बतकुच्चन – ४९


भाषा अपना समाज के दरसावेला, ओकरा माहौल के देखावेला. एही चलते अलग अलग जगहा के लोग अलग अलग भाषा बोलेला. कई बेर भा अधिकतर एक जगहा के भाषा दोसरा जगहा के आदमी ना बुझ पावे. एक भाषा में जवन शब्द खराब भा फूहड़ मानल जाला हो सकेला कि दोसरा भाषा में ओह शब्द के मतलब कुछ दोसर आ सकारे जोग होखे. अब वइसनका शब्द के उदाहरण हम दिहल ना चाहब भलही फगुआ के माहौल बा आ भर फागुन बूढ़ देवर लगीहें का अंदाज में समाज बहुते कुछ छूट दे देला. गाँव देहात में ना रहल लोग के गाँव जवार के फगुआ चइता बहुते फूहड़ लागेला काहे कि ऊ लोग छिनरपनो बहुत सलीका से करे के आदी होला. गाँव देहात के आदमी में अतना सलीका ना होखे आ ऊ आपन बाति बहुते साफ कह देला. खैर आजु के बतकुच्चन में हम ओहु विषय के ना उठाएब. आजु त कुछ दोसरे चिंता घेरले बा. से आजु ओही पर. सबले पहिले त मैं के बात. भोजपुरी में मैं होखबे ना करे आ पंजाब दिल्ली से लवटल लोग जब मैं मैं कर के बतियावे लागेला त ठेठ भोजपुरिया कह देला का मेंमें कइले बाड़ ! भोजपुरी में मैं खातिर शब्द होला “हम” आ हिंदी के “हम” खातिर हमनी भा हमहन. अब एह हम आ ओह हम में कतना फरक बा. बाकिर एह हामहूम में देवान जी के तजियो नइखीं निकाले जात हम. हम त आजु बस जरे के बात बतियाएब. पुरनका जमाना में अन्हार में अँजोर करे खातिर मशाल, दिया, भा ढिबरी जरावत जात रहुवे. अबहियो गाँव देहात में गरीब गुरबा दिये आ ढिबरी जरा के काम चलावेलें. जेकरा लगे तनी पइसा बा से लालटेन जरावेला भा डेलाइट. अब जे ओह जमाना के डेलाइट नइखे देखले ओकरा लागी कि हम कवनो डिलाइट वाला बात बतियावत बानी. डे लाइट फिलामेंट वाला बड़का बत्ती के कहल जात रहुवे जवना के अँजोर रातो में डे वाला लाइट करा देत रहुवे. अब त जेनरेटर के पसार हो गइल बा हर जगहा आ पेट्रोमेक्स भा डेलाइट के पूछत बा. खैर बाति होत रहुवे बत्ती जरावे के आ ई आदत अतना गहिर ले मन में बइठल बा कि आजु बिजलिओ का जमाना में हमनी का बत्ती भा बल्ब जराइले ओकरा के चालू भा आन ना करीं. हँ पंखा एसी मोटर जरूरे चालू कर लिहल दिहल जाला. अब बिजली के बल्ब भा ट्यूबलाइट के चालू करे के का कहल सबले ठीक होखी, एहपर सोचला के जरुरत बा. पंखा एसी मोटर के चालू करे में कवनो आपत्ति नइखे काहे कि ओह में चले वाला यंत्र होला. बाकिर बल्ब ? ऊ त ना जरावल जाला ना चलावल जाला, त ओकरा खातिर का कहल जाव ? कहे वाला कह सकेला कि बल्बो में फिलामेंट जरेला. बाकिर ऊ बिरहन त ह ना कि कहे कि लकड़ी जर कोयला भई कोयला जर भई राख, मैं बिरहन ऐसी जली कि कोयला भई न राख. आ थोड़ देर ला एकरा के मानियो लिहल जाव त ट्यूब लाइट में का जरेला ? ओहमें त कवनो फिलामेंट ना होखे. बात ओरात नइखे आ जगहा खतम हो गइल. से एह हफ्ता रउरो सोचीं हमहुं सोची. बाद में देखल जाई कि का होखो.

