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बतिया साँच बा , बाकि कहे में लाज लागऽता

– चुनमुन पंडित

भोजपुरी सिनेमा उद्योग में आजु जेने देखीं भीड़ भरल हलचल नजर आ रहल बा. ए हलचल के भीड़ में बहुत तरह के लोग शामिल बाड़े. केहू सफलता के पास त केहू दौड़ में हिस्सा ले के दउड़ रहल बा. केहू गिर के फेर से उठऽता आ केहू सबके देखा देखी आ के कतार में खड़ा हो रहल बा. भले ई दोसर बाति बा कि ऊ जा कहाँ रहल बा, ओकरा इहो मालूम नइखे ?

खैर, कुल मिला के देखल जाय त ई देख के बहुत खुशी हो रहल बा कि आजु हमनी के भोजपुरी सिनेमा उद्योग सुन्दर आ सुचारु तरीका से स्थापित भइला के साथ साथ रोजे विकास के दू चार डेग आगा बढ़ रहल बा. एह उद्योग से जुड़ल भोजपुरिया आ गैर भोजपुरिया लोग के रोजी रोटी व्यवस्थित ढंग से चल रहल बा. आजु से एक दू दशक पहिले के बाति कइल जाव त तब मायानगरी के सिनेमाई लोग भोजपुरी सिनेमा के बड़ा हीन भाव से आ पराया नजर से देखत रहले. आजु हिन्दी सिनेमा के बड़हन बड़हन कलाकार, निर्देशक, निर्माता, आ तकनीशियन लोग भोजपुरी सिनेमा का ओर धवले आवत बा. कहे के मतलब ई बा कि अब हमनी के भोजपुरी सिनेमा उद्योग अपना बड़ भाई हिन्दी सिनेमा उद्योग से बरोबरी के लड़ाई लड़े जा रहल बा आ ई कवनो बड़बोलापन ना ह.

आजु के आपन ई विकासशील उद्योग देख के गौरव महसूस हो रहल बा. बाकिर का ई नाज आ गौरव हमेशा बनल रही ? हम जानऽतानी एह बाति से रउरा सभे हमरा प बहुत खिसिआइब, कि अब ना लऽ दाल बात में ऊँट के ठेहुन ! भला इहो कवनो बाति भइल ? त सुनी बतिया साँचे बा बाकिर कहे में लाज लागऽता कि आजु हमनी के जवन सफलता के जामा पहिर के घूम रहल बानी जा ऊ सोच का कतना करीब बा. देखल जाय त एक ओर जहाँ झूठ के सफलता का गुमान पर शामेजश्न मनावल जा रहल बा, ऊ सफलता ना हो के विफलता के फाटल दरार भरे के कोशिश भर बा.

आजु भोजपुरी फिल्म धड़ाधड़ दनादन बन त रहल बा, बाकिर सोचे वाली बाति ई बा कि आजु भौजपुरिया समाज के कतना लोग एकर देखेवाला बाड़न ? दस बीस साल पहिले जब भोजपुरी फिलिम बनत रहे त सिनेमा हॉल में गाँव जवार के हर तरह के लोग नजर आ जात रहे जवना में माई, बहिन बेटी, काकी, मामी, भजी लोग सबले आगा रहत रहुवे. आ आजु शायदे केहू अइसन होई जे अपना मेहरारू का संगे भोजपुरी सिनेमा देखे देखावे क बात सकार सके.

एक ओर जहाँ सिनेमा उद्योग से जुड़ल पत्र पत्रिका में कवनो फिलिम से जुड़ल झूठ सफलता के रंग बिरंगा पेज छप रहल बा, दोसरा ओर ओहि फिल्म के वाहवाह करे वाला केहू समाज में खोजलो नइखे भेंटात. कहाँ गइल ऊ घर परिवार समाज के यथार्थता के चित्रण करे वाली कला ? कहाँ गइल ऊ भोजपुरिया माटी के संस्कार सुगन्ध ? कहाँ गइल ऊ आपन लोक परम्परा जवना में पूर्वज आपन आशीर्वाद, संस्कृति पिरो के हिन्दुस्तान के असली संस्कार समाहित कइले रहन ? का आजु के आपन भोजपुरिया समाज मादकता, उदंडता, अश्लिलता, ओछापन, आ दुअर्थी संवाद के भण्डार बन के रह गइल बा ?

बाति बहुते बा, बाकिर कहे से पहिले बहुत हालि सोचीले कि के पढ़ऽता ? काहे हमहू एह उद्योग के रोटी खा रहल बानी ? हँ हमरा रोटी में मक्खन नइखे ई अलग बाति बा. खैर अबही अतने कहब कि भोजपुरी सिनेमा के लमहर बजट पत्र के ना बलुक निमन स्तरीय कहानी, पटकथा, गीत, संगीत का साथे भोजपुरिया रंग गंध वाली सिनेमा बनवला के जरुरत बा जवना से आपन असली सफलता आ बढ़न्ती के जयघोष देश विदेश ले सुनल सुनावल जा सके. कवनो संवाद ना… कवनो विवाद ना….

राउर
चुनमुन पंडित


लेखक भोजपुरी सिनेमा के प्रतिष्ठित निर्देशक आ कथाकार हईं.
संपर्क सूत्र : cpandit1999@gmail.com

2 Comments

  1. omprakash amritanshu

    पंडित जी बतिया साँच त बा.आज भोजपुरी सिनेमा के स्तर मुहँ के भरे दिन पे दिन गिरल जात बा .ई सोंचे वाला विषय बा .आज भोजपुरी माटी के रंग बदरंग हो रहल बा.संस्कृति घायल हो रहल
    बीया.भोजपुरी रीति-रिवाज के बगईचा में गमकाउआ सेन्ट मरल जा रहल बा .
    गीतकार :ओ.पी.अमृतांशु
    09013660995

  2. Anonymous

    sahi baat baa