फागुनः दू गो गीत


(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से – 20वी प्रस्तुति)

– कमलेश राय

एक
अंग-अंग मिसिरी में बोर गइल
फागुन रस घेर गइल!

पतझर के पीरा के हियरा से बिसरा के
थिरकि उठल बगियन में गांछ-गांछ अगरा के
डाढि आज सगरी लरकोर भइल!

पसरल सगुन रंग खेतन-सिवानन में
भौंरा डोले लागल फूलन के आंगन में
एहबाती कलियन कऽ कोर भइल!

पुरवइया रेंग गइल मन में चोरी-चोरी
फूटि चलल अधरन से मद में मातल होरी
हिया में उछाह कऽ अंजोर भइल!

नेह कऽ नेवतले के मान भरल अँखियन में
गोरी कुछ बोल गइल छुप-छुप कनखियन में
अइसन ई मौसम बरजोर भइल!

दू

अचके उभरे गीत हिया में थिरके बिछुवा पाँव में
सुख कऽ पाती लेके आइल फागुन हमरे गाँव में!

सोना जड़ल बिहान, दुपहरी हीरा जड़ल लगे
सेनुर गूथल साँझि, रात चानी मे मढ़ल लगे
हँसि हँसि चान अंजोरिया छिरके सगरे गाँव गिराँव में!

गँवे-गँवे गदराइल मद में मातल महुआबारी
लागे आज सोहागिन पहिरि सितारन वाली साडी
थम-थम जाये पथिक, पंछी जेकरा घुंघटा के छाँव में!

कबहूँ सुरूख सगुन रंग कबहूँ सुधि के रंग रंगावे
एकसर बिंहँस- बिंहँस के मन कुछ अपने से बतियावे
बेसुध हवा चिकोटी काटे बरबस ठाँव-कुठाँव में!


पिछला कई बेर से भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के पूरा के पूरा अंक अँजोरिया पर् दिहल जात रहल बा. अबकी एह पत्रिका के जनवरी 2012 वाला अंक के सामग्री सीधे अँजोरिया पर दिहल जा रहल बा जेहसे कि अधिका से अधिका पाठक तक ई पहुँच पावे. अलग बात बा कि हर पन्ना फेर से लिखे के पड़त बा जवना चलते विलम्ब से सामग्री परोसात बा.

पाती के संपर्क सूत्र
द्वारा डा॰ अशोक द्विवेदी
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com

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