– संतोष कुमार पटेल
जरल रोटी
गरहन लागल चान
बाकिर आस मरल ना
कहियो त होई बिहान.
राहू लागले ना रही
हटबे करी
आ भूख के रात
कटबे करी.
एही उमेद पर
जिनिगी चलले.
करेजा वाला जिएला
डरपोक हाथ मलेला
ओठ झुराला
फाटेला
जेठ के खेत नियर
पाहून के रहिया
देखत
निहारत
दिन कटेला.
तरी मिली
कहियो ना कहियो
हरिहरी आई
मन रसगर बनाई
कटगर भइल मनई के हरखाई
तबले सबुर रखल
जरूरी ह
ए उमेद में
कि रात हरमेस ना रही
भोर अइबे करी.
सुतल मन के
जगइबे करी
अन्हरिया के
दूदुरइबे करी
तब लगी कि
हियावा पर
गरहन नइखे
बस, एही भाव में
जियत रहीं आ
जिनिगी के लुगरी
उमेद के डोरी से सियत रहीं.
KAVITA BAHUT HI ACHCHHA BA .