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तबे स्वस्थ आलोचना के राहि विकसित होई

दू दिन पहिले विमल जी के पत्रिका सँझवत के जानकारी आ सामग्री मिलल. एने कई एक महीना से हम थाकल महसूसत बानी जवना चलते अब अँजोरिया भा एकरा दोसरा साईटन पर नया सामग्री नइखीं दे पावत. थाकल मन एहू चलते बा कि भोजपुरी में लंगड़ी गईया के अलगे बथान के परंपरा रहल बा. अबर बानी दुबर बानी, भाई से बरोबर बानी वाला अंदाज में हर भोजपुरिया आपन अलगे राग अलापेला. कुछ लोग का लगे समूह बा त कुछ लोग का लगे गिरोह. एह माहौल में तेरह कन्नौजिया नंबे चुल्हा वाला कहाउतो सही हो गइल बा. एगो पत्रिका सुबहित चल नइखे पावत बाकिर नया नया पत्रिका के शुरुआतो हो जात बा. कुछ दिन ले आपल जाँगर ठेठा के, आपन रुपिया गला के लोग थाक जाला आ फेर एगो भीति ढह जाले आ दोसरका भीति के शुरुआत के जगहा बनि जाले.

विमल जी से पुरान संपर्क रहल बा. एहसे आ उहो के लिलकारी परले बानी कि बिना लागो लपेट के आपन बाति कहल जाव. एहसे आपन बाति कहत बानी – बाति कहीलें खर्रा, गोली लागे भा छर्रा वाला भाव में.

विमल जी कवनो मीडिया भा मंच के संचालक के जिम्मेवारी बनेला कि ऊ एगो तरीका निर्धारित करे अपना प्रकाशन भा मंच ला. एह मामिला में अराजकतावाद के अनुमति ना होखे के चाहीं. भाषा के मानकीकरण एगो जरूरी शर्त होले आ ई संपादक के जिम्मेवारी बनेला कि ऊ एह मानकीकरण में आपन जोगदान देव. लिखनिहार पर एकर जिम्मा भा दोष ठोकल नीक ना कहाई. मानकीकरण एक दिन में ना बनी. गँवे-गँवे प्रकाशनन के लोकप्रियता बढ़ी, ओकरा के पढ़े लिखे सुने बोले वाला बढ़ीहें तबहिंयें भाषा पोढ़ होई.

अपना एह टिप्पणी का बाद परोसत बानी विमल जी के आपन संपादकीय. रउरो सभे पढ़ीं आ हो सके त बहस के आगे बढ़ाईं. –

पूरा पत्रिका पीडीएफ फाइल में दीहल जा रहल बा. ओकरो के पढ़ीं.

तबे स्वस्थ आलोचना के राहि विकसित होई

जब हम भोजपुरी साहित्य का दिशा-दशा पर आपन मंतव्य देबे बइठल बानी त बुझाते नइखी कि का लिखीं. जवनापीढ़ी का जोगदान के अबहिंऔ कवनो तुलना नइखे, ओकर एक-एक खंभो ढहत जा रहल बा. चौधरी कन्हैया प्रसाद जी, बरमेश्वर सिंह जी, पांडेय कपिल जी, प्रो. ब्रजकिशेर जी, अनिरुद्ध जी जइसन विभूति एक-एक कइके हमनी का बीय से संपूर्ण विश्राम खातिर निकलत गइल. मन डबडबाइल बा आ चिंतो में बा. इहाँ सभ के सँझवत परिवार के लोर भरल श्रद्धांजलि.

वर्तमान पीढ़ी कुछ ज्यादा व्यसत बिया बाकिर पहिले नीयन कुछ खास नइखे लउकत. अब अतना जरूर बा कि टिटकारी आ हुंकार में बढ़ोत्तरी भइला से कुछ ना कुछ जरूरे लिखा रहल बा. “नई भीति उठेले पुरानी भीति गिरेले” वाली बात शाश्वत बिया. भोजपुरी का कुछ क्षेत्रन में ई बात लउकत बिया. एगो पत्रिका बन्न त दोसर चालू होत जातारी सन. भोजपुरी खातिर नेतागिरियो सम्मान के विषय हो गइल बा, ई सुखद बा.

भोजपुरी आलोचना आ शोध का क्षेत्र में संतोषजनक काम नइखे लउकत. उमेदि कइल जाए के चाहीं कि एने कावर समर्थ लोगन के विशेष ध्यान तरूर जाई.

ज्यादा व्यस्ज रहला का कारन पत्रिका का प्रकाशन में बिलंब होत चलि गइल. अब ढेर देरी होत रहे, एहसे समहुत कइल जरूरी हो गइल रहे. केहू का रचना में कवनो प्रकार के काट-छाँट नइखे कइल गइल. अइसन एगो विशेष नीति का तहत कइल गइल बा. जब तक मानकीकरण के एगो मोटा मोटी स्थिति नइखे बनि जात तब तक संपादक मंडल तवनो तरह के परिवर्तन से पहिले सूचित कइत नीमन बूझी. टंकण का लापरवाही का चलते पर्तनी के जो कवनो भयंकर भूल लउकी त ओकरा के बिना सूचना दिहले संपादित क दीहल जाई. अस्तु, पत्रिका का कवनो रचना में जो अशुद्धि भा कमी लउके त ओकरा खातिर खुद लंखके के जिम्मेवार समुझल ताएके चाहीं.

एह अंक में ऊ सभ नइखे आ पावल जवन संपादक का योजना के अंग रहे. ऊ धीरे-धीरे आई आ दू-तीन अंक का बाद पत्रिका के बास्तविक स्वरूप सुनिश्चित हो जाई. तब तक हमार आग्रह होई कि पत्रिका के रूप सँवारे खातिर आपन बहुनूल्य सुझाव जरूर दीहल जाव.

संपादक आ लेखक लोग के मनोबलो बढ़ावल एगो बड़हन जोगदान होला साहित्य खातिर. जब केहू नोटिसे ना ली त लुत्ती अङारी कइसे बनी ? एहसे निवेदन बा कि कि रउवाँ सभ आपन टिप्पणी जरूर दीं, जवन रँउआ भोवे ओह पर आ ओह पर त जरूरे, जवन रँउआ खटके. मुँह देखउअल कइल व्यावहारिकता के एगो अंग ह. एकरा से बाँचल आसान ना होला बाकिर उत्कृष्ट साहित्य का सृजन के प्रेरणा एकरा से ना मिले. एहसे बिना लागो तपेट के बात जरूर लिखीं, तबे स्वस्थ आलोचना के राहि विकसित होई. जय भोजपुरी.

  • रामरक्षा मिश्र विमल

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