7 Comments

  1. चंदन कुमार मिश्र

    तथाकथित उर्दू में हम बहुत सम्मान का साथे कहल जाला। फिलिमो में संवाद चाहे डायलक ( डायलाग) में हम बरा गंभीर बा। बहुते प्रेम में चाहे बहुते खिसिअइला पर हम बहुत जगे देखे- सुने के मिलल बा, मैं ना…

    हँ, बौल जरावल जाव कि चालू कइल जाय… … वाला बात सोसे लाएक बाऽ।

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  2. रामरक्षा मिश्र विमल

    बहुत नीमन विषय छेड़ले बानी. भोजपुरी के उत्पत्ति अधिकतर विद्वान मागधी अपभ्रंश से मानेले.एहसे ईहो जानल जरूरी बा कि इनकर सगी आ चचेरी बहिन लोग कइसे बतियावेलिन.भोजपुरी के “हम” का जगहा बंगला मे “आमी”,उड़िया में “मू” आ असमिया में “मोइ” के प्रयोग होला. मगही आ मैथिली में भोजपुरिये नियन “हम” के प्रयोग होला. कुछ विद्वान भोजपुरी के उत्पत्ति अर्द्धमागधी अपभ्रंश से मानेले. एह आधार पर अवधी में भी मैं खातिर “हम” के प्रयोग बतावऽता कि एगो व्यापक क्षेत्र में एकर प्रयोग बा. रहल उत्पत्ति के बात त “मैं” के “मया+एन” से विकास मानल जाला, जवना से बाद में “में” भोजपुरी के सबसे पुरान “मैं” माने उत्तम पुरुष के एकवचन के कर्ता रूप आ (“मो, मो+र”) संबंध रूप बनल. शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित खड़ी बोली में उत्तम पुरुष के एकवचन के कर्ता रूप में “मैं” के प्रयोग मिलेला. हमरा त बुझाला कि जो ढेर पीछे ना जाइल जाव त लौकिक संस्कृत के “अहम्” शब्द से एकर विकास देखल बढ़िया बीच के रास्ता होई. भोजपुरी के “हम” के बहुवचन रूप हटे “हमनी, हमनीके,हमनीका” आ मैथिली में “हमरा लोकनि” जवन नया प्रयोग में मगही नियन “हम सभ” का रूप में भी लउक रहल बा.
    जहाँ तक बल्ब आदि के चालू करेके क्रिया के समस्या बा हमार ईहे सुझाव बा कि जो कवनो असुविधा ना होखे त जवन शब्द जवना भाषा के लिहल जाय ओकरे क्रियापद भी ले लिहल जाय (माने “आन कइल” क्रिया के प्रयोग) त कवनो तरह के विशृंखलता से बचल जा सकऽता.
    – रामरक्षा मिश्र विमल

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    • OP_Singh

      विमल जी,

      राउर प्रतिक्रिया पढ़ के मन खुश हो गइल. भोजपुरी में अइसने चरचा चले के चाहीं.

      बल्ब जरावे का जगहा आन करे के राउर सलाह माने जोग बा. काहे कि गुड़ खाय गुलगुला से परहेज करे नइखे चले वाला.

      सादर,
      राउर,
      ओम

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  3. amritanshuom

    संपादक जी ,
    नमस्कार !हम ओ.पी. अमृतांशु .रउरा से जानकारी लेवे के चाहत बानी की राउर नया ई-मेल पता -:editor-at-anjoria.com बा .त का ई सही बा .
    काहे से कि ई ई-मेल पे कवनो मैसेज नइखे जात.
    धन्यवाद !
    ओ.पी.अमृतांशु

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  4. चंदन कुमार मिश्र

    काल्हे एके बेर ई दिमाग में आइल कि बौल खातिर
    ‘बौल बारल’ आ ‘बौल बुतावल’ तऽ हमनी किहाँ बरले बाऽ, ई तऽ बन्हिआ बिकल्प लागऽते बाऽ।
    हालाकि ई बात सही बाऽ कि बारल आ बुतावल दिआ खातिर बोलल जाला बाकिर हमरा बिजली के बौल खातिर इहो बन्हिआ बिकल्प लागल।

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