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कुछ कविता

– दिलीप पाण्डेय

DilipPandey
(1)
आसरा के बादल

बरखे वाला बादल सगरी छाइल
खिल गइल चेहरा मुरझाइल
अब ना कहीं सुखार होई
घर घर में बहार होई
बंद जुबानो अब बोली
अभागनो के उठी डोली
वृद्ध नयन का बावे आस
संकट अब ना आई पास
झंझट से चेहरा रहे झुराइल
बरखे वाला बादल सगरी छाइल.
पत्थरो पर उगी अब घास
केहू केहू के ना रही दास
समरसता बुझाता अब आई
लहतांगर व्यवस्था बदल जाई
अब ना होई मूँह देखउअल
ना रही अबूझ कौनो बुझउअल
आसरा के दिअरी फेरू जगमगाई
बरखे वाला घाटा सगरी छाइल

(2)

लचकेला बाँस जहां घरे-घर गवाय जतसारी
गेहूं धान उपजे जहाँ बछडु मारे हुथकारी
हउआ जहां के रोग भगावे, जरे जहां घोनसारी
गउआ के मत भुलाईं, अरजी बा हमारी.

(3)
का होई?
मिठाई के मिठास ना रही त का होई?
गुल में खुशबू ना रही त का होई?
धरती पर घास ना रही त का होई?
जिनगी में आस ना रही त का होई?
पढ़े पढ़ावे के पिआस ना रही त का होई?
दया गुरु के पास ना रही त का होई?
ज्ञान आ सम्मान ना रही त का होई?
रुक जाई मानवता के विकास,
अगर एह पर विचार ना होई.

(4)
पछेआ लेलकारऽता, गेहूँ ललिआइल,
चदरा ओढ़ाता रजाई धराईल.
मन करे बबुआ के देखे के सुरतिया,
आ जईती हम जदि मिलीत संघतिया.
आव गांवे छोड़ऽ परदेश के कमाई,
खेती खूब करीह जा मिल दुनु भाई.
छान छप्पर देहेब हम छवाई,
घरे आ बबुआ खाई दूध मलाई.
अब हम ना मारेब कबहू ठोना,
तूही हमार सब बारऽ चांदी आ सोना.

(5)
रोग आ रोगी दूनू के बचावहूं क सिद्धांत ठिके बा,
आग खुद लगा के बुतावहूं के सिद्धांत ठिके बा,
वादा के डेहरी भभका के ना पूरावहूं के सिद्धांत ठिके बा,
झलक देखा के ललक बढ़ावहूं के सिद्धांत ठिके बा।


पूर्वोत्तर के भोजपुरिया भाई लोग के नमस्कार.

हमनी त संसार के हर कोना में फइलल बानी लेकिन आसाम बंगाल मे अलग रूप में निवास करेनी जा. बंगाल से नाता के विशेष कारण बा. काहे कि बिहार बंगाल के हिस्सा रहे. भोजपुरिया क्षेत्र में उद्योग धंधा के अभाव हमनी के परदेस जाए खातिर मजबूर क दिहलस. रोजीरोटी के तलाश में हमनी के पूर्वज आसाम आइल. इहाँ लोग नगर बस्ती में छोट मोट बर-व्यपार क के जीवन गुजारे लागल. समय बितला पर ठिकेदारी लमहर व्यापार वगैरह करे लागल लोग, लेकिन साल 2003 के नवम्बर महीना सभका के झकझोर के राख दिहलस. अइसे त आतंकवादियन के नजर पहिलहीं से खराब रहे लेकिन रेलवे में भर्ती लेके भइल झगरा का आर में सीधा साधा गांव के लोग के आगे कइके उ अइसन खुन खराबा कइलें सँ कि दूधमूहाँ बच्चो सबके ना बकसले. एह तरह के अधिकतर घटना तिनसुकिया आ डिब्रूगढ़ जिला में भइल. कई गो राहत शिविर बन गइल. जहां तहाँ से लोग के प्रशासन आ भलमानुष असमिया भाई लोग का मदद से ले आवे के काम शुरु हो गइल. साँझ होते मन घबराए लागे, करेजा काँपे लागे. अइसन अव्यवस्था हो गइल रहे कि कटले खून ना. कताना लोग के जीवन भर के कमाई लूटा गइल, कतना लोग अनाथ हो गइल. समय हर घाव के भर देबेला. सब कुछ धीरे धीरे सामान्य हो गइल लेकिन भोजपुरिया लोग पर भइल अत्याचार के वाजिब कारण आज ले जवाब खोजत बा.
– दिलीप कुमार पाण्डेय


संपर्क :
दिलीप कुमार पाण्डेय,
सैखोवाघाट,
तिनसुकिया, (असम).

1 Comment

  1. मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य

    बहुत बढ़िया कबिता बाड़ी सऽ। लचकेला बाँस जहां घरे-घर गवाय जतसारी
    गेहूं धान उपजे जहाँ बछडु मारे हुथकारी
    हउआ जहां के रोग भगावे, जरे जहां घोनसारी
    गउआ के मत भुलाईं, अरजी बा हमारी.

    Reply

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