Dr.Ashok Dvivedi

– डा॰अशोक द्विवेदी

रतिया झरेले जलबुनिया
फजीरे बनि झालर, झरे
फेरु उतरले भुइयाँ किरिनिया
सरेहिया में मोती चरे !

सिहरेला तन, मन बिहरे
बेयरिया से पात हिले
रात सितिया नहाइल कलियन क,
रहि-रहि ओठ खुले
फेरू पंखुरिन अँटकल पनिया
चुवत खानी दिप्-दिप् बरे !

चह-चह चहकत/चिरइयन से
सगरो जवार जगे –
सुनि, अँगना से दुअरा ले तालन
मन के सितार बजे
अरु छउँकत बोले बछरूआ
मुंड़ेरवा पर कागा ररे !

सुति-उठि धवरेले नन्हकी
उघारे गोड़े दादी धरे
बुला एही रे नेहे हरसिंगरवा
दुअरवा पर रोजे झरे
बुची, चुनि-चुनि बीनेले फूल
आ हँसि-हँसि अँजुरी भरे !


अँजोरिया पर डा॰ अशोक द्विवेदी के दोसर रचना

3 Comments

  1. amritanshuom

    बहुत बढ़िया लागल .

Submit a Comment

🤖 अंजोरिया में ChatGPT के सहयोग

अंजोरिया पर कुछ तकनीकी, लेखन आ सुझाव में ChatGPT के मदद लिहल गइल बा – ई OpenAI के एगो उन्नत भाषा मॉडल ह, जवन विचार, अनुवाद, लेख-संरचना आ रचनात्मकता में मददगार साबित भइल बा।

🌐 ChatGPT से खुद बातचीत करीं – आ देखीं ई कइसे रउरो रचना में मदद कर सकेला।