर लिखसु, चाहे जनपद मिर्जापुर पर इतिहास, परम्परा आ परिवेश का उरेह
में गजब के कथा-सरसता आ ताजगी मिली. उनका लेखन में लोक के जीयत -जागत -उँघात संसार बा. एकरा साथे-साथ संस्कृति
आ परम्परा के संस्कार वाली बौद्धिक चेतना. अपना समय-सन्दर्भ आ भाषा – समाज पर पकड़ राखे वाला एह मनीषी कवि के आपन
मन- मिजाज आ कहन- शैली बा , जेवन उनके अपना समय के कवि – लेखकन से अलग आ विशिष्ट बना देले बा.
– डा0 अशोक द्विवेदी
सम्पादक ‘पाती’

1 Comment

  1. Anonymous

    अंजोरिया के हम हृदय से आभारी बानी की भोजपुरी के लगातार समृद्ध करतिया। आ हमनी के मातृ भासा के जियवले बिया।आनंद संधि दूत जी का बारे में लिखल देखि के मन हरियर हो गइल। हमार बड़ा मित्र रहलेहा आ गुरुभाइयों हवन।
    आजु का जमाना में”भलाई” भइल की ना पहिले त ई चिन्हल बड़का बात बा।
    त ओकर उपाइ बा जे “आनी से बानी भाखा से पहचानी ।” जब अदिमि जानी जे किछु दोसरा खातिर कइनी तबे नु अनन के इस्थिति में आई ना त ,का होइ जे “आन्हर आँख बबुर पर झट्हा।” आ अपने घाही हो जाई अनन के अ ओ ना मिली।

    एक जगहिं चिरई आ मधुमाखी के समबाद पढ़नी मन हरियर क दिहलस।अदिमि के अतिर्पित मन आ हहरत चोरावे का आदति मधुमाखियो जानतिया।बाकिर हड़ोरत मन से सहद बनावे के कला पर सबुर कइके कुकुर्बुझाव में ना परि के इनसान का बारे में विचार बनवलस जे “चोरवा के मन बसे केंकरी के खेत में।”

    Reply

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *