जाने कवन राहे अइहें

– प्रिन्स रितुराज


छन छन छनके
आहट सुन के मन गचके
जाने कवन राहे अइहें
इहे सोच के मन खटके.

आदत अइसन उनकर भइल
बिना सोचे मन तरसे
नशा केतना नशीला होला
देख के उनके अइसन सूझे.

अंग अंग के अइसन रचना
लागे फुरसत में रहले राम
तनिको हमनियो पर रहित धयान
लिहती हजार नैना हथिया.

कारी कजरा मदहोस बा कइले
चाल त बा पागल बनवले
हाथ के मेहदी के करामत सुनऽ
सुनरता प बा चार चान लगवले.

कमर कमानी पातर छितर
चिकन बा चाम हो
माछी बइठत बिछ्लत जाले
काबू में ना होला ओकर देह हो.

माई बाप के धन्यवाद करऽ
अइसन जनमवले चान हो
देख के अखिया टकटकी लगावे
छोड़ जाला देह के साथ हो.

गजब के गोराई देख के
अंग अंग हो जाला छितराय हो
बनठन के निकलेली अइसे
पगला जाले नैना हजार हो.

पायल छनके चूड़ी खनके
ओठ के लाली मंद मुस्कान
जाने कइसन किस्मत होखी ओकर
जेकर जिनगी होखी बहार.

घर गमकी मन बहकी
जइबू जेकर अगना हो
केतना के मन तरस गइल
आस बा लागल एनहू हो |


प्रिंस रितुराज दुबे
आसनसोल

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