एहसास मर गइल बा
– डॉ इकबाल
एहसास मर गइल बा, जिंदा शरीर बाटे।
धुँधला गइल बा अक्षर, खाली लकीर बाटे ।।
नफरत शबाब पर बा, बाकी हजार गम बा।
मन में मलाल बाटे, अंखियन में नीर बाटे ।।
सोना आ चानी हीरा मोती, पर जन तू अँइठऽ।
कल जे रहे बहुत कुछ, उहो फकीर बाटे ।।
सरताज कबो रहलीं, रहली हम सबसे आला ।
आला से अदना भइली, मन में ई पीर बाटे ।।
इंसान जवन बोई, उहे ऊ काल्ह काटी।
एह बात क दुनिया में लाखों नजीर बाटे ।।
“इकबाल” सब लुटाके तूँ घर जवन बनवलऽ ।
ओही म चोर घुसके, अब खात खीर बाटे ।।
(ई गजल बरीस 2006 में प्रकाशित कविता संग्रह “सुराज का भइल” से लीहल गइल बा. राधेश्याम जी एह पुस्तक के पीडीएफ हमरा के भेजनीं त हमहूं सोचनी कि काहें ना एह किताब के अंजोर क दीहल जाव आ एह किताब के अब दुनिया भर में भोजपुरी के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया डॉटकॉम पर डाल दिहनी.
वइसे अंजोरिया कबो साहित्य के भा भोजपुरी के दलित साहित्य, वामपंथी साहित्य वगैरह खाँचा में डाल के नइखे देखले. एगो लिखनिहार ना भेंटाई जे आपन रचना अंजोरिया पर अंजोर करे ला भेजले होखे आ ओकरा के एहिजा अंजोर ना कइल गइल होखे.
रउरो सभे पढ़ीं आ पढ़े से पहिले इयादो राखीं कि ई किताब बरीस 2006 में प्रकाशित भइल रहुवे बाकिर सचहूं कुछ बदलल बा का ? – संपादक)
मूल पुस्तक में कवि के परिचय दीहल गइल बा –
डॉ इकबाल,
सामाजिक कार्यकर्ता, गीतकार, रंगकर्मी.
संपर्क –
बेटाबर खुर्द, बेटाबर कलां, गाजीपुर.
“सुराज का भइल”
डॉ इकबाल, कविता संग्रह, सुराज का भइल,
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